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भूख, पढ़ाई से पहले जान बचाना ज़रूरी है… अलवर के बच्चों के लिए स्कूल बना जंग का मैदान!

Last Updated:July 26, 2025, 16:27 IST

Alwar News: अलवर जिले के राजगढ़ कस्बे के बस स्टैंड सड़क मार्ग स्थित राजकीय उच्च प्राथमिक विद्यालय नम्बर 2 का भवन क्षतिग्रस्त होने के कारण बच्चों पर खतरा मंडराता हुआ नजर आ रहा है. स्थानीय प्रशासन भी किसी बड़े हादसे…और पढ़ें

हाइलाइट्स

अलवर के राजगढ़ में स्कूल भवन जर्जर, बच्चों की जान खतरे में.दो कमरे पूरी तरह टूटे, बाकी भवन भी सुरक्षित नहीं.प्रशासन की अनदेखी, मरम्मत के निर्देशों पर अमल नहीं.अलवर. अलवर जिले के राजगढ़ कस्बे में स्थित राजकीय उच्च प्राथमिक विद्यालय नम्बर 2 के हालात बेहद चिंताजनक हो गए हैं. बस स्टैंड रोड पर बने इस स्कूल की इमारत अब बच्चों के लिए खतरा बन चुकी है, लेकिन स्थानीय प्रशासन की ओर से अब तक कोई ठोस कदम नहीं उठाया गया है. स्कूल के कमरों की हालत इस कदर खराब है कि किसी भी वक्त बड़ा हादसा हो सकता है, बावजूद इसके अधिकारी जैसे किसी अनहोनी का इंतजार कर रहे हैं. बच्चों की पढ़ाई का जिम्मा उठाने वाले शिक्षक खुद डरे हुए हैं, लेकिन बार-बार पत्राचार के बावजूद कोई सुनवाई नहीं हो रही है. स्कूल प्रशासन की चिंता दिन-ब-दिन बढ़ती जा रही है क्योंकि बरसात के मौसम में इमारत की कमजोर दीवारें और भी खतरनाक हो गई हैं.

विद्यालय में फिलहाल कक्षा 1 से 8 तक कुल 57 बच्चे अध्ययनरत हैं. स्कूल के पास सिर्फ चार कमरे हैं, जिनमें से दो पूरी तरह से क्षतिग्रस्त हो चुके हैं और एक अन्य कमरे की ज़मीन भी धंस चुकी है. अब महज दो कमरों में ही पूरे स्कूल को समेटने की कोशिश की जा रही है, जिसमें एक कमरे में कार्यालय और पुस्तकालय के साथ-साथ कक्षा 1 से 5 तक के बच्चों को बैठाया जा रहा है. वहीं दूसरे कमरे में कक्षा 6 से 8 तक के छात्रों को एक साथ पढ़ाया जा रहा है. चौंकाने वाली बात यह है कि जो कमरे जर्जर हैं, उन्हीं का उपयोग सरकार ने चुनावों के समय बूथ के तौर पर किया था. स्कूल की चारदीवारी भी टूट चुकी है, जिससे सुरक्षा को लेकर भी गंभीर सवाल उठते हैं.

जर्जर भवन और लगातार अनदेखी
स्कूल के प्रधानाध्यापक नरेश कुमार सैनी का कहना है कि विद्यालय भवन के पीछे एक पुरानी खाई है, जिसमें हमेशा पानी भरा रहता है. इसी वजह से दीवारों में सीलन आ गई है और दो कमरे पूरी तरह से बेकार हो चुके हैं. बचा हुआ भवन भी सुरक्षित नहीं है. नरेश सैनी ने बताया कि जर्जर भवन की स्थिति को लेकर वे कई बार एसडीएम, सीबीईओ और नगरपालिका अधिशाषी अधिकारी को पत्र लिख चुके हैं, लेकिन समस्या जस की तस बनी हुई है. इस लापरवाही के बीच बच्चे और शिक्षक हर दिन डर के साये में पढ़ाई करने को मजबूर हैं. कई बार स्कूल प्रबंधन की ओर से भवन की मरम्मत और निर्माण की मांग की गई है, लेकिन आज तक कोई ठोस कार्रवाई नहीं हुई.

बच्चों की सुरक्षा पर मंडरा रहा खतराप्रधानाध्यापक का कहना है कि बिल्डिंग की दीवारों में चौड़ी दरारें आ चुकी हैं और छत से पानी टपक रहा है. बच्चों को पढ़ाना तो दूर, उन्हें स्कूल में सुरक्षित रखना भी एक चुनौती बन गया है. वे खुद डरते हैं कि कहीं कोई दीवार गिर न जाए या अचानक हादसा न हो जाए. बच्चों के अभिभावक भी स्कूल की हालत देखकर चिंतित हैं, लेकिन विकल्प न होने के कारण बच्चों को उसी खतरनाक इमारत में भेजने को मजबूर हैं. प्रशासन की चुप्पी ने यह संदेश दे दिया है कि बच्चों की जान की कोई कीमत नहीं रह गई है.

प्रशासन ने दिए थे निर्देश, पर अमल नहींमुख्य ब्लॉक शिक्षा अधिकारी लीलावती मीना का कहना है कि झालावाड़ में हुई एक दुर्घटना के बाद सभी संस्था प्रधानों को निर्देश दिए गए थे कि जर्जर भवनों में बच्चों को न बैठाया जाए. उन्होंने एसडीएमसी और भामाशाहों की मदद से भवनों की मरम्मत करवाने के भी निर्देश दिए हैं. लेकिन जमीनी हकीकत यह है कि न तो मरम्मत हुई और न ही बच्चों को दूसरी जगह शिफ्ट किया गया. नरेश सैनी बताते हैं कि उन्होंने जितना बन पड़ा, किया लेकिन अब सब कुछ प्रशासन के ही हाथ में है. उनकी अपील है कि किसी बड़े हादसे से पहले स्कूल की इमारत को दुरुस्त किया जाए ताकि बच्चों की पढ़ाई और जान दोनों सुरक्षित रह सकें.

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