Rajasthan

कभी हुआ करता था मेवाड़ रियासत की छावनी, राजस्थान के CM भी हैं यहां के सांगा बाबा भौमिया के भक्त

राजस्थान का एक-एक इलाका इतिहास और रहस्यों से भरा पड़ा है. कहीं किसी किले का अनोखा इतिहास है तो कहीं कोई रहस्यमयी मंदिर है. जिन इलाकों में ऐसा कुछ नहीं है वहां बेहतरीन पत्थर और झील हैं. जहां यह भी नहीं है वहां कुछ खाने-पीने के चीजें फेमस हैं. यानी सभी जगह कुछ न कुछ खास जरूर है. इसी तरह जयपुर के भीलवाड़ा शहर में सांगानेर इलाका है. यहां का किला फेमस है. इस किले को 17 वीं शताब्दी में संग्राम सिंह (राणा सांगा ) ने बनवाया था. यह किला सांगानेर के दक्षिण में चट्टानों पर बना हुआ है. यह मेवाड़ रियासत की सैनिक छावनी भी हुआ करता था. अब यह खंडहर हो चुका है, लेकिन इसकी चारदीवारी और कुछ निर्माण अभी भी बने हुए हैं.

एक बात और बता दें कि आज की तारीख में सांगानेर भले ही जयपुर के अंदर आता है लेकिन यह जयपुर से पहले का है. पहले इसे संग्रामपुर नाम से पुकारा जाता था बाद में इसका नाम सांगानेर रखा गया. इस शहर को जयपुर के संस्थापक महाराजा सवाई जय सिंह द्वितीय ने ही बसाया था. सांगानेर कपड़ा और हस्तशिल्प से जुड़ी चीजों के लिए प्रसिद्ध है. यहां पुराने समय में रंगाई और छपाई का काम भी बहुत अच्छा होता था. सांगानेरी प्रिंट का अपना अलग नाम था लेकिन समय के साथ अब सब खत्म होता जा रहा है.

इसके अलावा सांगानेर में 400 साल पुराना भगवान चारभुजा नाथ का मंदिर और दो जैन मंदिर बहुत फेमस हैं. सांगानेर के प्रसिद्ध सांगा बाबा भौमिया का तो इलाके में काफी बड़ा नाम है. यहां सांगा बाबा मंदिर बना है. सांगा बाबा की प्रसिद्धी का अंदाजा इस बात से भी लगा सकते हैं कि राजस्थान के मुख्यमंत्री भजन लाल शर्मा का सीएम के लिए नाम चुने जाने के बाद वो सांगा बाबा के मंदिर में माथा टेकने पहुंचे थे.

सांगनेर में एक प्रसिद्ध जैन मंदिर है जिसे संघी मंदिर कहते हैं. यह मंदिर सात मंजिला है जिसमें से मंदिर के पांच तल मंदिर की जमीन के भीतर बने हुए हैं. इस रहस्यमयी मंदिर के बारे में मान्यता है कि इसकी रक्षा स्वयं यक्ष करते हैं जो कि भूरे रंग का एक सांप है और वही मंदिर के भूगर्भ में रहता है. इसलिए इस मंदिर के आखिरी के दो तलों पर जाना मना है.

संघीजी मंदिर का धार्मिक इतिहाससंघी जी मंदिर के बारे में मान्यता है कि एक समय यहां पर एक बड़ी बावली हुआ करती थी. एक समय यहां पर अचानक से बगैर महावत वाला दो हाथियों से खींचा जाने वाला रथ पहुंचा. लोगों ने उसे रोकने की कोशिश की लेकिन वह रुक नहीं पाया और अंत में इसी बड़ी बावली के पास जाकर रुक गया. लोगों ने देखा कि उसमें दिगंबर जैन की प्रतिमा रखी हुई थी. लोगों ने उसे उतारकर बावड़ी के किनारे रखा और उधर रथ अपने आप गायब.

किले मे हैं 80 से अधिक दीवारेंइस किले में 80 से अधिक दीवार हैं. इसके मुख्य द्वार को ‘जगनपोल’ के नाम से जाना जाता है. इस किले की सबसे खास बात यह है कि इसमें 5 प्रवेश द्वार हैं.कितनी ही कहानियां हैं हमारे आसपास.

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FIRST PUBLISHED : August 8, 2024, 18:23 IST

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