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Jagadguru Ramanandacharya Rajasthan Sanskrit University | रामानंदाचार्य ने जन्म सत्ता नहीं, व्यक्ति सत्ता को दिया महत्व: डॉ. मौर्य

रामानंदाचार्य ने भारतीय समाज को एकजुट करके एक ऐसी राह दिखाई, जिस पर देश चल रहा है। ऊंचनीच को न मानने वाले संविधान की नींव स्वामी रामानन्द ने 14वीं सदी में ही रख दी थी, जिसे मध्यकालीन भक्ति आंदोलन कहा जाता है।

जयपुर

Published: February 08, 2022 09:44:12 pm

संस्कृत विश्वविद्यालय में स्थापना दिवस पर हुआ व्याख्यान
जयपुर। रामानंदाचार्य ने भारतीय समाज को एकजुट करके एक ऐसी राह दिखाई, जिस पर देश चल रहा है। ऊंचनीच को न मानने वाले संविधान की नींव स्वामी रामानन्द ने 14वीं सदी में ही रख दी थी, जिसे मध्यकालीन भक्ति आंदोलन कहा जाता है। यह कहना था कि जगद्गुरु रामानंदाचार्य राजस्थान संस्कृत विश्वविद्यालय की कुलपति डॉ. अनुला मौर्य का जो मंगलवार को विश्वविद्यालय के 22वें स्थापना दिवस पर आयोजित संत नारायणदास स्मारक व्याख्यान माला में अपने विचार व्यक्त कर रही थीं। उन्होंने कहा कि स्वामी रामानंद ने अपने प्रवचन और लेखन का आधार संस्कृत के साथ देशज भाषाओं को भी बनाया। इस अवसर पर त्रिवेणी के संत रामरिछपालदास ने कहा कि स्वामी रामानंद का अवदान है कि उन्होंने मुगल आततायियों के सामने मजबूत भारतीय समाज खड़ा किया। पद्मावती और सुरसरि दो महिलाओं ने भी उनके बारह प्रमुख शिष्यों में अपनी जगह बनाई। उनके पास वर्ण, ***** और वर्ग का कहीं कोई भेद नहीं, केवल राम का नाता था।
मुख्य वक्ता प्रो. राजेंद्र प्रसाद शर्मा ने अनेक संत परंपराएं रामानंद के काशीस्थित श्रीमठ से निकली। दादू, रामस्नेही, वारकरी, घीसा पंथ, कबीर पंथ और रैदास पंथ जैसी ढेर सारी भक्ति.काव्य परंपराओं का मूल श्रीमठ है। वहीं शास्त्री कोसलेंद्रदास ने कहा कि स्वामी रामानंद ने घोषणा कर दी थी कि भगवान अपनी भक्ति में जीवों की जाति, बल और शुद्धता की अपेक्षा नहीं करते। सभी समर्थ और असमर्थ जीव भगवान को पाने में समान अधिकारी हैं। शैक्षणिक परिसर के निदेशक डॉ. राजधर मिश्र ने बताया कि धन्यवाद ज्ञापन उम्मेद सिंह ने और संचालन डॉ.कुलदीप सिंह ने किया।

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