Jagadguru Ramanandacharya Rajasthan Sanskrit University | समरसता के लिए संजीवनी है रामानंदाचार्य का दर्शन- डीजीपी मिश्रा
जयपुरPublished: Mar 02, 2023 01:12:03 am
डीजीपी उमेश मिश्रा का कहना है कि सामाजिक सुधार के आंदोलन की शुरुआत सात शताब्दी पहले जगद्गुरु रामानंदाचार्य ने की थी।
समरसता के लिए संजीवनी है रामानंदाचार्य का दर्शन- डीजीपी मिश्रा
डीजीपी उमेश मिश्रा का कहना है कि सामाजिक सुधार के आंदोलन की शुरुआत सात शताब्दी पहले जगद्गुरु रामानंदाचार्य ने की थी। जगद्गुरु रामानंदाचार्य राजस्थान संस्कृत विश्वविद्यालय में हुई तीन दिवसीय संगोष्ठी के समापन सत्र में अपने विचार व्यक्त करते हुए उनका कहना था कि वह दार्शनिक, समाज सुधारक और मध्यकालीन भक्ति आंदोलन के प्रवर्तक थे। कबीर और रैदास जैसे महात्माओं के साहित्य में आचार्य रामानंद के विचार प्रकट होते हैं। उनके विचार समाज में समरसता स्थापित करने के लिए संजीवनी के समान हैं। उन्होंने कहा कि आज समाज को भारतीय दर्शन में निहित ज्ञान मीमांसा की आवश्यकता है। भारतीय दार्शनिक अनुसंधान परिषद और राजस्थान संस्कृत अकादमी की ओर से संस्कृत विश्वविद्यालय में हुई संगोष्ठी के समापन सत्र के मुख्य अतिथि वरिष्ठ विधायक नरपत सिंह राजवी ने कहा कि रामानंदाचार्य ने जात-पात और छुआछूत से दूर जाकर ऐसे भक्ति संप्रदाय की स्थापना की थी, जो आज भी हिंदू समाज को एकजुट बनाने में कारगर साबित हो रहा है। उन्होंने सगुण.निर्गुण के द्वंद्व को मिटाकर भक्ति के मार्ग सभी के लिए खोल दिए।
बीएचयू के प्रो.धनंजय पांडेय ने भारतीय दर्शन में रामानंदाचार्य के स्थान को महत्वपूर्ण बताया। दिल्ली के प्रो.सच्चिदानंद मिश्र ने रामानंद दर्शन पर अध्ययन और अनुसंधान की जरूरत बताई। अयोध्या के महंत मिथिलेशनंदिनी शरण ने रामानंद संप्रदाय की भक्ति निष्ठा और साधु सेवा पर व्याख्यान दिया। वहीं, त्रिवेणी के रामरिछपालदास ने रामभक्ति के माध्यम से मानवता के प्रसार की बात कही। कुलपति प्रो.रामसेवक दुबे ने अध्यक्षता करते हुए संगोष्ठी का प्रतिवेदन प्रस्तुत किया। संगोष्ठी समन्वयक शास्त्री कोसलेंद्रदास ने बताया कि संगोष्ठी के प्रात: कालीन सत्र में दिल्ली के प्रो. प्रभाकर प्रसाद, अयोध्या के स्वामी सत्यनारायणदास, स्वामी आनंददास, स्वामी मल्लिकार्जुनदास, सहित प्रो.महानंद झा, प्रो.राजधर मिश्र, डॉ. श्रुति मिश्रा, डॉ.श्रीनिवास शर्मा व डॉ.प्रणु शुक्ला के व्याख्यान हुए। संगोष्ठी में 202 शोधपत्र पढ़े गए। मंगलाचरण डॉ.देवेंद्र कुमार शर्मा व धन्यवाद ज्ञापन संजय झाला ने दिया।