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Last Updated:December 08, 2025, 12:46 IST

Jaipur City Transformation: जयपुर शहर दशकों में लगातार बदलता रहा है. आधुनिक विकास के बावजूद, पुराने शहर की वास्तुकला और पुरानी बसावट आज भी इसकी असली पहचान को बनाए हुए हैं. पुराने भवन, गलियां और ऐतिहासिक संरचनाएं जयपुर की सांस्कृतिक और ऐतिहासिक विरासत को दर्शाती हैं, जो नई इमारतों और शहरी विकास के बीच शहर की अनूठी छवि को कायम रखती हैं.150 सालों बदलता हुआ गुलाबी नगर

हालही में जयपुर का 298वां स्थापना दिवस बड़ी धूमधाम से मनाया गया, लेकिन इन 298 वर्षों में जयपुर की पहचान हमेशा से गुलाबी नगर ही बनी रही, 18 नवंबर 1727 को महाराजा सवाई जयसिंह द्वितीय ने जयपुर को नींव रखी थी, लेकिन आज वर्षों बाद जयपुर शहर की पहचान बस एक शहर के रूप में नहीं बल्कि अब दुनिया के सबसे सुंदर के रूप में होती हैं, जहां की अद्भुत वास्तुकला, ऐतिहासिक इमारतें, बाजार, मैदान, अरावली के घने जंगल जो अपने आप में जयपुर और राजस्थान का इतिहास बयां करती है. जयपुर दुनिया का ऐसा अनोखा शहर रहा जिसे बसाते समय आने वाले वर्षों के भविष्य को देखते हुए बसाया गया जो समय के साथ लगातार बदलता गया. आज भी लोगों के ज़हन में जयपुर का नाम आते ही ऐतिहासिक इमारतों और गुलाबी शहर के चित्र बनने लगता हैं. जो इस शहर की सबसे खास पहचान हैं.

विश्व धरोहर के रूप में बदलती जयपुर की सूरत

जयपुर शहर हमेशा से गुलाबी नगरी नहीं था. लेकिन महाराजा सवाई मानसिंह द्वितीय और तत्कालीन प्राइमिनिस्टर मिर्जा इस्माइल ने जयपुर को आधुनिक रूप में बदला धीरे-धीरे एक ऐसा भी समय था जब जयपुर शहर के प्रमुख बरामदों पर अतिक्रमण होता चला गया लेकिन ऑपरेशन पिंक के रूप में अभियान चलाकर इन सभी जगहों को अतिक्रमण मुक्त करवाया गया. 5 फरवरी, 2020 को गुलाबी नगरी विश्व के नक्शे पर अपनी अलग पहचान बनाई और जयपुर शहर को विश्व धरोहर शहर घोषित किया गया. आज खूबसूरती के मामले में जयपुर पूरे विश्व में अपना लोहा मनवा चुका हैं.

हर दशक के साथ चमकाता गया गुलाबी नगर

ज्यादातर लोगों को पता नहीं की जयपुर शहर हमारे से गुलाबी रंग में रंगा नहीं हुआ करता था बल्कि इसकी परम्परा वर्षों बाद हुई जो जयपुर की खास पहचान बनी, जयपुर अपने आप में दुनिया का अनोखा शहर हैं. जिसकी पहचान विरासत और इतिहास को सिर्फ देखने, सुनन, बोलने और सोचने पर ही शुरू होती हैं. वर्षों बाद भी आज जयपुर के बाजार, प्राचीन मंदिर, खेल के मैदान, सड़कों की वास्तुकला की सुंदरता बरकरार हैं जिसे इसकी स्थापना के समय हुआ करती थी. बस बदलते समय के साथ बढ़ती जनसंख्या और विकास के पहिए ने जयपुर की सूरत बदल दी जिसकी असली शुरुआत 70 से 90 के दशक में हुई.

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दुनियाभर में प्रसिद्ध हैं जयपुर की ऐतिहासिक इमारतें

बहुत की कम लोगों को इस बात की जानकारी है आज के जयपुर शहर के स्थान पर किसी जमाने में 6 गांव हुआ करते थें और आज उनके नाम बदल गये हैं और आज एक ही स्वरूप में जयपुर शहर में बदल गये हैं. जब जयपुर शहर की बसावट का कार्य शुरू हुआ तो विशेष रूप से सड़कों और रास्तों की लम्बाई- चौड़ाई ध्यान दिया गया. जयपुर के चारदीवारी बाजार को इस रूप में बसाया गया की यह भविष्य में एक बेहतरीन बाजार का रूप ले सके और आज यह बाजार भारत के सबसे ख़ूबसूरत बाजारों में से एक हैं. बाजारों में बसे मंदिर, विद्यालय और बाजारों की दुकानों को विशेष रूप से सजावटी डिजाइन में तैयार किया गया ताकि वर्षों तक इसकी चमक बरकरार रहें. 18वीं सदी का हवामहल, नाहरगढ़ किला,जंतर-मंतर, रामबाग पैलेस, संग्रहालय जैसी सभी इमारते आज भी अलग ही चमक बिखेरती है.

गुलाबी नगर बना जयपुर की खास पहचान

महाराजा जयसिंह और उनके बाद के राजाओं ने जयपुर को पहले सफेद और पीले रंग से पोता था, मगर महाराजा रामसिंह ने इसे गुलाबी रंगवाया और तभी से यह गुलाबी नगर कहलाने लगा. रामसिंह के बाद महाराजा माधोसिंह आए जिन्होंने शहर में मल और गन्दे पानी को बाहर निकालने के लिए भूतल का उपयोग किया. इंग्लैंड यात्रा के बाद तो माधोसिंह की सोच पूरी तरह से बदल गई थी और उन्होंने शहर को अधिक आधुनिक बनाने के लिए प्रयास शुरू किए. तब जयपुर की जनसंख्या एक लाख से भी कम थी.

300 वर्षों की अनोखी यात्रा, आज विश्व पटल पर जयपुर की खास पहचान

जयपुर शहर को बसे हुए 300 वर्ष होने वाले हैं लेकिन जब इस शहर की नींव रखी गई थी. उस समय से लेकर आज तक जयपुर ने अपने आप को हर दिन संवरते हुए देखा हैं. जहां सिर्फ किलों महलों की सुंदरता ही नहीं बल्कि कला, संस्कृति, विज्ञान, राजनीति, व्यापार, शिक्षा, मनोरंजन जैसे हर पहलू के साथ अपने आप को संवारा हैं. जयपुर शहर में बढ़ते समय के साथ शहर की जनसंख्या और बदलते हुए हर स्वरूप की कहानी भी इतिहास के बनाते हुए आगे बढ़ हैं. जयपुर के इतिहासकारों के मुताबिक जब जयपुर की नींव रखी गई थी. तब शहर की बसावट और वास्तुकला पर सबसे ज्यादा ध्यान दिया गया था ताकि वर्षों बाद भी जयपुर अपने अनोखे स्वरूप में रहे.

कला संस्कृति से जुड़ा केंद्र रहा हैं गुलाबी नगर

जयपुर शहर में सैकड़ों प्राचीन मंदिर हैं जिससे धार्मिक रूप में यह भारत के सबसे धार्मिक इतिहास के साथ जुड़ा हुआ शहर हैं, इसलिए जयपुर को छोटी काशी कहा जाता हैं, इसके अलावा जयपुर शहर में मिट्टी से लेकर पत्थरों की कला और ऐतिहासिक इमारतों से जयपुर ने दुनियाभर में ऐसी पहचान बनाई की आज जयपुर भारत का सबसे पर्यटक वाला शहर हैं. जहां नौ दरवाजे, पहाड़ियों पर बने किले और भव्य बाजार पर्यटकों के लिए सबसे ज्यादा आकर्षण के केंद्र हैं. जयपुर शहर भारत का ऐसा शहर हैं. जहां दुनियाभर की राजनीतिक हस्तियों से लेकर तमाम नामचीन लोगों के लिए जयपुर भारत के स्वागत के रूप में गवा बना हैं. जिसकी परम्परा भी वर्षों पहले शुरू हुई थी.

मैसूर की तर्ज पर बनी जयपुर की सुंदरता

साल 1922 में माधोसिंह की मृत्यु के बाद सवाई मानसिंह के शासनकाल में अनेक प्रगतिशील सुधार हुए. उस दौरान जयपुर शहर सिर्फ परकोटे से घिरा हुआ था. मगर अजमेर के मेयो काॅलेज में इंग्लिश एजुकेशन सिस्टम से शिक्षित मानसिंह की कल्पना परकोटे को पार करने लगी थी. उन्हें एक ऐसे नेतृत्व की आवश्यकता थी जो आधुनिक विचारों वाला हो. वर्ष 1940 में मैसूर के महाराजा कृष्णराजा की मृत्यु के बाद नए महाराजा धर्मराजा वाडियर से मिर्जा इस्माइल की सोच नहीं मिल सकी और उन्होंने 1941 में इस्तीफा दे दिया. मैसूर राजा के दीवान का पद छोड़ते ही सर मिर्जा को कई राजाओं ने अपने राज का दीवान पद सम्भालने का आग्रह किया. इनमें से सबसे प्रबल आग्रह सवाई मानसिंह का था. उन्होंने सर मिर्जा को आश्वस्त किया कि उन्हें उनके राज्य में खुली छूट मिलेगी और जैसा उन्होंने मैसूर में कर दिखाया वैसा ही जयपुर में भी करके दिखाएं.

अलग-अलग चरणों में हुआ जयपुर का विकास

आपको बता दें सर मिर्जा इस्माइल के कार्यकाल में भूमि विकास के अन्तर्गत ए, बी, सी, डी और ई स्कीमें बनी। तब प्रतिगज चार आने और आठ आने में जमीने अलाॅट हुई थीं, लेकिन ज्यादातर नए इलाकों में या तो खेत थे या जंगल. बाहर क्षेत्र में विकास के लिए सबसे पहले परकोटे से जुड़े हिस्से न्यू काॅलोनी का विकास किया गया. साथ ही अजमेरी गेट से रेलवे स्टेशन तक नई सड़क बनाई गई और सड़क के दोनों ओर बाजार विकसित करने के लिए जमीनें दी गईं.

मिर्जा स्माइल रोड से बनी जयपुर की खास पहचान

जयपुर पूरी तरह से बदल चुका था और सर मिर्जा को दूसरे घरानों से भी बुलावा आने लगा था. शहर के एक हिस्से में बंगलूरु पद्धति पर बड़े चैक के अन्तर्गत भवन बनाए गए थे, जिसके बीचों-बीच बड़े खम्भे में पांच लाइटें लगाई गईं. जिसके चलते इस चैक का नाम पांचबत्ती पड़ा, जहां शहर के रईस रहते थे. उसके आस-पास की सड़क सर मिर्जा ने अपनी निगरानी में बनवाई थी. ऐसे में सवाई मानसिंह ने उन्हें जयपुर छोड़कर जाने से रोकने के लिए उसका नामकरण मिर्जा इस्माइल रोड (एम.आई.रोड) कर दिया.

First Published :

December 08, 2025, 12:46 IST

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दशक में बदल गई जयपुर की तस्वीर! जानें कैसे समय ने बदली शहर की पहचान

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