जयपुर का वृंदावन: 500 साल पुराने लक्ष्मीनारायण मंदिर की है अनोखी मान्यताएं, उमड़ती है भक्तों की भीड़
अंकित राजपूत/ जयपुर: जयपुर अपनी ऐतिहासिक धरोहरों और प्राचीन मंदिरों के लिए दुनियाभर में प्रसिद्ध है. यहां स्थित हर मंदिर की अलग-अलग परंपराएं और मान्यताएं हैं. ऐसा ही एक मंदिर है जयपुर से 25 किलोमीटर दूर स्थित जगदीश महाराज मंदिर, जिसे लक्ष्मी जगदीश मंदिर या जयपुर का वृंदावन भी कहा जाता है. यह मंदिर 500 साल से भी अधिक पुराना है और देशभर से श्रद्धालु यहां दर्शन के लिए आते हैं.
मंदिर की ऐतिहासिक विरासत मंदिर के इतिहास के अनुसार, यहां स्थापित भगवान लक्ष्मीनारायण की मूर्ति एक ब्राह्मण द्वारा खेत से खुदाई में निकाली गई थी. इसके बाद अनुष्ठान के साथ इसे एक छोटे मंदिर में स्थापित किया गया. समय के साथ, जयपुर राजपरिवार और भक्तों के सहयोग से इस स्थान पर भव्य मंदिर का निर्माण हुआ. वर्षों से यह मंदिर राजस्थान के प्रमुख धार्मिक स्थलों में गिना जाता है. इस मंदिर में भगवान जगदीश महाराज को रोजाना रात में साढ़े तीन किलो का राजभोग और दूध का भोग चढ़ाने की परंपरा आज भी निभाई जा रही है.
अनोखी मान्यता और प्रार्थना की शक्ति मंदिर के बारे में मान्यता है कि यहां सच्चे मन से की गई प्रार्थना अवश्य फलदायी होती है. श्रद्धालुओं का विश्वास है कि किसी विपत्ति या संकट से मुक्ति पाने के लिए भगवान जगदीश महाराज के सामने सवामणी बोलने से समस्या हल हो जाती है. संकट खत्म होने पर श्रद्धालु यहां आकर सवामणी का आयोजन करते हैं. शादी के बाद नवविवाहित जोड़े का मंदिर में दर्शन करना और “धोक” लगाना भी परंपरा का हिस्सा है. शादी के सीजन में बड़ी संख्या में लोग नवविवाहित जोड़ों को मंदिर लेकर आते हैं.
गोनेर: सवामणियों और भव्य धर्मशालाओं का केंद्र गोनेर कस्बा न केवल अपने मंदिर के लिए बल्कि यहां आयोजित होने वाली भव्य सवामणियों के लिए भी प्रसिद्ध है. यहां 50 से अधिक धर्मशालाएं हैं, जो विभिन्न समाजों द्वारा उपयोग में लाई जाती हैं. सवामणियों में हजारों लोग एक साथ भोजन प्रसादी ग्रहण करते हैं. विशेष रूप से एकादशी के अवसर पर यहां बड़े पैमाने पर सवामणियां और मेलों का आयोजन होता है. यह आयोजन केवल स्थानीय श्रद्धालुओं को ही नहीं, बल्कि विदेशों में बसे भारतीयों को भी आकर्षित करता है.
मंदिर का समय और दर्शन की व्यवस्था मंदिर पूरे वर्ष श्रद्धालुओं के लिए खुला रहता है.– दर्शन का समय: सुबह 7:30 बजे से रात 9:00 बजे तक.– भोग: दोपहर 12:30 बजे चढ़ाया जाता है.
जयपुर का यह मंदिर न केवल धार्मिक आस्था का केंद्र है, बल्कि इसकी सांस्कृतिक धरोहर और परंपराएं भी इसे विशेष बनाती हैं. यहां आकर हर भक्त को दिव्यता और शांति का अनुभव होता है.
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FIRST PUBLISHED : November 30, 2024, 13:24 IST