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Last Updated:November 23, 2025, 19:09 IST
Jalore Agriculture Hotspot: जालोर तेजी से राजस्थान का प्रमुख कृषि हॉटस्पॉट बनता जा रहा है. यहां किसान पारंपरिक खेती से हटकर अब हाई-कैश और हाई-वैल्यू फसलों की ओर बढ़ रहे हैं. बेहतर बाजार मांग, आधुनिक तकनीक और सिंचाई सुविधाओं के कारण किसानों को आय में बड़ा लाभ मिल रहा है. इस बदलाव ने जिले की कृषि अर्थव्यवस्था को नई दिशा दी है.
जालोर जिला राजस्थान का एक प्रमुख कृषि क्षेत्र माना जाता है, जहां की जलवायु और मिट्टी कृषि के लिए बेहद अनुकूल है. यहां की ज्यादातर भूमि रेतीली-दोमट है, जो पानी को जल्दी सोख लेती है, जिससे फसलों की जड़ों को पर्याप्त हवा और नमी मिलती रहती है. गर्मियों में तेज धूप और सर्दियों में हल्की ठंड रबी और खरीफ दोनों मौसम की फसलों के विकास के लिए अनुकूल वातावरण तैयार करती है. यही वजह है कि जालोर में हर वर्ष खेती का उत्पादन लगातार बढ़ रहा है.

जालोर जिले की सबसे प्रमुख और पहचान बन चुकी फसल इसबगोल है. यह फसल मुख्य रूप से नवंबर में बोई जाती है और मार्च-अप्रैल तक कटाई के लिए तैयार हो जाती है. आहोर, रानीवाड़ा, बागोड़ा और जसवंतपुरा क्षेत्र इसबगोल उत्पादन के बड़े केंद्र हैं. दवा उद्योग, आयुर्वेद और स्वास्थ्य उत्पादों में इसकी भारी मांग के कारण इसकी खेती किसानों के लिए आर्थिक रूप से लाभकारी साबित हो रही है. प्रदेश ही नहीं, बल्कि देश के कई राज्यों में जालोर का इसबगोल निर्यात भी किया जाता है.

जीरा जालोर की दूसरी प्रमुख नकदी फसल है, जो जिले की कृषि अर्थव्यवस्था में महत्वपूर्ण भूमिका निभा रही है. जीरे की बुवाई आमतौर पर नवंबर महीने में की जाती है और फसल फरवरी अंत तक पककर तैयार हो जाती है. जालोर की ठंडी रातें और शुष्क वातावरण जीरे के दानों को सुगंधित और उत्तम गुणवत्ता वाला बनाते हैं. यही कारण है कि जालोर का जीरा अंतरराष्ट्रीय बाजार में भी पसंद किया जाता है और इससे किसानों को बेहतर मूल्य प्राप्त होता है.
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सब्जी उत्पादन के क्षेत्र में जालोर जिले ने टमाटर की खेती से खास पहचान बनाई है. आहोर, सायला, रानीवाड़ा और बागोड़ा क्षेत्रों में हजारों बीघा भूमि पर टमाटर की खेती की जाती है. यहां की मिट्टी टमाटर की बढ़वार के लिए अत्यंत उपयुक्त मानी जाती है. अच्छी पैदावार और बाजार में बढ़ती मांग के कारण यह फसल किसानों के लिए मुख्य नकदी स्रोत बन चुकी है. जालोर से टमाटर की सप्लाई राजस्थान के अलावा गुजरात, मध्यप्रदेश और दिल्ली जैसे बड़े बाजारों तक भी होती है.

जालोर जिले में अरंडी की खेती सूखे और कम वर्षा वाले क्षेत्रों में विशेष रूप से की जाती है. यह फसल कम पानी में भी अच्छी पैदावार देती है, जिससे यह सूखा प्रभावित क्षेत्रों के लिए उपयुक्त मानी जाती है. अरंडी से प्राप्त तेल का उपयोग दवाइयों, कॉस्मेटिक उत्पादों और औद्योगिक कार्यों में होता है. इसी कारण इसकी बाजार में निरंतर मांग बनी रहती है और किसान इसे अपने खेतों में लगाना पसंद करते हैं.

पारंपरिक फसलों में बाजरा जालोर की ग्रामीण अर्थव्यवस्था की रीढ़ है. अधिकतर वर्षा आधारित खेती में बाजरे की बुवाई की जाती है, जो कम पानी और कम लागत में भी अच्छी उपज देता है. यह स्थानीय लोगों का मुख्य भोजन रहा है और आज भी बड़ी संख्या में किसान इसकी खेती करते हैं. पोषण के लिहाज से भी बाजरा बहुत लाभकारी माना जाता है, इसलिए इसकी मांग शहरी क्षेत्रों में भी बढ़ रही है.

पिछले कुछ वर्षों में जालोर के किसानों ने पारंपरिक खेती से आगे बढ़कर आधुनिक फसलों की ओर रुख किया है. ऐसी ही एक नई फसल है क्विनोआ, जिसे अंतरराष्ट्रीय बाजार में एक सुपरफूड के रूप में पहचाना जाता है. बावतरा, बागोड़ा और जसवंतपुरा क्षेत्र में इसकी खेती सफल रही है. कम लागत और अच्छी बाजार कीमत के कारण यह फसल किसानों की आर्थिक स्थिति मजबूत करने में मदद कर रही है.
First Published :
November 23, 2025, 19:09 IST
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किसानों का बड़ा बदलाव! हाई-वैल्यू फसलों की ओर रुझान, कमाई में जबरदस्त उछाल



