जालोर का ऐतिहासिक आशापुरा माता मंदिर है श्रद्धा और वीरता का प्रतीक, पढ़िए क्या है मान्यता
सोनाली भाटी/जालौर: जिले के ऐतिहासिक स्वर्णगिरी दुर्ग पर स्थित आशापुरा माता मंदिर को सोनगरा राजवंश की कुलदेवी के रूप में पूजा जाता है. इसे जालोर का सबसे प्राचीन मंदिर माना जाता है, जिसकी स्थापना 1181 ई. में कीर्तिपाल चौहान द्वारा की गई थी.
मंदिर की ऐतिहासिक पृष्ठभूमिआशापुरा माता मंदिर सोनगिरी पहाड़ी पर स्थित है, और इस क्षेत्र के शासकों को “सोनगरा” नाम से जाना जाता था. सोनगरा राजाओं ने इस मंदिर की स्थापना की थी, जो भव्य भूभाग में फैला हुआ है. मंदिर के पास स्थित प्रसिद्ध झालर बावड़ी और जालरेश्वर महादेव का शिव मंदिर भी ऐतिहासिक महत्व रखता है. आशापुरा माता को भक्तों की इच्छाओं को पूर्ण करने वाली देवी माना जाता है.
वीरमदेव की कहानीमंदिर के पुजारी गजेंद्र शर्मा ने बताया कि 1311 ई. में अलाउद्दीन खिलजी ने जालोर पर आक्रमण किया. इस युद्ध में सोनगरा वीरों ने वीरगति प्राप्त की, विशेष रूप से वीरमदेव सोनगरा ने. युद्ध से पहले वीरमदेव ने अपनी कुलदेवी आशापुरा माता से आशीर्वाद लिया, और माता ने उन्हें वरदान दिया कि वे युद्ध में कभी पीछे न देखें. वीरमदेव ने बहादुरी से लड़ाई की, लेकिन एक क्षण में पीछे देखने पर उनका सिर कट गया, फिर भी उनका धड़ लगातार लड़ता रहा. इससे जुड़ी कहावत आभ फटे धर उलड़े, सिर कटे धड़ लड़े, जद छूटे जालौर” आज भी प्रसिद्ध है.
जीर्णोद्धार और वर्तमान स्थितिइतिहासकारों के अनुसार, यह मंदिर सोनगरा राजवंश द्वारा स्थापित किया गया था, लेकिन समय के साथ इसका जीर्णोद्धार जोधपुर के राजा उम्मेद सिंह और मानसिंहजी ने करवाया. वर्तमान में, इस मंदिर की देखभाल लगातार तीन पीढ़ियों से बंशीलाल शर्मा के परिवार द्वारा की जा रही है. आशापुरा माता के चमत्कार और वीर राजाओं की भक्ति के कारण यह मंदिर विशेष श्रद्धा का केंद्र बना हुआ है, जहाँ लोग आशीर्वाद प्राप्त करने आते हैं.
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FIRST PUBLISHED : September 30, 2024, 20:46 IST