जालोर का गैर नृत्य और फाग गायन, नेहरू से स्वर्ण पदक, महाराजा से 200 बीघा जमीन, चौथी पीढ़ी संभाल रही विरासत

Last Updated:March 22, 2025, 18:58 IST
राजस्थान के जालोर जिले की माली पोलजी एंड पार्टी ने गैर नृत्य और फाग गायन को राष्ट्रीय पहचान दिलाई. जवाहरलाल नेहरू ने माली पोलजी को स्वर्ण पदक दिया और जोधपुर महाराजा ने 200 बीघा भूमि इनाम में दी.X
माली पोलजी की चौथी पीढ़ी नृत्य प्रस्तुत करते हुए…
हाइलाइट्स
माली पोलजी को नेहरू ने स्वर्ण पदक दिया.जोधपुर महाराजा ने 200 बीघा भूमि इनाम में दी.चौथी पीढ़ी माली पोलजी की विरासत संभाल रही है.
सोनाली भाटी/जालोर. राजस्थान की समृद्ध लोक संस्कृति में गैर नृत्य और फाग गायन का विशेष स्थान है. जालोर जिले की इस लोक परंपरा को राष्ट्रीय स्तर पर पहचान दिलाने का श्रेय माली पोलजी एंड पार्टी को जाता है. 1950 के दशक से यह पार्टी देशभर में अपनी प्रस्तुतियां देती आ रही है और इसकी धाक दिल्ली दरबार तक बनी रही.
माली पोलजी के पोते गणपत ने लोकल 18 को बताया कि भारत के प्रथम प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू स्वयं इस पार्टी के गायन से इतने प्रभावित हुए कि उन्होंने माली पोलजी को आठ दिनों तक सुनने की इच्छा जताई. इतना ही नहीं, उनकी प्रतिभा को सम्मानित करते हुए नेहरू ने उन्हें स्वर्ण पदक भी भेंट किया. जोधपुर दरबार ने भी इस पार्टी की प्रतिभा को सराहा और 200 बीघा भूमि इनाम स्वरूप दी, यहां आज ‘पोलजी नगर’ बस चुका है.
गैर नृत्य और माली पोलजी की विरासत… राजस्थान का पारंपरिक गैर नृत्य होली के बाद विशेष रूप से किया जाता है. इसमें कलाकार चंग की थाप पर नृत्य करते हुए सामूहिक रूप से लोकगीत गाते हैं. यह परंपरा कई साल से चली आ रही है. उन्होंने चंग के साथ गायन की शुरुआत कर इसे एक नई पहचान दी. पोलजी माली ने सिर्फ पारंपरिक लोकगीत ही नहीं गाए, बल्कि अपने गीतों के माध्यम से तत्कालीन सामाजिक और राजनीतिक परिस्थितियों पर भी व्यंग्य किया. अंग्रेजों के शासनकाल पर तंज कसते हुए उन्होंने गाया— “इण अंगरेज रा राज में न्याव कौनी रे…” जिससे उनकी लोकप्रियता और भी बढ़ गई.
जोधपुर महाराजा से मिला राजसी इनाम… माली पोलजी के पोते लच्छाराम ने बताया कि माली पोलजी को जोधपुर महाराजा से भी विशेष सम्मान मिला. उन्होंने माली पोलजी एंड पार्टी का प्रसिद्ध गैर नृत्य देखा और प्रभावित होकर 1956 में उन्हें 200 बीघा भूमि इनाम में दे दी. इस जमीन का बड़ा हिस्सा स्कूलों को दान कर दिया गया, और शेष भूमि ‘पोलजी नगर’ के रूप में जानी जाने लगी.
चौथी पीढ़ी निभा रही विरासत… माली पोलजी की इस विरासत को पहले उनके पुत्र वरदाराम और अब उनके पोते लच्छाराम कच्छवाह आगे बढ़ा रहे हैं. आज भी माली पोलजी एंड पार्टी राजस्थान के विभिन्न हिस्सों में अपनी प्रस्तुतियां देती है और लोक संस्कृति को जीवंत बनाए हुए है. पार्टी के वर्तमान सदस्य गणपत ने बताया कि वरदाराम को भी राज्यस्तरीय सम्मान प्राप्त हुआ था. उनके निधन के बाद लच्छाराम इस परंपरा को जारी रख रहे हैं.
पारंपरिक वेशभूषा… गैर नृत्य करने वाले कलाकार विशिष्ट पारंपरिक वेशभूषा धारण करते हैं. वे सफेद धोती-कुर्ता पहनते हैं, सिर पर लाल साफा बांधते हैं और तिरंगे का दुपट्टा धारण करते हैं. कमर और पैरों में करीब डेढ़ किलो के घुंघरू बांधे जाते हैं, जिससे उनके नृत्य की गूंज दूर-दूर तक सुनाई देती है.
Location :
Jalor,Rajasthan
First Published :
March 22, 2025, 18:58 IST
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