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जेम्स हैरिसन: 24 लाख बच्चों की जान बचाने वाले ऑस्ट्रेलियाई हीरो.

Last Updated:March 05, 2025, 16:20 IST

James Harrison Blood Saved 24 Lakhs Children: ऑस्ट्रेलिया के जेम्स हैरिसन 24 लाख बच्चों को नया जीवन देकर इतिहास में अमर हो गए. उनके खून में दुर्लभ एंटीबॉडी थी जिससे इतने बच्चों की जिंदगियां बच गई.
उनके खून में थी अद्भुत शक्ति, बचा ली 24 लाख बच्चों की जान, इतिहास में अमर

24 लाख बेबी की जान बचाने वाले जेम्स हैरिसन. (
फेसबुक पर थैंकिंग जेम्स हैरिसन पेज से ली गई तस्वीर. )

हाइलाइट्स

जेम्स हैरिसन के खून से 24 लाख बच्चों की जान बची.हैरिसन ने 81 साल की उम्र तक नियमित रूप से ब्लड डोनेट किया.हैरिसन के पोते भी दुर्लभ एंटी-डी इम्यूनाइज़ेशन प्राप्त करेंगे.

James Harrison Blood Saved 24 Lakhs Children: ऑस्ट्रेलिया के इस शख्स के खून में ऐसी जादुई शक्ति थी कि मौत के मुंह में जा रहे बच्चे को भी वापस कर लेते थे. मतलब उनपर ईश्वर की कृपा थी. उनके खून के प्लाज्मा से 24 लाख बच्चों की जान बच गई. गोल्डन आर्म वाला यह व्यक्ति ऑस्ट्रेलिया के न्यू साउथ वेल्स में रहते थे. 88 साल की जिंदगी में लाखों बच्चों और उनकी मांओं की जिंदगी बचाकर आखिरकर वे इस दुनिया को अलविदा कह गए. 17 फरवरी को उनका निधन हो गया.

दुर्लभ किस्म का प्लाज्मा जिससे बनती है दवा बीबीसी के मुताबिक जेम्स हैरिसन के खून में दुर्लभ एंटीबॉडी था. इसे एंटी-डी कहा जाता है. इस खून के प्लाज्मा से दवा बनती है. कुछ गर्भवती महिलाओं का खून अपने पेट में पल रहे बच्चे पर ही हमला कर देता है. ऐसे में जब इस प्लाज्मा से बनी दवा प्रेग्नेंट महिलाओं को खिला दी जाती है तो वह बच्चा हेल्दी पैदा लेता है. अगर यह दवा नहीं खिलाई जाती है तो अधिकांश बच्चों की मौत पेट में ही हो जाती है. ऑस्ट्रेलिया रेड क्रॉस ब्लड सर्विस ने उन्हें श्रद्वांजलि देते हुए कहा कि हैरिसन जब 14 साल के थे तब उनकी सर्जरी की गई थी और उस समय उन्हें खून की जरूरत थी. उसी उम्र से उन्होंने ब्लड डोनेट करने की ठान ली. इसके बाद जब वे 18 साल के हुए तो पहली बार ब्लड डोनेट किया. वे नियमित रूप से हर दो सप्ताह के अंदर इसके बाद से ब्लड डोनेट करते रहे. खून दान करने का यह सिलसिला 81 साल की उम्र तक चलता रहै. 2005 में उन्होंने सबसे ज्यादा बार प्लाज्मा डोनेट करने का वर्ल्ड रिकॉर्ड बना लिया. 2022 तक यह रिकॉर्ड उनके नाम रहा. उसके बाद एक अमेरिकी व्यक्ति ने ऐसा कारनामा कर उनके रिकॉर्ड को तोड़ दिया.

पोते में भी यही खून हैरिसन की बेटी टेरेसी मैलोशिप ने बताया कि उन्हें अपने पिता पर बहुत गर्व है. उन्होंने लाखों जिंदगियां बचाई और इसके लिए एक पैसा भी नहीं लिया. वे हमेशा कहा करते थे कि प्लाज्मा डोनेट करने से कोई तकलीफ नहीं होती क्योंकि जो जीवन आप बचाते हैं वह भी अपना ही होता है. मेलोशिप और हैरिसन के दो पोते भी एंटी-डी इम्यूनाइज़ेशन प्राप्त करने वाले हैं. यानी उनके खानदान में भी उन्हीं के तरह का दुर्लभ खून है. मैलोशिप ने बताया कि मेरे पिता को इससे बहुत खुशी मिलती थी. अब तक यह पता नहीं चला कि हैरिसन के खून में एंटी-डी कैसे बना. कुछ रिपोर्टों के अनुसार यह उस विशाल रक्त आधान से संबंधित था जो उसने 14 साल की उम्र में प्राप्त किया था. ऑस्ट्रेलिया में 200 से भी कम एंटी-डी दाता हैं लेकिन जेम्स हैरिसन हर साल लगभग 45,000 मांओं और उनके बच्चों की मदद करते थे. लाइफब्लड ऑस्ट्रेलिया के वॉल्टर और एलिजा हॉल इंस्टीट्यूट ऑफ मेडिकल रिसर्च के साथ मिलकर हैरिसन और अन्य दाताओं से रक्त और इम्यून कोशिकाओं की नकल करके एंटी-डी एंटीबॉडीज़ को लैब में उगाने पर काम कर रहा है. इस शोध में शामिल शोधकर्ताओं को उम्मीद है कि लैब में बनाए गए एंटी-डी का उपयोग एक दिन दुनिया भर की गर्भवती महिलाओं की मदद के लिए किया जा सकेगा.

क्या होता है एंटी-डी प्लाज्मा एंटी-डी खून से जो इंजेक्शन बनता है वह अजन्मे शिशुओं को एक घातक रक्त विकार से बचाते हैं जिसे हेमोलिटिक डिजीज ऑफ द फेटस एंड न्यूबॉर्न (HDFN) कहा जाता है. यह स्थिति तब होती है जब गर्भावस्था के दौरान मां की लाल रक्त कोशिकाएं उनके बढ़ते बच्चे की कोशिकाओं से असंगत हो जाती हैं. इसमें मां की प्रतिरक्षा प्रणाली बच्चे की रक्त कोशिकाओं को खतरे के रूप में देखती है और उसपर हमला करने के लिए एंटीबॉडीज उत्पन्न करती है. इससे बच्चे को गंभीर नुकसान हो सकता है. इसमें खतरनाक एनीमिया, हार्ट फेल या यहां तक कि मृत्यु भी हो सकती है. 1960 के दशक के मध्य में एंटी-डी विकसित होने से पहले, HDFN से निदान किए गए हर दो में से एक बच्चे की मृत्यु हो जाती थी.

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First Published :

March 05, 2025, 16:20 IST

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