झालर बावड़ी है जालौर किले की ऐतिहासिक धरोहर और जल प्रबंधन का अद्भुत उदाहरण
सोनाली भाटी/जालौर: जिले का किला अपनी ऐतिहासिक धरोहरों और सांस्कृतिक महत्व के लिए प्रसिद्ध है, लेकिन इसके भीतर स्थित झालर बावड़ी की कहानी खास है. यह बावड़ी न केवल जल संरक्षण का अद्भुत उदाहरण है, बल्कि किले में रहने वालों के लिए पानी की आपूर्ति सुनिश्चित करने के उद्देश्य से बनाई गई थी. इसके ऐतिहासिक और सांस्कृतिक महत्व के कारण यह किले की महत्वपूर्ण धरोहर मानी जाती है.
स्थापत्य का अनूठा उदाहरणझालर बावड़ी की वास्तुकला और बनावट बेहद आकर्षक है. इसका सीढ़ीनुमा ढांचा और पत्थरों पर की गई नक्काशी इसे देखने लायक बनाती है. बावड़ी के पास ही प्राचीन खेतलाजी का मंदिर स्थित है, जो धार्मिक और सांस्कृतिक दृष्टि से इसे और भी महत्वपूर्ण बनाता है.
चार सुरंगों की अनोखी व्यवस्थाबावड़ी की एक विशेषता यह है कि इसके भीतर चार सुरंगें बनाई गई थीं, जो जल प्रबंधन के लिए काम करती थीं. हालांकि, समय के साथ इन सुरंगों में मिट्टी भरने के कारण ये बंद हो गई हैं, लेकिन बावड़ी का जलस्तर जब घटता है, तब ये सुरंगें दिखाई देती हैं, जिससे इसकी प्राचीन संरचना का एक अलग ही स्वरूप सामने आता है.
कभी न सूखने वाला जल स्रोतइस बावड़ी का पानी कभी नहीं सूखता, चाहे गर्मी हो या बारिश का मौसम. इसका जलस्तर स्थिर रहता है और इसी कारण प्राचीन काल में यह किले में रहने वाले लोगों के लिए पानी का मुख्य स्रोत था. बावड़ी की यह विशेषता इसे किले की जीवन रेखा बनाती है, जो इसकी ऐतिहासिक महत्ता को और बढ़ाती है.
सती प्रथा से जुड़ी ऐतिहासिक घटनापुजारी भोमाराम ने बताया कि इतिहास के अनुसार, जालौर के राजा वीरमदेव की बहन झालर इसी बावड़ी में सती हुई थीं. उनकी स्मृति और सम्मान में इस बावड़ी का नाम ‘झालर बावड़ी’ रखा गया. यह घटना इसे और भी पवित्र और ऐतिहासिक रूप से महत्वपूर्ण बनाती है.
संरक्षण की आवश्यकताझालर बावड़ी न केवल जल प्रबंधन का एक उत्कृष्ट उदाहरण है, बल्कि यह जालौर किले की संस्कृति, परंपराओं और शौर्य का प्रतीक भी है. वर्तमान में इस बावड़ी को संरक्षित करने की आवश्यकता है, ताकि इसका इतिहास और सांस्कृतिक महत्व आने वाली पीढ़ियों तक पहुंच सके.
Tags: Local18, Rajasthan news
FIRST PUBLISHED : October 20, 2024, 16:39 IST