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Jodhpur Diwali Bahi Puja Tradition 2025

Last Updated:October 16, 2025, 08:03 IST

Jodhpur Diwali Bahi Puja Tradition 2025: डिजिटल युग में भी जोधपुर के व्यापारी दीपावली पर पारंपरिक बही खातों की पूजा कर नए व्यापारिक वर्ष की शुरुआत करते हैं. लगभग 55 साल पुरानी इस परंपरा में शुभ मुहूर्त पर बही पर तिलक और स्वास्तिक बनाया जाता है. शहर के कारीगर अब भी हाथ से बनी टिकाऊ बहियों के रूप में इस आस्था और कारीगरी की पहचान को आगे बढ़ा रहे हैं.

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Jodhpur Diwali Bahi Puja Tradition 2025: आज के कंप्यूटर और डिजिटल लेन-देन के इस युग में भी, राजस्थान के जोधपुर शहर के व्यापारी अपनी पारंपरिक बही खातों की परंपरा को पूरी आस्था और सम्मान के साथ सहेजे हुए हैं. दीपावली के अवसर पर इन बहियों (लेखा-पुस्तकों) की मांग में खासा इजाफा हो जाता है. पुष्य नक्षत्र से लेकर लक्ष्मी पूजा तक बही की खरीदारी और पूजा का दौर चलता है.

व्यापारी शुभ मुहूर्त में केसर-चंदन से तिलक लगाकर, लाल स्वास्तिक का चिन्ह बनाकर और श्रद्धापूर्वक ‘श्री’ लिखकर नई बही की शुरुआत करते हैं.

व्यापारिक मान्यता के अनुसार, दीपावली का दिन नए वित्तीय वर्ष की शुरुआत का प्रतीक होता है. इस दिन पुरानी बही को सम्मानपूर्वक रखा जाता है और नई बही से नया वर्ष आरंभ किया जाता है. यह न केवल एक धार्मिक अनुष्ठान है, बल्कि यह आस्था, विश्वास और आने वाले वर्ष में समृद्धि की अटूट परंपरा का प्रतीक भी है.

पीढ़ियों से जारी परंपरागत कारीगरी: जोधपुर की पहचान
जोधपुर शहर की कुछ पुरानी दुकानें और कारीगर परिवार आज भी हाथ से बनी बहियों को तैयार कर पूरे राजस्थान और देश में उनकी आपूर्ति करते हैं. इन बहियों को तैयार करने में परंपरागत कारीगर कड़ी मेहनत करते हैं और इनमें उनकी वर्षों की कला झलकती है.
निर्माण प्रक्रिया: बही बनाने के लिए पहले मजबूत गत्ते पर कॉटन कपड़ा चढ़ाया जाता है. इसके बाद पीले पेपर को मजबूत धागे से हाथ से सिलाई करते हुए बही तैयार की जाती है.
विशेषता: इन बहियों की विशेषता उनकी टिकाऊ गुणवत्ता और पारंपरिक डिज़ाइन है, जो जोधपुर को अन्य बाजारों से अलग पहचान देती हैं.

शहर के पुराने बाजारों में कई परिवार पीढ़ियों से इस कला और व्यापार में जुड़े हुए हैं. दीपावली से ठीक पहले इन परिवारों के कारखानों में दिन-रात काम चलता है ताकि देशभर से आ रही मांग को पूरा किया जा सके. देशभर के व्यापारी जोधपुर से विशेष रूप से हाथ से बनी बहियां मंगवाते हैं, जिन्हें शुभ आरंभ का प्रतीक माना जाता है.

आधुनिक तकनीक के साथ पुरानी परंपरा का समावेशजोधपुर के एक प्रतिष्ठित बही कारोबारी लाभचंद जैन बताते हैं कि उनके पिता देवराज मेड़तिया ने करीब 55 साल पहले इस काम की नींव रखी थी. समय के साथ-साथ, उन्होंने बदलते बाजार को देखते हुए फाइलों और रजिस्टरों का काम भी शुरू किया.

लाभचंद जैन स्वीकार करते हैं कि कंप्यूटर युग में डिजिटल खातों का चलन बढ़ा है, लेकिन वे गर्व से कहते हैं कि पारंपरिक बही की मांग आज भी बनी हुई है. विशेषकर दीपावली के दिन बही पूजा का महत्व कम नहीं हुआ है. जैन परिवार आज भी दीपावली के शुभ मुहूर्त पर बही पूजा कर नए वर्ष की शुरुआत करता है, इस दृढ़ मान्यता के साथ कि ऐसा करने से पूरे साल व्यापार में सुख, समृद्धि और सफलता बनी रहती है. यह परंपरा दर्शाती है कि टेक्नोलॉजी कितनी भी आगे बढ़ जाए, आस्था और संस्कृति की जड़ें गहरी ही रहती हैं.

Location :

Jodhpur,Jodhpur,Rajasthan

First Published :

October 16, 2025, 08:03 IST

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55 साल से चल रही इस परंपरा में छिपा है जोधपुर के व्यापार का ‘सीक्रेट मंत्र’!

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