Rajasthan

Johar Singh, born in the royal family of Amarkot, became a recluse after meeting a saint

Agency: Rajasthan

Last Updated:February 08, 2025, 15:12 IST

इस क्षेत्र में ऐसे ही एक तपस्वी संत थे, जो राजघराने में जन्म लेने के बाद इस क्षेत्र में अपने पशुओं को चराने आए थे और एक संत से मिलकर सांसारिक जीवन त्याग कर माने हुए संत बन गए. हम बात कर रहे हैं मुनिजी महाराज की…और पढ़ेंX
मुनिजी
मुनिजी महाराज

दर्शन शर्मा/सिरोही. जिले के माउंट आबू क्षेत्र को पर्यटक स्थल के साथ ही इसे संत महात्माओं की तपोभूमि के रूप में भी जाना जाता है. यहां के संतों ने कई साल तक आबू के जंगलों में तपस्या कर लोगों को सही मार्ग दिखाने का काम किया. इस क्षेत्र में ऐसे ही एक तपस्वी संत थे, जो राजघराने में जन्म लेने के बाद इस क्षेत्र में अपने पशुओं को चराने आये थे और एक संत से मिलकर सांसारिक जीवन त्याग कर माने हुए संत बन गए. हम बात कर रहे हैं मुनिजी महाराज की. आबू क्षेत्र में मुनि जी महाराज की समाधि ईसरा गांव स्थित वास्तानेश्वर महादेव मंदिर परिसर और उनकी कुटिया केर गांव में है, यहां जिले ही नही, अन्य जिलों और राज्यों से भक्त आते हैं.

राज परिवार के युवा बने संतसंत जीवन में आने से पहले मुनिजी महाराज के जीवन के बारे में मान्यता है कि उनका जन्म वर्तमान के पाकिस्तान, सिंध प्रांत के अमरकोट के राजघराने में सोढा राजपूत जौहर सिंह के रूप में हुआ था. पिंडवाड़ा निवासी नितेश रावल ने बताया कि जौहर सिंह का जन्म 1897 में अमरकोट किले में हुआ था. मुनि जी महाराज को लेकर किंवदंती है कि अमरकोट क्षेत्र में भयंकर अकाल के कारण मुनिजी महाराज 1925 के आसपास गायों को चराने के लिए आबू आए थे. मुनिजी के साथ एक रेबारी समाज के पशुपालक भी थे. यहां आकर आबू की तलहटी में, सिरोही के गाँव अनादरा के समीप एक तपस्वी संत से आकस्मिक भेंट हो गई.

संत से मिलकर हुआ था ब्रह्म का अहसाससंत ने मुनिजी से कुछ दूध मांगा, तो उन्होंने तुरंत कुछ दूध दे दिया. तब संत ने दूध लेने के बाद अपनी झोली से एक फल निकाला और उन दोनों को दे दिया, और वहां से जंगलों की तरफ चले गए. मुनिजी के साथ चल रहा पशुपालक तो यहां के संत की तपस्या को जानता था, तो उसने प्रसाद नहीं लेकर नीचे ही रख दिया, लेकिन तेज भूख लगने के कारण मुनिजी ने उस फल को खा लिया. इसके बाद उन्हें हृदय परिवर्तन का अहसास हुआ और परम शांति का अनुभव होने पर मुनि जी संत की तलाश में जंगल की तरफ चले गए. कई साल तक मुनिजी वापस घर नहीं लौटे, तो उनके बड़े भाई जवानसिंह अमरकोट से उनकी खोज में आबू की ओर आए, लेकिन काफी खोजबीन के बाद उस पशुपालक से मुलाकात हुई और उन्होंने पूरी घटना जवानसिंह को बताई. कई साल बाद जब मुनिजी लौटे, तो तपस्वी संत के रूप में क्षेत्र में पहचान बनाई. काफी समय तक वे मौन रहने से उन्हें भक्त मौनी महाराज और बाद में मुनिजी महाराज के रूप में पहचान बनाई.

मेले में आते हैं अन्य राज्यों से भी भक्त

ईसरा के पास स्थित वास्तानेश्वर महादेव मंदिर को मुनि जी की तपस्या भूमि माना जाता है. साथ ही, केर गांव में बने एक मकान में मुनि जी का मंदिर और अखण्ड धूणा चलता है. यहां काफी संख्या में भक्त आते हैं. मुनिजी की पुण्य तिथि पौष सुदी सप्तमी को वास्तानेश्वर महादेव मंदिर में विशाल मेला भरता है.इस मेले में राजस्थानके अलावा गुजरात से भी काफी भक्त और साधु संत पहुंचते हैं.


Location :

Sirohi,Rajasthan

First Published :

February 08, 2025, 15:12 IST

homerajasthan

राजघराने में जन्मे जौहर सिंह बने वैरागी, महलों से कुटिया तक का सफर

Source link

Related Articles

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Back to top button

Uh oh. Looks like you're using an ad blocker.

We charge advertisers instead of our audience. Please whitelist our site to show your support for Nirala Samaj