कर्नाटक हाईकोर्ट ने मुस्लिम संपत्ति बंटवारे पर उठाए सवाल.

Property Division in Muslim Families: कर्नाटक हाईकोर्ट ने कुछ दिनों पहले संपत्ति विवाद के एक मामले की सुनवाई करते हुए कहा कि भारत में सभी महिलाएं समान हैं लेकिन धर्म के अनुसार व्यक्तिगत कानून महिलाओं के बीच अंतर करता है. हालांकि महिलाएं भी भारत की नागरिक हैं. जस्टिस एच. संजीव कुमार ने कहा, “हिंदू कानून के तहत एक ‘महिला’ को जन्म से ही समान अधिकार प्राप्त होते हैं. हिंदू कानून के तहत, एक बेटी को सभी मामलों में बेटे के समान दर्जा और अधिकार दिए जाते हैं, लेकिन इस्लामिक कानून के तहत ऐसा नहीं है.”
न्यू इंडियन एक्सप्रेस की रिपोर्ट के मुताबिक कोर्ट ने केंद्र और राज्य सरकारों से कहा, “वे समान नागरिक संहिता पर कानून बनाने के लिए तेजी से काम करें.” कोर्ट का मानना है कि जब तक ऐसा नहीं होता, तब तक महिलाओं को धर्म के आधार पर अलग-अलग कानूनों का सामना करना पड़ेगा, जो कि संविधान में दी गई बराबरी के खिलाफ है. कोर्ट ने कहा कि हिंदू कानून में ऐसा भेदभाव नहीं है, वहां भाई-बहन को बराबर हक मिलता है. इसलिए यह यूसीसी की जरूरत को दिखाता है.
मुस्लिम परिवार में मुखिया के न रहने पर किस तरह होता है संपत्ति का बंटवारा और मुस्लिम महिलाओं को संपत्ति में कितना अधिकार मिलता है? समझते जानते हैं इस बारे में…
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किस तरह होता है संपत्ति का बंटवारामुस्लिम परिवारों में संपत्ति का बंटवारा मुस्लिम पर्सनल लॉ (शरिया) एप्लीकेशन एक्ट 1937 के तहत होता है. मुस्लिमों में जन्म के समय से ही संपत्ति में अधिकार नहीं मिलता है. मुस्लिम पर्सनल लॉ के अनुसार, किसी व्यक्ति की मौत के बाद उसके उत्तराधिकारी उसका अंतिम संस्कार करें. अगर उसके ऊपर कोई कर्जा है तो वो चुकाएं. तब जाकर वसीयत तय होती है. इस्लामी कानून के मुताबिक, मुस्लिम व्यक्ति अपनी संपत्ति का एक तिहाई हिस्सा किसी के भी नाम वसीयत कर सकता है. जबकि, बाकी का हिस्सा उसके परिवार के सदस्यों में बंटता है. वो चाहे तो ये हिस्सा अपने किसी कानूनी वारिस को दे सकता है. अगर मरने से पहले उसने एक तिहाई हिस्सा किसी को नहीं दिया या वसीयत नहीं लिखी गई है तो संपत्ति का बंटवारा कुरान और हदीस में बताए गए नियमों के आधार पर किया जाता है.
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महिलाओं को नहीं मिलता बराबरी का हकमुस्लिम पर्सनल लॉ के मुताबिक, महिलाओं को पुरुषों की तुलना में संपत्ति में बराबरी का हक नहीं मिलता. पिता की संपत्ति में बेटी को बेटे की तुलना में आधा हक ही मिलता है. अगर किसी शख्स के एक बेटा और बेटी है तो पिता की संपत्ति में बेटे को दो तिहाई और बेटी को एक तिहाई संपत्ति ही मिलेगी. वहीं, पत्नी को अपने पति की संपत्ति में एक चौथाई हिस्सा मिलता है. अगर बच्चे हैं तो ऐसी स्थिति में आठवां हिस्सा मिलेगा. अगर किसी व्यक्ति की एक से ज्यादा पत्नियां हैं तो फिर कुल संपत्ति का सोलहवां हिस्सा ही मिलेगा. अगर परिवार में बेटे की मौत हो जाती है तो उसकी मां को अपने बेटे की संपत्ति में छठा हिस्सा मिलता है. यह कुरान के अनुसार औरतों को संपत्ति पर अधिकार दिए गए हैं. मुस्लिम पर्सनल लाॅ में यही बातें लागू हैं. हां अगर किसी औरत का हक मारा जाता है, तो वो कोर्ट की शरण में जा सकती है.
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क्यों किया गया इस तरह का बंटवारायहां यह बात भी गौर करने वाली है कि मुस्लिम समाज में ऐसा क्यों किया गया है. मुस्लिम समाज में बेटियों को परिवार से संबंधित किसी भी तरह की जिम्मेदारी नहीं दी गई है, जबकि पूरी जिम्मेदारी बेटों के ऊपर है. पिता की मौत के बाद अगर उस पर कोई कर्ज है, तो उसे चुकाने की जिम्मेदारी बेटे की होती है. अगर मां जीवित है तो उसकी देखभाल की जिम्मेदारी भी बेटे की ही होती है वो भी जिंदगी भर के लिए. बेटियों को इस तरह की कोई जिम्मेदारी नहीं दी गई है. यही वजह है कि संपत्ति में अधिकार भी बेटों को बेटियों से दोगुना दिया गया है.
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महिला को कमाने और संपत्ति रखने का हकअगर किसी व्यक्ति की सिर्फ बेटियां हैं और बेटे नहीं हैं तो उन्हें संपत्ति का दो तिहाई हिस्सा मिलेगा. अगर सिर्फ एक बेटी है तो उसे कुल संपत्ति का आधा हिस्सा मिलेगा. कुरान के अनुसार महिलाओं को अपनी मेहनत से कमाने और संपत्ति बनाने का अधिकार है. अपनी कमाई से ली गई संपत्ति की वह खुद मालकिन होगी. वह उस संपत्ति का इस्तेमाल अपने मनमाफिक कर सकती है. अगर किसी महिला को उसकी संपत्ति से जबरन वंचित किया जाता है तो यह इस्लाम में हराम है.