National

बच्‍चों में डायबिटीज बन रही खतरा, AIIMS में हर महीने आ रहे 15 डायबिटिक बच्‍चे, 85% टाइप-1 डायबिटीज से ग्रस्‍त

Type-1 Diabetes in Children: डायबिटीज से जूझ रही बड़ी आबादी के चलते जहां पूरी दुनिया का ध्‍यान व्‍यस्‍कों की टाइप-2 डायबिटीज पर है वहीं इसकी आड़ में बच्‍चों में टाइप-1 डायबिटीज की समस्‍या बढ़ती जा रही है. यह ऑटो इम्‍यून बीमारी न केवल बचपन को खत्‍म कर रही है बल्कि देश के भविष्‍य को बीमार कर रही है. इसे लेकर देश के अलग-अलग हिस्‍सों से आने वाले बच्‍चों का इलाज करने वाले ऑल इंडिया इंस्‍टीट्यूट ऑफ मेडिकल साइंसेज नई दिल्‍ली में पीडियाट्रिक डायबिटीज के आंकड़े काफी चिंताजनक हैं. सिर्फ इंसुलिन से इलाज पर निर्भर यह डायबिटीज बच्‍चों में धीरे-धीरे बढ़ रही हैअ को तेजी से अपनी गिरफ्त में ले रही है.

ऑल इंडिया इंस्‍टीट्यूट ऑफ मेडिकल साइंसेज नई दिल्‍ली में पीडियाट्रिक एंडोक्राइनोलॉजी डिविजन की प्रोफेसर वंदना जैन बताती हैं कि लगभग 10 साल पहले तक एम्‍स में महीने में डायबिटीज के 2 या 3 नए बच्‍चे ही आते थे लेकिन अब मरीजों की संख्‍या बढ़ गई है. अब एम्‍स में हर महीने 12 से 15 नए बच्‍चे डायबिटीज के इलाज के लिए आ रहे हैं और करीब 1000 बच्‍चे सालाना फॉलोअप के लिए आ रहे हैं. ऐसे में बच्‍चों में डायबिटीज की बीमारी कई गुना तक बढ़ती हुई दिखाई दे रही है.

एम्‍स में सबसे ज्‍यादा टाइप-1 डायबिटिक बच्‍चे

diabetes, kids diabetes, diabetes in children, type-1 diabetes, diabetes in hindi

दिल्‍ली एम्‍स में हर महीने करीब 15 डायबिटिक बच्‍चे इलाज के लिए आ रहे हैं.

डॉ. वंदना कहती हैं कि जहां व्‍यस्‍कों में टाइप-2 डायबिटीज सबसे ज्‍यादा है वहीं अस्‍पताल में आने वाले 0-14 साल तक के बच्‍चों में टाइप-1 डायबिटीज के मामले सबसे ज्‍यादा देखने को मिल रहे हैं. एम्‍स आने वाले डायबिटीज ग्रस्‍त बच्‍चों में 85 % बच्‍चे टाइप-1 डायबिटीज से ग्रस्‍त हैं. जबकि बाकी बचे 15 फीसदी में टाइप-2 डायबिटीज यानि इंसुलिन रेसिस्‍टेंस, नियोनेटल डायबिटीज और कैंसर, हार्ट या किडनी रोगों की दवाओं के चलते ड्रग इंड्यूज डायबिटीज के मरीज शामिल हैं. चूंकि इस बीमारी का कारण भी अभी तक मालूम नहीं चल पाया है, ऐसे में इससे बचाव के उपाय ढूंढना भी अभी तक चुनौतीपूर्ण बना हुआ है.

बच्‍चों की इस उम्र में डायबिटीज का पीक

टाइप-1 डायबिटीज 6 महीने से 30 साल की उम्र में कभी भी हो सकती है लेकिन एम्‍स के पीडियाट्र्रिक एंडोक्राइनोलॉजी विभाग के अनुसार यह बच्‍चों के दो एज ग्रुप में सबसे ज्‍यादा देखने को मिल रही है. 5-6 साल और प्‍यूबर्टी एज यानि 10-13 साल की उम्र इसकी पीक एज हैं.

सिबलिंग में डायबिटीज होने का खतरा 15 फीसदी ज्‍यादा

प्रो. जैन कहती हैं कि टाइप-1 डायबिटीज ऑटो इम्‍यून बीमारी है और इसकी कोई फैमिली हिस्‍ट्री नहीं होती जैसे कि टाइप-2 डायबिटीज में देखने को मिलती है. देखा जा रहा है कि परिवार में किसी को डायबिटीज नहीं है फिर भी यह बीमारी बच्‍चे को हो रही है. इतना ही नहीं सिबलिंग यानि सगे भाई-बहन में एक के भी टाइप-1 डायबिटिक होने पर दूसरे भाई-बहनों को डायबिटीज होने का खतरा आम बच्‍चों के मुकाबले 15 फीसदी ज्‍यादा है.

टाइप-1 डायबिटीज के लेट डायग्‍नोसिस पर हो रहीं ये बीमारियां

diabetes, kids diabetes, diabetes in children, type-1 diabetes, diabetes in hindi

अनियंत्रित डायबिटीज के चलते बच्‍चों में कई गंभीर बीमारियां देखने को मिल रही हैं.

1. नेफ्रोपैथी- डॉ. जैन कहती हैं कि डायबिटीज की समय से जांच या सही इलाज न मिलने के चलते कई जानलेवा कॉप्लिकेशंस आ जाते हैं, इन्‍हीं में से एक है नेफ्रोपैथी. एम्‍स में लेट डायग्‍नोसिस वाले टाइप-1 डायबिटिक बच्‍चों में नेफ्रोपैथी सबसे ज्‍यादा देखी जा रही है. यह एक क्रॉनिक किडनी रोग होता है, जिसमें डायबिटीज के चलते किडनी के फिल्‍टर को नुकसान पहुंचता है और किडनी फेल्‍योर तक हो जाता है.

2. डायबिटिक कीटो एसिडोसिस- गंभीर टाइप-1 डायबिटिक बच्‍चों में दूसरी सबसे कॉमन परेशानी है डायबिटिक कीटो एसिडोसिस. यह जीवन के लिए घातक है और इसमें तुरंत इलाज की जरूरत पड़ती है. इंसुलिन की कमी के कारण जब ब्‍लड में कीटोंस जमा होने लगते हैं और शरीर के फैट को जलाने लगते हैं तो यह बीमारी सामने आती है.

3. कैटरेक्‍ट- डायबिटीज का आंखों से गहरा संबंध है. अनियंत्रित ब्‍लड शुगर की वजह से आंखों में मोतियाबिंद होने का खतरा सबसे ज्‍यादा रहता है. डॉ. जैन कहती हैं कि एम्‍स में भी डायबिटीज की वजह से होने वाली कैटरेक्‍ट की बीमारी के मरीज काफी आ रहे हैं.

4. डायबिटिक रेटिनोपैथी- डायबिटीज का खराब नियंत्रण करने पर यह बीमारी होने की संभावना है. जिन बच्‍चों को डायबिटीज है लेकिन आंखों की जांच नहीं कराते, उस स्थिति में डायबिटिक रेटिनोपैथी होना संभव है. एम्‍स में भी ऐसे बच्‍चे आ रहे हैं.

5. मल्‍टी ऑर्गन फेल्‍योर – टाइप -1 डायबिटीज के दौरान पर्याप्‍त इंसुलिन न लेने या समय पर सही डायग्‍नोसिस न होने के चलते कई बार मल्‍टी ऑर्गन जैसे हार्ट, लिवर, किडनी आदि फेल्‍योर होने के चांसेज बढ़ जाते हैं. डायबिटीज को सही तरह कंट्रोल करना सबसे जरूरी है.

डायबिटीज के मिस डायग्‍नोसिस या सही इलाज के अभाव में आखिर में एम्‍स में इलाज के लिए आने वाले डायबिटिक बच्‍चों में ग्रोथ का रुकना, आंखों के लेंस में बार बार बदलाव, सेंसरी नेफ्रोपैथी, आइसीमिक हार्ट डिजीज और पेरिफेरल वैस्‍कुलर डिजीज जैसे कॉम्प्लिकेशन भी देखे जा रहे हैं.

टाइप-1 डायबिटिक बच्‍चों का दोस्‍त है इंसुलिन

डॉ. वंदना बताती हैं कि एम्‍स में पीडियाट्रिक एंडोक्राइनोलॉजी डिविजन की ओर से WWW.Type1diabetes.co.in नाम से एक वेबसाइट बनाई गई है. एम्‍स के विशेषज्ञों की ओर से इस वेबसाइट पर टाइप-1 डायबिटीज को लेकर पूरी जानकारी दी गई है. यह खासतौर पर डायबिटिक बच्‍चों की देखभाल करने वाले केयरटेकर या पेरेंट्स के लिए है, ताकि वे यहां से जानकारी लेकर बच्‍चों की बेहतर देखभाल कर सकें. सबसे खास बात है कि इस बीमारी से पीड़‍ित बच्‍चों की दिन में कई बार शुगर की जांच और डॉ. द्वारा बताई गई पर्याप्‍त इंसुलिन देना सबसे जरूरी है. समझने की जरूरत है कि इंसुलिन बच्‍चों का मित्र है न कि इसे परेशानी के तौर पर देखा जाए.

वहीं डायबिटीज पर कई रिसर्च-स्‍टडीज कर चुके करनाल स्थित एंडोक्राइनोलॉजिस्‍ट डॉ. संजय कालरा कहते हैं बच्‍चों में टाइप-1 डायबिटीज की समस्‍या तेजी से बढ़ रही है, हालांकि इलाज भी मिलना संभव हुआ है. करनाल के आसपास देखा गया है कि आज से 20 साल पहले तक जो लड़कियां टाइप-1 डायबिटीज के चलते दम तोड़ देती थीं, आज वे इंसुलिन मिलने से जिंदा हैं. इसलिए इंसुलिन को लेकर कोई भी भ्रम न रखें, यही टाइप-1 डायबिटीज का इलाज है.

Tags: AIIMS, Delhi AIIMS, Diabetes

Source link

Related Articles

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Back to top button

Uh oh. Looks like you're using an ad blocker.

We charge advertisers instead of our audience. Please whitelist our site to show your support for Nirala Samaj