जानिए कैसे रोके मटर की फसल में बढ़ते रोग और कीट प्रकोप को

Last Updated:November 28, 2025, 12:03 IST
सर्दियों में मटर की फसल को सफलतापूर्वक उगाने के लिए सही सिंचाई, पोषक तत्वों का संतुलन, जैविक कीट प्रबंधन और मौसम के अनुसार सुरक्षा उपाय बेहद जरूरी हैं. मिट्टी की उपजाऊ शक्ति बनाए रखना, पौधों को हल्की नमी और धूप देना, फफूंद और कीटों से बचाव करना, तथा नीम तेल या जैविक स्प्रे का प्रयोग करने से उत्पादन बढ़ सकता है और पौधे स्वस्थ रहते हैं. विशेषज्ञों के अनुसार इन सरल उपायों से मटर की फसल में 20-30% तक बढ़ोतरी संभव है.
सर्दियों की प्रमुख फसल मटर इस बार कई किसानों और घरेलू गार्डन तैयार करने वाले लोगों के लिए चुनौती बन गई है. खेतों में पौधों का पीला पड़ना, पत्तियों का सिकुड़ना, फंगस का लगना और कीड़ों का हमला लगातार बढ़ रहा है. कृषि विभाग ने ऐसे मामलों पर चिंता जताते हुए कुछ जरूरी उपाय बताए हैं, जिनकी मदद से किसान अपनी फसल को बचा सकते हैं और अच्छी पैदावार सुनिश्चित कर सकते हैं.

विशेषज्ञों के अनुसार मटर की फसल को सबसे ज्यादा नुकसान खराब मिट्टी और गलत पानी प्रबंधन से होता है. अगर मिट्टी बहुत भारी है और उसमें पानी रुकता है, तो पौधों की जड़ें जल्दी सड़ने लगती हैं. इस कारण पौधे कमजोर होकर बढ़ना बंद कर देते हैं, इसलिए कृषि विभाग ने सलाह दी है कि बुवाई से पहले मिट्टी में गोबर की सड़ी हुई खाद, रेत और सूखे पत्तों की मात्रा मिलाई जाए, ताकि मिट्टी हल्की, भुरभुरी और उपजाऊ बने.

जरूरत से ज्यादा पानी देना मटर के पौधों के लिए हानिकारक है, मटर के पौधों को हल्की नमी पसंद है, लेकिन लगातार गीली मिट्टी उन्हें नुकसान पहुंचाती है. विशेषज्ञों ने स्पष्ट कहा है कि सिंचाई तभी करनी चाहिए जब मिट्टी ऊपर से सूखी दिखाई दे. ज्यादा पानी देने से फफूंद का संक्रमण तेजी से फैलता है, जिससे पौधे काले पड़ने और गलने लगते हैं.
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कृषि विज्ञान केंद्रों ने कीट प्रबंधन पर भी खास ध्यान देने की अपील की है, मटर की फसल पर सबसे ज्यादा हमला एफिड्स यानी महू करते हैं. ये छोटे काले कीड़े पत्तों का रस चूस लेते हैं, जिससे पौधे की बढ़वार रुक जाती है. इससे न सिर्फ पौधा कमजोर होता है बल्कि फलियों की संख्या भी कम हो जाती है. इस समस्या के समाधान के लिए किसानों को नीम तेल या जैविक स्प्रे का सप्ताह में एक बार उपयोग करने की सलाह दी गई है.

पौधों के पीले पड़ने का एक बड़ा कारण पोषक तत्वों की कमी भी है, कृषि विशेषज्ञों का कहना है कि सरसों की खली का घोल, वर्मी कम्पोस्ट या घर की बनी जैविक खाद को महीने में दो बार खेत में डालने से पौधे फिर से हरे-भरे हो जाते हैं. इससे पौधों में फूल बनने की प्रक्रिया भी तेज होती है और फलियों की संख्या स्वाभाविक रूप से बढ़ती है.

मौसम भी मटर की फसल पर सीधा असर डालता है, तेज पाला या अचानक बढ़ी ठंड से पौधे झुलस जाते हैं. ऐसे में रात के समय खेत में पौधों के आसपास सूखी घास डालना या पौधों को हल्के कपड़े से ढककर रखना काफी फायदेमंद माना जाता है, इससे पौधे ठंड की मार से बच जाते हैं.

कृषि विभाग ने किसानों को सलाह दी है कि समय पर निरीक्षण, सही सिंचाई, जैविक कीट प्रबंधन और पोषक तत्वों का संतुलन बनाए रखकर वे अपनी मटर की फसल को खराब होने से बचा सकते हैं. इन उपायों से उत्पादन में 20 से 30 प्रतिशत तक बढ़ोतरी होने की संभावना बताई गई है.
First Published :
November 28, 2025, 12:03 IST
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