असम में चुनाव आयोग ने स्पेशल रिवीजन क्यों चुना? जानें कारण

चुनाव आयोग ने बिहार के बाद पश्चिम बंगाल-दिल्ली, मध्य प्रदेश और यूपी समेत 12 राज्यों में SIR यानी स्पेशल इंटेंसिव रिवीजन करने का ऐलान किया है. लेकिन बीजेपी शासित असम को इससे अलग रखा गया है. अब चुनाव आयोग ने सोमवार को असम में वोटर लिस्ट का स्पेशल रिवीजन (SR) करवाने का आदेश दिया है. सवाल ये है कि आखिर असम को SIR से क्यों बाहर रखा गया? स्पेशल रिवीजन और स्पेशल इंटेंसिव रिवीजन में क्या फर्क है?
पहली बात तो ये जान लीजिए कि असम बॉर्डर स्टेट होने की वजह से विशेष परिस्थितियों वाला राज्य है. यहां नागरिकता, NRC, सुप्रीम कोर्ट की निगरानी और कई तरह के स्थानीय कानूनों से जुड़ी दिक्कतें हैं. कुछ मामले सुप्रीम कोर्ट में भी चल रहे हैं. इसी वजह से चुनाव आयोग ने असम के लिए खास तौर पर SIR नहीं बल्कि एक वैकल्पिक मॉडल स्पेशल रिवीजन लागू करने का फैसला किया है. असम के मुख्यमंत्री हिमंता बिस्वा सरमा ने ECI के इस निर्णय का स्वागत किया है. उन्होंने X पर लिखा, चुनाव आयोग का स्पेशल रिवीजन का फैसला सराहनीय है. इससे एक साफ, अपडेटेड और सटीक मतदाता सूची बनाए रखने में मदद मिलेगी. राज्य सरकार हर संभव सहयोग देगी. सरमा सरकार पहले भी NRC प्रक्रिया और नागरिकता सत्यापन को लेकर एक सख्त रुख रखती रही है. लेकिन इस बार चुनाव आयोग ने राज्य प्रशासन के साथ पूरी सहमति बनाकर यह मॉडल लागू किया है.
SIR नहीं, स्पेशल रिवीजन में क्या है अंतर?
इलेक्शन से पहले हर राज्य में वोटर लिस्ट का शुद्धिकरण होता है, फर्जी या गलत नाम काटे जाते हैं और सही नाम जोड़े जाते हैं. यह हर साल होता है. इसे समरी रिवीजन (Summary Revision) बोला जाता है. लेकिन स्पेशल रिवीजन इससे अलग है. यह न तो समरी रिवीजन जैसा है और ना ही स्पेशल इंटेंसिव रिवीजन जैसा. इसे आप दोनों के बीच का मान सकते हैं. एक तरह से हाइब्रिड मॉडल.
इलेक्शन कमीशन के अधिकारियों ने स्पष्ट किया कि इस प्रक्रिया में BLOs यानी बूथ लेवल ऑफिसर्स सीधे फील्ड में जाकर पहले से तैयार रजिस्टर के आधार पर मतदाताओं की जानकारी सत्यापित करेंगे, बजाय इसके कि फॉर्म भरवाकर पूरी नई सूची बनाई जाए. इसे प्रशासनिक रूप से तेज, लक्षित और कम विवादित माना जा रहा है. इसमें मतदाताओं की सूची की शुद्धता पर ज्यादा फोकस होगा, लेकिन SIR जैसी व्यापक नागरिकता आधारित जांच नहीं होगी.
स्पेशल रिवीजन की टाइमलाइन
डोर-टू-डोर सत्यापन 22 नवंबर से 20 दिसंबर तक होगा. इसके बाद 27 दिसंबर को ड्राफ्ट वोटर लिस्ट जारी की जाएगी. फाइनल वोटर लिस्ट 10 फरवरी को होगी. क्वालिफाइंग डेट 1 जनवरी 2026 रहेगी. यह समयसीमा चुनाव कार्यक्रम को ध्यान में रखकर तय की गई है क्योंकि असम विधानसभा चुनाव 2026 में होने हैं.
तो फिर असम में SIR क्यों नहीं? CEC ने बताई असली वजह
मुख्य चुनाव आयुक्त ज्ञानेश कुमार ने कुछ दिन पहले स्पष्ट किया था कि असम की परिस्थिति देश के अन्य राज्यों से भिन्न है. नागरिकता कानून के तहत असम के लिए अलग प्रावधान हैं और सुप्रीम कोर्ट की निगरानी में नागरिकता सत्यापन की प्रक्रिया अंतिम चरण में है. ऐसे में 24 जून को जारी SIR का आदेश एक समान रूप से असम पर लागू नहीं हो सकता था. बता दें कि असम NRC, विदेशी नागरिकों की पहचान और नागरिकता विवादों के कारण वर्षों से संवेदनशील राजनीतिक ज़मीन पर खड़ा है. ऐसे में कोई भी व्यापक मतदाता सत्यापन प्रक्रिया कानूनी जटिलताएं और तनाव बढ़ा सकती है. इसलिए आयोग ने मध्य विकल्प यानी स्पेशल रिवीजन अपनाया है.
चुनाव आयोग ने अन्य राज्यों में SIR क्यों किया?
पिछले महीने आयोग ने SIR का आदेश छत्तीसगढ़, गोवा, गुजरात, केरल, मध्यप्रदेश, राजस्थान, तमिलनाडु, यूपी, बंगाल, पुडुचेरी, लक्षद्वीप और अंडमान-निकोबार में जारी किया था. इनमें से कई राज्यों में 2026 में चुनाव होने हैं. जबकि असम में समान चुनावी समयसीमा होते हुए भी SIR को लागू नहीं किया गया, जिससे यह मामला और भी खास हो गया है.



