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जानिए कौन हैं नागौर में जन्मे बिश्नोई समाज के गुरु जम्भेश्वर महाराज, 34 वर्ष की उम्र में बिश्नोई पंथ की थी स्थापना

नागौर. राजस्थान की धरती पर अनेकों ऐसे लोक देवता हुए हैं जिन्होंने पशु, पक्षी व मानव जाति की रक्षा के लिए कई हितकारी काम किए हैं. इन अच्छे कार्यों के कारण उन्हें भगवान का दर्जा मिला. इनमें से एक थे संत गुरु जंभेश्वर महाराज, इन्होंने 29 नियम की आचार संहिता बनाकर बिश्नोई पंथ की स्थापना की थी. नागौर क्षेत्र के लोग आज भी इन्हें भगवान की तरह पूजते हैं और उनके बनाए नियमों पर चलते हैं.

बिश्नोई समाज के इतिहासकारों के अनुसार गुरु जंभेश्वर जी का जन्म 1451 ईस्वी (विक्रम संवत 1508) में कृष्ण जन्माष्टमी के दिन नागौर जिले के पीपासर गांव में हुआ था. जंभेश्वर जी के पिता का नाम लोहट पंवार और मां का नाम हंसादेवी था. गुरु जंभेश्वर भगवान के बारे में ऐसा कहा जाता है कि वे लगभग 7 वर्ष तक मौन रहें. इसलिए इन्हें बचपन में गूंगा एवं धनराज के नाम से पुकारा जाता था. जंभेश्वर जी महाराज के गुरु का नाम गोरखनाथ था. जंभेश्वर जी को श्रीकृष्ण का अवतार माना जाता है. माता-पिता के निधन के बाद जम्भेश्वर जी ने अपनी संपूर्ण जिंदगी मानव सेवक को समर्पित की थी. इन्होंने मात्र 34 साल की उम्र में बिश्नोई पंथ की स्थापना की थी.

बिश्नोई पंथ की स्थापना की थीसंत जंभेश्वर जी महाराज ने सन् 1485 में मात्र 34 वर्ष की उम्र में बिश्नोई पंथ की स्थापना की. इस पंथ के लोग आज भी उनके बताए हुए नियमों पर चलते हैं. जीव और मानव सेवा को समर्पित यह पंथ जंभेश्वर महाराज को अपना आराध्य मानते हैं. 1536 में लालासर में गुरु जम्भेश्वर निर्वाण को प्राप्त हुए. उनका समाधि स्थल आज भी मुकाम गांव (बीकानेर) में स्थित है. कहा यह भी जाता है कि गुरु महाराज ने समाधि लेने से पहले खेजड़ी और जाल के वृक्ष को अपनी समाधि का चिह्न बताया था. आज उसी जगह पर उनकी समाधि बनी हुई है.

मंदिर में हर साल दो बड़े मेले भरते हैंआपको बता दें कि जम्भेश्वर महाराज के मुकाम मंदिर ओर पीलासर में हर साल दो बड़े मेले भरते हैं. पहला फाल्गुन अमावस्या पर और दूसरा आसोज अमावस्या के दिन. बताया जाता है कि फाल्गुन अमावस्या का मेला बहुत पुराना है. हर साल आसोज अमावस्या पर यहां हरियाणा, पंजाब और राजस्थान से लोग आते हैं तथा मुक्तिधाम में मत्था टेकते हैं.

बिश्नोईयों के लिए 29 नियम की आचार संहिता बनाई थीजम्भेश्वर जी ने बिश्नोई समाज के लोगों के लिए 29 नियम की आचार संहिता बनाई थी. इसी आधार पर कई इतिहासकारों ने बीस और नौ नियमों को मानने वाले को बिश्नोई कहा है. गुरु जांभो जी को पर्यावरण वैज्ञानिक भी कहा जाता है.

Tags: Local18, Nagaur News, Rajasthan news

FIRST PUBLISHED : October 13, 2024, 21:01 IST

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