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कोटा: राजस्थान के कोटा में आज गुजराती जेठी समाज ने विजयदशमी का पर्व अपनी 150 साल पुरानी परंपरा निभाते हुए मनाया. बुराई पर अच्छाई की जीत के प्रतीक रावण का वध पांवों से जेठी समाज के पहलवानों ने किया. जेठी समाज की हाडौती में संख्या बहुत कम है, लेकिन विजयदशमी पर जेठी समाज रावण का वध अलग तरीके से करके अपनी मौजूदगी दर्ज करवा देता है.
मिट्टी का रावणसोहन जेठी (जेठी समाज के मुखिया) ने लोकल 18 को बताया कि विजयदशमी के मौके पर जहां आज देश में रावण के पुतले के दहन की तैयारियां की जा रही हैं, वहीं राजस्थान में कोटा के नांता इलाके में जेठी समाज के लोगों ने हर साल की तरह इस साल भी मिट्टी का रावण बनाकर उसको पैरों से रोंदकर बुराई के प्रतीक का अंत किया. यहां पर यह रावण कुछ अलग है.
बता दें कि यहां रावण बहुत बड़ा तो नहीं बनाया गया है, लेकिन पेशेवर पहलवान जाति के लोगों की पुरानी परंपरा है कि जेठी समाज के लोग नवरात्रा के शुभारंभ में ही मंदिर में मिट्टी का रावण बनाते हैं और बुराई के प्रतीक को आज यानी दशमी के दिन पैरों से रोंदकर उस मिट्टी पर पहलवान जोर-अजमाइश कर विजयदशमी का पर्व कुछ इस अंदाज में मनाते हैं.
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हाडौती में कुश्ती का शौकसोहन जेठी ने बताया कि हाडौती में हाडा राजाओं का शासन था और राजाओं को कुश्ती देखने का बड़ा शौक था. यही वजह है कि करीब 150 साल पहले यहां के राजा कुछ पहलवान गुजरात से कोटा बुलवाते थे और उनकी कुश्ती करवाई जाती थी. यह सिलसिला सालों तक चलता रहा और जेठी समाज का कुनबा भी बढ़ता गया. यही पहलवान जाति जो दंगल करने के नाम से जानी जाती है, पहलवान आज के दिन उसी शिद्दत से कुश्ती करते हैं जैसे उनके पूर्वज करते आ रहे थे. बुराई के प्रतीक को पैरों से रोंदने की इस अनूठी परंपरा को देखने के लिए बड़ी तादाद में स्थानीय निवासी और जेठी समाज की महिलाएं और बच्चे भी इस आयोजन में शामिल होते हैं.
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FIRST PUBLISHED : October 13, 2024, 11:40 IST