Rajasthan

Kotputli Borewell Rescue Operation: 8 दिन और सैंकड़ों कर्मचारी-पुलिस, फूंक गए लाखों रुपये, जिम्मेदार कौन?

जयपुर. राजस्थान के कोटपुतली में 170 फीट गहरे खुले पड़े बोरवेल में गिरी तीन साल की चेतना 180 घंटे से चल रहे रेस्क्यू ऑपरेशन के बावजूद अभी तक बाहर नहीं निकल पाई है. इसके बावजूद सरकार अभी भी नहीं चेत रही है. राजस्थान में बार-बार होने वाले इन बोरवेल हादसों के लिए आखिर जिम्मेदार कौन है? सरकार, प्रशासन, इनमें गिरने वाले बच्चे या फिर उनके परिजन. यह अभी तक तय नहीं हो पाया है. जाहिर बच्चे तो नहीं हो सकते. वो तो मासूम होते हैं. उन्हें सही गलत का समझ नहीं होती है. वे खतरे को भांप नहीं पाते हैं.

राजस्थान समेत अन्य राज्यों में बार-बार ऐसे हादसे होते हैं और उनमें लाखों रुपये रेस्क्यू ऑपरेशन में खर्च हो जाते हैं. कुछ में परिणाम पॉजिटिव आता है तो कुछ में नगेटिव. इन रेस्क्यू ऑपरेशन में पुलिस प्रशासन और रेस्क्यू टीम के सैंकड़ों अधिकारी कर्मचारी जुटते हैं. करोड़ों रुपये के संसाधन झौंके जाते हैं. ऑपरेशन में लाखों रुपये लगाए जाते हैं. फिर भी सफलता की कोई गारंटी नहीं होती है. आखिर ऐसा क्यों होता है? राजस्थान में राजधानी जयपुर के आसपास ही ही दो सप्ताह में दो बड़े बोरवेल हादसे हो चुके हैं.

महज दो सप्ताह में दो बड़े हादसे हो गएबीते 10 दिसंबर को दौसा जिले में कालीखाड़ गांव में मासूम आर्यन खुले बोरवेल में गिर गया था. उसे बचाने के लिए 52 घंटे तक रेस्क्यू ऑपरेशन चला था. लेकिन रिजल्ट नेगेटिव रहा. आर्यन को बचाया नहीं जा सका. उसके बाद 23 दिसंबर को कोटपुतली के बड़ीयाली ढाणी में तीन साल की चेतना खुले बोरवेल में गिर गई. उसे बचाने के लिए 180 घंटे से रेस्क्यू ऑपरेशन चल रहा है. अभी तक रेस्क्यू टीम उस तक पहुंच नहीं पाई है.

सरकारी मशीनरी पूरे संसाधन झौंक देती हैइसमें कोई शक नहीं है कि ऐसे हादसों में बच्चों को बचाने के लिए सरकारी मशीनरी पूरे संसाधन झौंक देती है. पीड़ित को बचाने का हरसंभव प्रयास किया जाता है. लेकिन सवाल यह है कि इन हादसों से सबक क्यों नहीं लेते? क्या इसके लिए कुछ कड़े प्रावधान नहीं किए जानें चाहिए या फिर यह सिलसिला बदस्तूर यूं ही चलता रहेगा.

सरकार यह क्यों नहीं करती?

 बोरवेल को लेकर सख्त गाइडलाइन बनाए.

 बोरवेल की सुरक्षा की जिम्मेदारी उसके मालिक को दी जाए.

 बोरवेल को लेकर समय-समय पर सर्वे कंडक्ट करवाए.

 बोरवेल खुला मिलने पर उसके मालिक पर जुर्माना लगाया जाए.

 बोरवेल खुला हो या बंद हो उसके तारबंदी या चार दीवारी की बाध्यता हो.

 हादसा होने पर उसके हर्जे खर्चे का भार उसके मालिक पर भी आना चाहिए.

 बोरवेल को लेकर उसके मालिक के खिलाफ कड़े का प्रावधान किए जाए.

 ग्रामीण स्तर के सरकारी कर्मचारियों और पंचायतों को इनकी सर्वे और कार्रवाई का जिम्मा दिया जाए.

 बोरवेल की खुदाई से पहले शर्तों की पालना का शपथ पत्र लिया जाए.

 दो चार मामलों में कड़ी कार्रवाई कर उदाहरण पेश किए जाए.

संबंधित मालिक के खिलाफ पुलिस एक्शन कराएसरकार को ग्रामीण इलाकों में कार्यरत पटवारी या पंचायत का यह जिम्मा देना चाहिए कि इनकी सख्ती से मॉनिटरिंग करें. चालू या बंद बोरवेल खुला है तो संबंधित मालिक के खिलाफ पुलिस एक्शन कराए. महज 100-200 रुपये के ढक्कन के अभाव में उसकी कितनी भारी कीमत चुकानी पड़ती है इसका अंदाजा अब तो प्रशासनिक मशीनरी हो चुका है. इन रेस्क्यू ऑपरेशन में कितनी दिक्कतें आती है यह सबके सामने है.

हर एक जान कीमती हैपूरी सरकारी मशीनरी सब कामधाम छोड़कर उसमें लग जाती है. इससे दूसरे कार्य भी प्रभावित होते हैं. आज तक जितने रेस्क्यू ऑपरेशन चलाए गए है उतने में न जाने कितने बोरवेल ढके जा सकते थे. निश्चित तौर पर हर एक जान कीमती है. लेकिन उस जान पर ऐसे जोखिम आने से पहले ही उसे रोकने प्रयास क्यों नहीं किए जाते. अगर ये सब नहीं हुआ तो हादसे यूं ही होते रहेंगे.

Tags: Bhajan Lal Sharma, Big accident, Big news, Rescue operation

FIRST PUBLISHED : December 30, 2024, 13:46 IST

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