रश्मि सैनी को प्रत्याशी बनाने की इनसाइड स्टोरी, जानिए किसकी कितनी चली
जयपुर। ग्रेटर नगर निगम महापौर के उप चुनाव की रणभेरी बज चुकी है। भाजपा ने जहां रश्मि सैनी को प्रत्याशी बनाया है। भाजपा जहां बहुमत के आधार पर जीत की उम्मीद लगाए बैठी है, वहीं कांग्रेस भी भाजपा के वोटों में सेंधमारी के दम पर जीत को लेकर आश्वस्त है। मगर राह दोनों ही पार्टियों की कठिन नजर आ रही है। ग्रेटर नगर निगम को 10 नवंबर के नया महापौर मिल जाएगा। वर्तमान बोर्ड के महज दो साल के कार्यकाल में ही महापौर पद को लेकर उथल-पुथल रही। दो बार सौम्या गुर्जर इस पद पर आसीन रही तो दो बार शील धाभाई ने कार्यवाहक महापौर के रूप में पदभार संभाला है।
चार साल में पहली बार पार्टी ने एकजुटता दिखाकर एक नाम पर सहमति जताई है। लेकिन इसमें भी वसुंधरा राजे गुट के नेताओं की चली है। पार्टी ने सुखप्रीत बंसल को प्रत्याशी बनाने का मन बना लिया था, लेकिन ऐनवक्त पर विधायकों और विधानसभा प्रत्याशियों को बुलाकर चर्चा की गई तो पासा पलट गया। बंसल की जगह रश्मि सैनी के नाम पर सभी ने सहमति जता दी। खास बात यह रही कि जिन नेताओं ने पासा पलट वो ज्यादा वसुंधरा राजे गुट के हैं। इनमें विधायक कालीचरण सराफ, अशोक लाहोटी, नरपत सिंह राजवी, पूर्व विधायक राजपाल सिंह शेखावत और कैलाश वर्मा शामिल हैं।
इसलिए लगी सैनी के नाम पर मुहर
दरअसल, सैनी के नाम पर मुहर लगने की भी कई वजह रहीं। सैनी मूल ओबीसी हैं। इसलिए उन्हें टिकट देकर पार्टी ने यह संदेश दिया है कि वह मूल ओबीसी के साथ खड़ी है। दूसरी वजह यह रही कि सुखप्रीत बंसल के नाम पर विधायक और अन्य नेता एकमत नजर नहीं आए। उनके आगे बाहरी का ठपा भी लगा। जहां तक शील धाभाई की बात है तो उन्हें कांग्रेस सरकार ने कार्यवाहक महापौर बनाया था। पार्षदों का आरोप था कि वे कांग्रेस की ज्यादा सुन रही है और उनके साथ मिलकर काम कर रही हैं। ऐसे मं रश्मि सैनी के नाम पर मुहर लगी।
पिक्चर अभी बाकी है
हालांकि पिक्चर अभी खत्म नहीं हुई है। रश्मि सैनी के नाम को लेकर भी कई पार्षद राजी नहीं हैं। खुद विद्याधर नगर के पार्षद उनका विरोध कर चुके हैं। सैनी इस समय विद्युत समिति की चेयरमैन और रोड लाइट्स को लेकर विद्याधर नगर के पार्षदों के साथ उनकी नोंक—झोंक चुकी है। ऐसे में पार्टी के लिए इन विवादों को दबाना आसान नहीं होगा। वहीं प्रत्याशी नहीं बनाने से शील धाभाई भी नाराज हैं। उनका रोना और उनकी बेटी का हंगामा मचाना भी पार्टी को कहीं ना कहीं परेशान में डाल सकता है। उधर विष्णु लाटा के समय हुई क्रॉस वोटिंग के चलते भाजपा को एक वोट से हार का सामना करना पड़ा था, इसलिए पार्टी को चुनाव से पहले फूंक—फूंककर कदम रखना होगा।