Rajasthan

Laila majnu who is considered a symbol of love, the tomb of both built in village of Anupgarh – News18 हिंदी

विपुल अग्रवाल/ श्रीगंगानगर:- राजस्थान राज्य अपने आप में कई विशेषताएं रखता है और राजस्थान के गांव में यहां की संस्कृति की झलक देखने को मिलती है. राज्य के बड़े शहरों में ही नहीं, बल्कि गांवो में भी कई किस्से और कहानियां दफन हैं. ये किस्से पूरे राजस्थान में ही नहीं, बल्कि विश्व में सुने जाते हैं. चलिए हम आपको राजस्थान के एक ऐसे गाँव ले चलते हैं, जहां दो प्रेमी जोड़ियों ने भूख और प्यास से तड़प-तड़पकर अपनी जान दे दी थी. राजस्थान के श्रीगंगानगर जिले के अनूपगढ़ क्षेत्र के गांव बिंजौर अमर प्रेम के प्रतीक लैला मजनू की कहानी काफी चर्चित है, जो जीते जी तो एक नहीं हो सके, लेकिन मरने के बाद दोनों का नाम एक साथ लिया जाने लगा.

यह स्थान बिंजौर गांव भारत पाक अंतर्राष्ट्रीय सीमा पर तारबंदी से महज यह 5-7 किलोमीटर दूरी पर स्थित है. भारत पाक बॉर्डर पर स्थित इस गांव में एक मजार हिंदू-मुस्लिम सद्भावना का संदेश तो दे ही रही है, साथ ही यहाँ हिंदू सजदा कर अपनी खुशियों के लिए दुआएं मांगते हैं. वही मुस्लिम श्रद्धा से शीश नवा कर अमन चैन की प्रार्थना करते हैं. इन मजारों को दूर-दूर तक प्रेम के प्रतीक के रूप में लैला मजनू के नाम से जाना जाता है.

लैला के भाइयों से बचते हुए लैला और मजनू पहुंचे ये गांव

प्रचलित कथाओं के अनुसार पाकिस्तान में जन्मे लैला-मजनू अंतिम समय में अनूपगढ़ के बिंजौर गांव ही आए थे. लैला के भाई दोनों को मारने के लिए उनके पीछे पड़े हुए थे और दोनों छिपते-छिपाते पानी की तलाश में यहां पहुंचे और दोनों की प्यास से ही मौत हो गई. इसके बाद दोनों को एक साथ दफना दिया गया.

भारत-पाकिस्तान अंतरराष्ट्रीय बॉर्डर पर तारबंदी से पूर्व पाकिस्तान से भी लोग इन मजारों पर दुआ मांगने के लिए आते थे. परंतु दोनों देशों के बीच पनपे तनाव के चलते सरहद के उस पार से लोगों का इन मजारों पर मन्नतें मांगने के लिए आना बंद हो गया. इन सबके बीच सबसे महत्वपूर्ण बात यह है कि मेला कमेटी में कोई भी सदस्य मुसलमान नहीं है तथा गांव में भी कोई मुसलमान परिवार निवास नहीं करता है. भारत-पाकिस्तान अंतरराष्ट्रीय सीमा पर स्थित यह मजारे हिंदू-मुस्लिम एकता का संदेश दे रही है.

यहां के मजारों की ये है मान्यता

लैला मजनू की इन मजारों पर सिर्फ प्यार करने वाले ही नहीं, बल्कि निसंतान या किसी अन्य परेशानी से ग्रस्त लोग भी दूर-दूर से अपनी परेशानी से निजात पाने के लिए आते हैं. मान्यता है कि यहां सभी की दुआएं कबूल होती हैं. मजारों की देखभाल के लिए ग्रामीणों ने अपने स्तर पर कमेटी बनाई हुई है और 1960 के बाद से ही यहाँ इस मजार पर हर साल 11 से 14 जून तक मेला लगता है और हजारों लोग इस मेले में मजारों पर श्रद्धा के फूल चढ़ाते हैं.

इस मेले में क्षेत्र के अलावा अन्य राज्य से भी लोग आते हैं और लोगों की भावनाओं के चलते ग्राम पंचायत की तरफ से भी डीपीए योजना से लैला मजनू की मजारों की हालात में काफी सुधार करवाया गया है. मजारों के पास धर्मशाला के रूप में कमरे भी बनाए गए हैं, जहां पर विकट स्थिति के समय आर्मी के जवान भी ठहरते हैं.

पानी की तलाश में तड़प-तड़प कर गई जान

राजकीय विद्यालय के साहित्य विषय के अध्यापक सुरेंद्र कुमार ने बताया कि लंबे समय से सुनते आ रहे हैं कि सरहद तो अब बटी है, परंतु काफी सालों पहले ऐसा नहीं था. तब लैला और मजनू एक प्रेमी जोड़ी के रूप में लैला के भाइयों से बचते-बचाते अनूपगढ़ क्षेत्र के गांव पुरानी बिंजौर आ पहुंचे थे. यहां उनकी पानी की प्यास से तड़प-तड़प कर मौत हो गई थी. उस समय स्थानीय लोगों ने इन दोनों की कब्र एक साथ बना दी थी तथा कब्र बनने के पश्चात ऐसी मान्यता बन गई कि नव दंपति और प्रेमी-प्रेमिका जब यहां कोई सच्चे दिल से मन्नत मांगकर कब्रों पर चद्दर चढ़ाते हैं, तो उनकी मनोकामनाएं पूरी होती हैं.

उन्होंने कहा कि लैला मजनू कमेटी के द्वारा 1960 के बाद से ही 11 से 14 जून तक यहां पर मेले का आयोजन किया जाता है, जिसमें दूर-दराज क्षेत्र के लोग दर्शन के लिए पहुंचते हैं. इनमें विशेषकर नव दंपति, प्रेमी जोड़े व निसंतान महिलाएं अपनी विभिन्न मनोकामनाएं लेकर आती हैं. उन्होंने कहा कि लैला-मजनू की मजार भारत-पाक अंतरराष्ट्रीय बॉर्डर से महज 5 से 6 किलोमीटर दूरी पर स्थित है.

Tags: Local18, Rajasthan news, Sriganganagar news

Source link

Related Articles

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Back to top button

Uh oh. Looks like you're using an ad blocker.

We charge advertisers instead of our audience. Please whitelist our site to show your support for Nirala Samaj