Rajasthan

Lakhs of devotees reached Karni Mata’s Lakhi fair – News18 हिंदी

पीयूष पाठक/अलवर: राजस्थान प्रदेश में कोई त्यौहार या उत्सव हो इसमें अगर मेला नहीं लगा हो तो यह पर्व अधूरे लगते हैं. चैत्र नवरात्रि महोत्सव का आज आखिरी दिन है. इस दिन का अलवर शहर ही नहीं बल्कि पूरे जिले भर के आसपास के ग्रामीण इलाकों के लोगों को भी इसका साल भर से इंतजार रहता है. क्योंकि अलवर के सरिस्का टाइगर रिजर्व की बफर क्षेत्र में स्थित जंगलों से घिरा करणी माता का मंदिर है. जहां पर नवरात्रि के आखिरी दिन बड़ी संख्या में भक्त यहां पर माता के दर्शन के लिए पहुंचते हैं.

इस मंदिर की सबसे बड़ी खासियत यह है कि यहां चैत्र नवरात्रि के आखरी दो दिन मेले का आयोजन किया जाता है. जिसमें बड़ी तादात में प्रदेश भर से भक्त यहां दर्शन करने के लिए पहुंचते हैं. गौरतलब है कि अलवर में पूर्व रियासत के द्वितीय शासक बख्तावर सिंह ने 1792 से 1815 के मध्य मन्नत पूरी होने पर बाला किला क्षेत्र में करणीमाता मंदिर की स्थापना कराई थी.

यहां आने वाले भक्तों की हर मनोकामनाएं होती है पूरी
चैत्र नवरात्रि महोत्सव के दौरान आयोजित होने वाले इस मेले में अलवर ही नहीं बल्कि दिल्ली, हरियाणा सहित अन्य राज्यो से लोग यहां पर दर्शन करने के लिए पहुंचते हैं. एक तरह से जंगलों के बीच घिरा होने की वजह से यहां हरियाली के साथ प्रकृति का अनोखा नजारा देखने को मिलता है. यह इलाका पिकनिक मनाने वाले लोगों के लिए भी पहली पसंद बना रहता है. माता यहां आने वाले भक्तों की तमाम मनोकामनाएं पूरी कर देती है. यही कारण है कि यहां पर अलवर दोसा , जयपुर , सीकर सहित अन्य जिलों से भी भक्त दर्शन करने के लिए पूछते हैं. सन 1982 में मंदिर परिसर के आसपास सफाई व वहां तक पहुंचने के लिए सडक़ बनने के बाद लोगों की इस मंदिर के प्रति आस्था बढ़ी और फिर नवरात्र में वहां मेला भरने लगा.

ऐसे हुई करणी माता मंदिर की स्थापना
करणी माता मंदिर के पुजारी के अनुसार तत्कालीन पूर्व शासक बख्तावर सिंह अपनी पत्नी रूपकंवर के साथ बाला किला में रहते थे. ऐसे में एक दिन पूर्व शासक बख्तावर सिंह के पेट में अचानक असहनीय दर्द हुआ. काफी इलाज के बाद भी जब पेट दर्द ठीक नहीं हुआ, तो उनके दरबार के रक्षक बारैठ ने पूर्व शासक को मां करणी का ध्यान करने की सलाह दी.

चील के रूप में आई माता रानी
बख्तावर सिंह ने मां करणी का ध्यान किया. तभी एक सफेद चील बाला किला पर आकर बैठी तो पूर्व शासक ने चील की ओर देखा. इसके बाद बख्तावर सिंह का पेट दर्द ठीक हो गया. इसी उपलक्ष्य में पूर्व शासक ने बाला किला परिसर में करणीमाता की स्थापना की. नरेंद्र सिंह राठौड़ का कहना है कि पूर्व महारानी रूपकंवर देशनोक में स्थित करणीमाता की आराधना थी. किसी श्राप के चलते पूर्व शासक के पेट में दर्द हुआ था. तभी से बाला किला परिसर में देवी करणीमाता के मंदिर में पूजा अर्चना की जाती रही है

Tags: Dharma Aastha, Local18

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