Loksabha Elections 2024 : मुलायम के बिना क्या सपा बदल पाएगी उत्तर प्रदेश की राजनीति | Will SP be able to change politics of Uttar Pradesh without Mulayam

छह दशक बाद यूपी में कोई चुनाव धरतीपुत्र के बिना होगा। खासकर इसलिए क्योंकि पिछले लोकसभा चुनाव में पार्टी सिर्फ पांच सीटों पर सिमट गई थी। मुलायम सिंह की अस्वस्थता के कारण चुनाव प्रचार की जिम्मेदारी पूरी तरह अखिलेश के कंधों पर आ पड़ी थी। मुलायम स्वयं एक पहलवान थे और राजनीति के अखाड़े के भी तमाम दांवपेच जानते थे। लोकसभा चुनाव के बाद दो साल पहले हुए विधानसभा चुनाव में भी समाजवादी पार्टी को करारी हार का सामना करना पड़ता था। मुलायम सिंह यादव के निधन के बाद उनके खास सहयोगी भी पार्टी में आगे की पंक्ति में खड़े नजर नहीं आ रहे। पार्टी के अनेक नेता दूसरे दलों में आसरा ले चुके हैं। ऐसे में देश के सबसे बड़े राज्य में मुलायम सरीखे कद्दावर नेता की कमी सिर्फ समाजवादी पार्टी ही नहीं, पूरे विपक्ष को खलेगी।
यह कहना अतिशयोक्ति नहीं होगा कि अपने पचपन वर्ष से अधिक के सक्रिय राजनीतिक जीवन में मुलायम सिंह ने कई बार सूबे की राजनीति भी बदल डाली थी। 1992 में मुलायम सिंह ने समाजवादी पार्टी के नाम से अपनी पार्टी बनाई और 1993 व 2003 में मुख्यमंत्री भी बने। इस दौरान मुख्यमंत्री बनने के लिए उन्होंने खासी जोड़-तोड़ भी की। 1993 में मुख्यमंत्री बनने के लिए उन्होंने बहुजन समाज पार्टी के नेता कांशीराम से हाथ मिला लिया। यह गठबंधन महज डेढ़ साल चल सका और दिसंबर 1993 में मुख्यमंत्री बने मुलायम सिंह को जून 1995 में कुर्सी छोडऩी पड़ी।
मुलायम भले देश के प्रधानमंत्री नहीं बन पाए हों, लेकिन 2004 के लोकसभा चुनाव में मनमोहन सिंह सरकार के वे सबसे बड़े सारथी थे। उस चुनाव में मुलायम की पार्टी ने 36 सीटें जीती थी। कांग्रेस को सिर्फ 145 सीटें मिली थीं। ऐसे में मुलायम के सहयोग से ही कांग्रेस सत्ता के रास्ते आगे बढ़ पाई थी। देखना दिलचस्प होगा कि मुलायम की गैर मौजूदगी में समाजवादी पार्टी उनके खालीपन को किस हद तक भर पाती है। भाजपा के धुर विरोधी रहे मुलायम राममनोहर लोहिया की विचारधारा को जीवनभर आगे बढ़ाते रहे। ये चुनाव समाजवादी पार्टी के लिए बड़ी चुनौती के रूप में सामने खड़ा है। देखना होगा कि अखिलेश टीम इस चुनौती से किस तरह पार पाती है।