lose by carret farmer | लागत 13 रुपए प्रति किलो, बाजार में मिल रहे 8-10 रुपए प्रति किलो… बाजार में कम दाम मिलने से निराश क्षेत्र के गाजर किसान

जैतपुर खींची आमेर उपखंड के ग्राम छापराड़ी, सीतापुरा, जैतपुर खींची, मीणो की ढाणी, दरवाजों की ढाणी, कचरेहवाला सिगवाना में कमाई के लिए बोएं जाने वाली गाजर इस वर्ष किसानों को आर्थिक नुकसान देकर झोली खाली कर गई।
जयपुर
Published: February 13, 2022 11:39:47 pm
जयपुर। जैतपुर खींची आमेर उपखंड के ग्राम छापराड़ी, सीतापुरा, जैतपुर खींची, मीणो की ढाणी, दरवाजों की ढाणी, कचरेहवाला सिगवाना में कमाई के लिए बोएं जाने वाली गाजर इस वर्ष किसानों को आर्थिक नुकसान देकर झोली खाली कर गई।
जानकारी के अनुसार आमेर उपखंड के इन गांवों की गाजर की अन्य राज्यों में भी अलग पहचान बनी हुई है। यहां रेतीली मिट्टी होने से गाजर फसल के लिए उपयुक्त मिट्टी है।रंग में गहरी लाल दिखाई देने के साथ मोटाई लंबाई में भी अच्छी रहती है यहां के किसानों की गाजर मंडियों में नाम से खरीदी जाती है। गाजर की फसल हर वर्ष किसानों को मोटा मुनाफा देकर जाती लेकिन इस वर्ष किसानों को इस गाजर की फसल से मुनाफे की उम्मीद होने के बाद भी आर्थिक नुकसान उठाना पड़ा। गाजर का आर्थिक नुकसान का मुख्य कारण मंडी में गाजर भाव कम रहने से किसानों को बड़ी पीड़ा रही। तीन माह में गाजर की फसल तैयार होकर बाजार में बिकती है। गाजर कि फसल रेतीली भूमि पर अधिक उपज देने वाली मानी गई है। परिक्षेत्र में रेतीली मिट्टी होने से ग्रामीण लोग इसमें विश्वास बनाए हुए हैं। परिक्षेत्र से प्रतिदिन कई टन गाजर मंडियों में किसानों द्वारा पहुंचाई जाती है।जयपुर मंडी में पॉलिथीन में पैक गाजर खरीदी जाती है वही दूसरी ओर चोमू मंडी में मुख्य रूप से जूूट की पलियों में पैक गाजर खरीदी जाती है।
लागत 13 रुपए प्रति किलो, बाजार में मिल रहे 8-10 रुपए प्रति किलो
इस वर्ष गाजर अधिक आने से किसानों को आर्थिक नुकसान रहा। जानकारी के अनुसार मंडी भाव गाजर आठ से दस रुपए पर रहे इससे किसानों को नुकसान किसान कानाराम ने बताया कि गाजर को बुवाई से लेकर मंडी में पहुंचाने तक 13 रूपए प्रति किग्रा खर्च इस वर्ष आया। चार बीघा गाजर फसल बोई जिसमें खर्चे के रूप अस्सी हजार नगद राशि खर्च हुए गाजर साठ हजार की बेचान हो सकी इस तरह से बीस हजार का नुकसान रहा इसमें भी परिवार सदस्यों की मेहनत अलग है तो किसान को सीधा ही नगद नुकसान रहा किसान सत्यनारायण मीणा ने बताया कि आठ बीघा में गाजर फसल बोई गई थी जिसमें लागत के तौर पर एक लाख दस हजार नकद राशि खर्च हुई बुवाई से लेकर मण्डी पहुंचाने के दौरान गाजर 95 हजार की बिक्री हुई इसी तरह अन्य किसानों को भी गाजर से इस वर्ष नुकसान उठाना पड़ा
महामारी का साया
विश्व में महामारी से हर किसी काम धधें पर असर रहा तो इससे किसान वर्ग कैसे अछूता रहता। गाजर शादियों में हलवा, पकवान, सलाद, सब्जी, ज्यूस, अचार व खाने के काम में ली जाती है। कोरोना महामारी के कारण प्रशासनिक एडवाइजरी के तहत शादियों में मेहमानों की सीमित संख्या होने से गाजर की मांग न के बराबर रही।सर्दी के मौसम में गाजर से पकवान तैयार होते हैं। मेहमानों की संख्या कम होने से मांग कम रही। अन्य वर्ष शादियों में अधिक रहती है। मांग कमजोर रहने से भाव कम रहे।
यहां की पहचान
यहां के किसान खुद के द्वारा तैयार किए बीज पर विश्वास करते हैं। किसानों ने बताया कि बाजार से लाने वाले बीज पर भरोसा नहीं किया जा सकता। खुद के द्वारा तैयार बीच से यहां की गाजर दिखने में अन्य क्षेत्र से आने वाले गाजरो की तुलना में अधिक गहरे लाल कलर, अधिक लंबी, अधिक मोटाई व स्वादिष्ट होने से यहां की गाजर की अन्य राज्यों में अलग ही पहचान रखने से मांग रहती है।

लागत 13 रुपए प्रति किलो, बाजार में मिल रहे 8-10 रुपए प्रति किलो… बाजार में कम दाम मिलने से निराश क्षेत्र के गाजर किसान
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