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mahabharat : महाभारत: युयुत्सु ने किया कौरवों का अंतिम संस्कार.

क्या आपको मालूम है कि महाभारत के युद्ध में जब दुर्योधन समेत सभी 100 कौरव भाई मारे गए तो किसने उनका अंतिम संस्कार किया. पांडव उनके चचेरे भाई थे लेकिन उन्होंने भी कुछ वजहों से ये काम नहीं किया. तब एक ऐसे शख्स ने सभी कौरवों का अंतिम संस्कार किया, जिसको उन्होंने जीवनभर दुत्कारा. इसी वजह से वह पांडवों के खेमे में चला गया. उन्हीं की ओर से फिर उसने लड़ाई भी लड़ी.

जब कौरवों को हराने के बाद युधिष्ठर राजा बने तो इस शख्स को उन्होंने अपना मंत्री बनाया. जब द्रौपदी का चीरहरण राजसभा में हो रहा था, तब कौरवों की ओर से यही अकेला शख्स था, जिसने इसके विरोध में आवाज उठाई.

तो क्या आपको मालूम ये शख्स कौन था. जब उसने अंतिम संस्कार किया तो धृतराष्ट्र और गांधारी ने भी इसको लेकर रजामंदी जाहिर की. कौरवों के इस भाई का नाम युयुत्सु था. वह धृतराष्ट्र का पुत्र जरूर था लेकिन दुर्योधन हमेशा उसको भला बुरा कहता रहता था. कहा जाता है कि वो कौरवों की तुलना में न्यायप्रिय और सात्विक प्रवृत्ति का शख्स था. हां ये भी जान लीजिए कि युयुत्सु की मां गांधारी नहीं थी.

क्या उसके जीवन की कहानी

युयुत्सु के जन्म की भी एक अलग कहानी है. दरअसल जब गांधारी गर्भवती हुईं तो धृतराष्ट्र की देखरेख के लिए एक खास दासी रखी गई. धृतराष्ट्र उस दासी पर ही आशक्त हो गए. वह उनसे गर्भवती हो गई. जब गांधारी के सौ पुत्र हुए तो कुछ समय बाद इस दासी का भी एक पुत्र हुआ. इसे लेकर गांधारी काफी खफा भी हुईं. लेकिन बाद में इस दासी पुत्र का पालन पोषण भी राजसी तरीके से हुआ, क्योंकि वह धृतराष्ट्र का ही पुत्र था.

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युयुत्सु कौरवों का भाई जरूर था लेकिन दुर्योधन और कौरवों ने उसको कभी अपना भाई नहीं माना, क्योंकि वह धृतराष्ट्र से जरूर पैदा हुआ था लेकिन दासी पुत्र था. ( AI)

क्यों पांडवों ने कौरवों का अंतिम संस्कार नहीं किया

पांडवों ने कौरवों का अंतिम संस्कार इसलिए नहीं किया क्योंकि महाभारत युद्ध के बाद पांडव, विशेष रूप से युधिष्ठिर गहरे शोक और नैतिक दुविधा में थे. कौरवों के साथ उनका रिश्ता चचेरा भाई होने के बावजूद युद्ध की वजह से संबंध खराब हो चुके थे. लिहाजा युधिष्ठिर और पांडवों ने कौरवों के अंतिम संस्कार से अलग रहने का फैसला किया. फिर चौसर के खेल और द्रौपदी के अपमान जैसी घटनाओं ने ऐसी खाई पैदा की थी कि पांडवों के लिए कौरवों का दाह-संस्कार करना अनुचित था.

वह भी धृतराष्ट्र का पुत्र था

तब युधिष्ठिर ने अंतिम संस्कार का दायित्व युयुत्सु को सौंपा गया क्योंकि वह धृतराष्ट्र का पुत्र और कौरवों का सौतेला भाई था. युयुत्सु ने युद्ध में पांडवों का साथ दिया, जिससे वह दोनों पक्षों के बीच एक तटस्थ और उपयुक्त व्यक्ति बन गया. इसी वजह से युधिष्ठिर ने फैसला किया कि युयुत्सु द्वारा अंतिम संस्कार करना उचित होगा.

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महाभारत में युयुत्सु दासी पुत्र था. वह धृतराष्ट्र से पैदा हुआ था लेकिन सत्यवादी और धर्म की राह पर चलने वाला शख्स था. ( AI)

कौरव उससे अच्छा व्यवहार नहीं करते थे

महाभारत के स्त्री पर्व का खंड 25 कहता है कि युयुत्सु ने कुरु परिवार के अन्य जीवित सदस्यों की सहायता से वैदिक परंपराओं के अनुसार दाह-संस्कार किया, ये सुनिश्चित किया कि मृतकों की आत्माएं शांति प्राप्त कर सकें. महाभारत का आदि पर्व का खंड 63 कहता है कि दासी पुत्र होने के कारण युयुत्सु की स्थिति राजपरिवार में अलग तरह की थी. कौरव बचपन से ही उसे खुद से अलग रखते थे. उससे अच्छा व्यवहार नहीं करते थे. उसे विकर्ण के तौर पर भी जाना जाता है.

धृतराष्ट्र और गांधारी ने इसका विरोध नहीं किया

जब कौरवों का अंतिम संस्कार किया गया तब धृतराष्ट्र और गांधारी गहरे शोक में थे. उन्होंने युयुत्सु द्वारा कौरवों के अंतिम संस्कार पर कोई विरोध नहीं किया. वो दोनों भी चाहते थे कि अंतिम संस्कार तरीके से हो ताकि सभी मृतकों की आत्मा को शांति मिले. शोकाकुल गांधारी और धृतराष्ट्र ने पांडवों के फैसले को स्वीकार किया कि युयुत्सु ही अंतिम संस्कार करेगा.

युयुत्सु का बाद का जीवन

महाभारत के अनुसार, युयुत्सु का युद्ध के बाद का जीवन महत्वपूर्ण और सम्मानजनक रहा. कहा जाता है कि युधिष्ठिर ने राजपाट संभालने के बाद उसे मंत्री बनाया और महत्वपूर्ण भूमिका दी.युयुत्सु ही वह शख्स भी था जो हस्तिनापुर में महाभारत युद्ध के बाद धृतराष्ट्र और गांधारी की देखभाल करता रहा.

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