महाभारत: युधिष्ठिर के पास था वो कौन सा चमत्कारिक बर्तन, जिससे वनवास में कभी कम नहीं पड़ा खाना, सैकड़ों को कराया दिव्य भोजन
हाइलाइट्स
जंगल में जब काफी लोग पांडवों से मिलने आने लगे तो भोजन की किल्लत होती थीतब युधिष्ठिर को एक पात्र मिला, जिसमें कभी खाना खत्म नहीं होता थाइस पात्र से पांडवों ने सैकड़ों ऋषियों-मुनियों और मेहमानों का लगातार भोजन कराया
जब पांडव 13 सालों के वनवास के लिए गए तो उनके सामने सबसे बड़ी समस्या दी भोजन. जंगल में उनके लिए खुद भोजन की तलाश करना मुश्किल था बल्कि उनके पास जब ऋषि-मुनि और अन्य मेहमान आते थे तो उन्हें भी भोजन कराना बहुत मुश्किल होने लगा. ऐसे में युधिष्ठिर को एक चमत्कारिक बर्तन मिला, जिससे उन्हें कभी भोजन की कमी ही नहीं पड़ी. ये चमत्कारिक बर्तन क्या कहलाता था. इसकी भी कुछ शर्तें थीं, जिस चक्कर में वो एक बार बड़ी समस्या में भी पड़े.
ना केवल उससे वो लोग मनचाहा भोजन करते थे बल्कि उनके पास आने वाले सैकड़ों ऋषि मुनियों की भी पूरी आवभगत करते थे. बगैर भोजन किए उन्हें जाने नहीं देते थे. भोजन भी ऐसा होता था कि सभी मेहमान और ऋषि तृप्त होकर ही उनके पास से जाते थे.
युधिष्ठिर को ये भोजन कैसे मिला. इसमें ऐसा क्या था कि कभी भोजन कम नहीं होता था, उसकी भी एक कहानी है. ये कहानी काफी रोचक है. जब पांडवों ने वनवास खत्म करके महल का रुख किया तो इसका क्या हुआ.
तब युधिष्ठिर ने सूर्य की तपस्या शुरू कीदरअसल जब पांडवों के वनवास के दौरान उनकी कुटिया में मेहमान और ऋषि मुनि आने लगे तो द्रौपदी ने युधिष्ठिर से इस समस्या का निदान करने के लिए कहा. उन्होंने जल में खड़े होकर सूर्यदेव की तपस्या प्रार्थना करनी शुरू की. कई दिन तक जब वह ऐसा करते रहे तो सूर्य उपस्थित हुए. उन्होंने युूधिष्ठिर से इस तप के बारे में पूछा. तब सकुचाते हुए युधिष्ठिर ने उन्हें सारी बात बताई और निदान करने को कहा.
जब पांडव वनवास में थे, तब उनके सामने एक बड़ी समस्या भोजन की थी. खुद तो वो किसी तरह रुखा-सूखा खा लेते थे लेकिन आने वाले मेहमानों को क्या खिलाएं- ये बड़ा सवाल था. (Image generated by leonardo ai)
तब सूर्य ने उन्हें एक चमत्कारिक पात्र दियासूर्य भगवान ने युधिष्ठिर से कहा कि अब उन्हें वनवास के दौरान ना केवल खुद के भोजन की कभी चिंता नहीं करनी होगी बल्कि वह जितने भी मेहमान उनके पास आएंगे, उन्हें भी दिव्य भोजन करा सकेंगे. इतना कहने के बाद युधिष्ठिर को उन्होंने एक चमत्कारिक पात्र दिया. इस पात्र को अक्षय पात्र कहा जाता है. दरअसल युधिष्ठिर को सूर्य से इस संबंध में पूजा करने की तरकीब धौम्य नाम के पारिवारिक पुजारी ने सुझाई.
ये चमत्कारिक पात्र पांडवों और उनके मेहमानों के खाने की तरह की मांग को पूरा करता था. ये फल से लेकर दिव्य भोजन और सब्जियां देता था. (IMAGE GENERATED BY LEONARDO AI)
क्या इसके लिए निर्देश दियासूर्यदेव ने निर्देश दिया कि जब तक द्रौपदी अपना भोजन समाप्त नहीं कर लेती, तब तक यह पात्र हर रोज और हर प्रहर अनंत मात्रा में भोजन उपलब्ध कराता रहेगा. इस पात्र से उन्हें अन्न, फल, शाक आदि चार प्रकार की भोजन सामग्रियां मिलती थीं.
भोजन से जुड़ी दुर्वासा ऋषि की क्या कहानी थीइसकी एक और कहानी भी कही जाती है. दरअसल वनवास के दौरान जब एक दिन पांडव और उसके बाद द्रौपदी भोजन कर चुकीं थीं, तब ऋषि दुर्वासा पांडवों से मिलने आए. उनके साथ उनके बहुत ढेर सारे शिष्य भी थे. उन्होंने आते ही तुरंत खाना खाने की इच्छा जताई. द्रौपदी चिंता में पड़ गईं. इस बीच दुर्वासा ने अचानक कहा कि वो और उनके शिष्य नदी में स्नान करके आ रहे हैं. फिर भोजन करेंगे.
तब कृष्ण ने उस एक दाना चावल को खायाअब दुखी ने द्रौपदी ने कृष्ण से मदद के लिए प्रार्थना की. कृष्ण प्रकट हुए. उनसे अक्षय पात्र लाने के लिए कहा. इसमें एक चावल का दाना बचा हुआ था. कृष्ण ने इसे खा लिया. इसके बाद कहा कि उनका पेट तो इस चावल के दाने से ही भर गया है…अब द्रौपदी तुम चिंता मत करो. दुर्वासा और उनके शिष्य आएंगे ही नहीं. ऐसा ही हुआ भी. जब दुर्वासा और उनके साथ आए लोग नहाकर निकले और उन्होंने महसूस किया कि उनका पेट भरा हुआ है. वो लोग नहाकर सीधे ही चले गए. द्रौपदी की ये पिदा टल गई.
फिर क्या हुआ उस पात्र काजब पांडवों ने अपने 13 वर्ष के वनवास को पूरा किया, तो अक्षय पात्र उनके साथ महल में आ गया. तब इस पात्र की जरूरत ही नहीं रह गई. हालांकि ये पात्र उनके वनवास के दौरान एक महत्वपूर्ण संपत्ति थी, जिससे उन्हें कभी भोजन की कमी नहीं हुई.
जाहिर सी बात है कि उन्हें तब अक्षय पात्र की जरूरत नहीं रह गई थी लेकिन चूंकि ये चमत्कारिक पात्र उन्हें सूर्य से मिला था, लिहाजा ये ईश्वरीय आशीर्वाद का प्रतीक भी था. उन्होंने इस पात्र को महल में सजाकर सुरक्षित रखा.
तब दुर्योधन क्रोधित हो गयाजब पांडव वनवास में थे तो दुर्योधन ने अपने जासूस उनके आसपास छोड़ रखे थे. जब उसे मालूम हुआ कि पांडवों को एक चमत्कारिक अक्षय पात्र मिल गया है, तो वह दुर्योधन क्रोधित हो गया. वह इस बात से परेशान था कि पांडव निर्वासन के दौरान बिना किसी कठिनाई के कैसे उनके पास पहुंचने वाले मेहमानों और ऋषियों को भोजन करा सकने में समर्थ हो गए हैं.
दुर्योधन ने ही फिर साजिश करके दुर्वासा ऋषि को पांडवों के पास ऐसे समय भेजा था जब द्रौपदी भोजन कर लें. उसके बाद अक्षय पात्र से कोई भोजन नहीं मिल सके.
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FIRST PUBLISHED : October 4, 2024, 07:41 IST