Rajasthan

Mahashivratri 2023 shivling change colour 3 times in 24 hours achalgarh mahadev temple where lord shiva toe worshiped detail

प्रतीक सोलंकी

माउंट आबू. भगवान शिव की महिमा अपरंपार है. कहा जाता है कि भोलेनाथ से जो भी प्रार्थना की जाए उसका प्रतिफल जल्‍द मिलता है. बाबा शिव का चमत्कार विश्व विख्यात है. राजस्‍थान में आस्‍था का प्रतीक एक ऐसा मंदिर है, जहां शिवलिंग का दिन में 3 बार रंग बदलता है. पूरे विश्‍व में इकलौता मंदिर है, जहां भगवान भोलेनाथ के अंगूठे की पूजा की जाती है. इस अंगूठे के आगे एक कुंड है. माना जाता है कि इस कुंड में कितना भी पानी डाला जाता है वह सीधे पाताल में चला जाता है. यह कुंड कभी नहीं भरता है. इस मंदिर में पूजा-अर्चना करने हजारों की तादाद में श्रद्धालु आते हैं. महाशिवरात्रि के मौके पर तो यहां काफी भीड़ जुटती है.

अरावली पर्वत शृंखला की गोद में बसा हुआ अर्बुदा अंचल पर्वत पर स्थित पर्यटन नगरी माउंट आबू से 11किलोमीटर दूर अचलगढ़ महादेव का मंदिर है. यहां पर भगवान के पैर के अंगूठे की पूजा की जाती है. इस मंदिर से जुड़ी कई कहानियां प्रचलित हैं. इतिहासकारों की मानें तो यहीं पर भगवान शंकर के अंगूठे की पूजा होती है. गर्भगृह में शिवलिंग पाताल खंड के रूप में दृष्टिगोचर होता है, जिसके ऊपर एक तरफ पैर के अंगूठे का निशान उभरा हुआ है, जिन्हें स्वयंभू शिवलिंग के रूप में पूजा जाता है. माना जताा है कि यह देवादिदेव महादेव के दाहिने पैर का अंगूठा है.

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Achleshwar Temple

अचलेश्‍वर महादेव के मंदिर में ऐसा कुंड है जो कभी नहीं भरता है. (न्‍यूज 18 हिन्‍दी)

अकल्‍पनीय मान्‍यता
पहाड़ी के तल पर 15वीं शताब्दी में बने अचलेश्वर मंदिर में भगवान शिव के पैरों के निशान आज भी मौजूद हैं. मेवाड़ के राजा राणा कुंभ ने अचलगढ़ किला एक पहाड़ी के ऊपर बनवाया था. किले के पास ही अचलेश्वर मंदिर है, जहां भगवान के अंगूठे के नीचे एक प्राकृतिक गढ्ढा बना हुआ है. इस गढ्ढे में कितना भी पानी डाला जाए, वह नहीं भरता है. इसमें चढ़ाया जाने वाला पानी कहां जाता है यह आज भी एक रहस्य है. शिवलिंग की बता करें तो यहां पर दिन में 3 बार शिवलिंग का रंग बदलता है. सुबह में शिवलिंग नीले रंग, दोपहर में केसरिया और रात में शिवलिंग का रंग श्याम हो जाता है. इस रहस्य का पता आज तक नहीं चल सका है.

क्‍यों होती है भगवान शिव के पैर के अगूंठे की पूजा?
स्थानीय लोग बताते हैं कि एक बार अर्बुद पर्वत पर स्थित नंदीवर्धन हिलने लगा था. उस समय इस पर्वत पर नंदीजी भी थे. पर्वत हिलने की वजह से हिमालय पर तपस्या कर रहे भगवान शिव की तपस्या में विघ्न पहुंचने लगा और उनकी तपस्या भंग हो गई. शिवजी ने नंदी को बचाने के लिए हिमालय से ही अपने अंगूठे को अर्बुद पर्वत तक पहुंचा दिया और पर्वत को हिलने से रोक कर स्थिर कर दिया. यही वजह है कि भगवान शिव के पैर का अंगूठा अर्बुद पर्वत को उठाए हुए है. इसी वजह से इस पर्वत पर बने इस मंदिर में भगवान शिव के पैर के अंगूठे की पूजा की जाती है.

Tags: Mahashivratri, Rajasthan news, Sirohi news

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