Maldhari groom comes on a camel to hit the Toran the reason is special – हिंदी

मनमोहन सेजू/ बाड़मेर:- रेगिस्तानी इलाकों में जब यातायात के संसाधन नहीं थे, तो लोग ऊंट और बैलगाड़ी का उपयोग करते थे. लेकिन आज यात्राएं हवाई हो चली हैं. तेजी से बदलते इस दौर के बावजूद मालधारी समाज के दूल्हे शादी के दिन तोरण ऊंट पर मारते हैं.
शादी-विवाह के दौरान तोरण की रस्म भी बहुत मायने रखती है. हजारों वर्ष पुरानी सिंधु घाटी सभ्यता और संस्कृति को आज भी घुमंतू जाति रबारी या मालधारी के नाम से पहचाने जाने वाले इस समुदाय के लोग शिद्दत से संजोए हुए हैं. लाल साफे में अपने रेवड़ के साथ खेतों और जंगलों में घूमने वाले रबारी समुदाय में शादी-विवाह के दौरान आज भी पारंपरिक रूप से ऊंट पर ही तोरण की रस्म निभाई जाती है.
पशुपालन है मुख्य पेशागुजरात के कच्छ, सौराष्ट्र, मारवाड़, मेवाड़ और शेखावटी में बहुतायत में पाए जाने वाले इस रबारी, देवासी और मालधारी समुदाय का मुख्य पेशा पशुपालन रहा है. समुदाय के भेराराम देवासी बताते हैं कि अपने पशुधन के साथ सूखे और अकाल के हालातों में दूर तक चारे-पानी के लिए सफर करने वाले देवासी समुदाय का मुख्य आधार ऊंट हुआ करता है और इसी को वह सबसे ज्यादा प्यार और आदर देते हैं. देवासी बताते हैं कि दूल्हे को वैसे भी एक दिन का राजा माना जाता है और राजा की सवारी ऊंट पर होती है.
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देवासी समाज की बरसों पुरानी परंपराहजारों बरसो पुरानी यह परंपरा आज भी हर विवाह में तोरणद्वार पर नजर आती है. तेलवाड़ा से बारात लेकर आए बुजुर्ग सांकलाराम देवासी ने लोकल18 को बताया कि आज भी देवासी समाज बरसों पुरानी परंपरा संजोए हुए हैं. बुजुर्ग के साथ-साथ आज का युवा भी इस रस्म को बड़े ही अदब के साथ निभाता है.
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FIRST PUBLISHED : May 2, 2024, 17:02 IST