जोधपुर की मथानिया नहीं इस गांव की मिर्ची भी है बेहद खास, साल भर रहती है एकदम तीखी

सोनाली भाटी/सिरोही : राजस्थान में कश्मीरी मिर्च और जोधपुर में मथानिया की मिर्च विख्यात है, उसी तरह सिलासण गांव की मिर्च भी खूब विख्यात है. किसानों के मिर्च को कैश-क्रॉप के रूप में अपना रखा होने से इसकी खेती बहुतायत में होती है. सिरोही जिले के पिण्डवाड़ा में आरासणा-नांदिया के बीच स्थित सिलासण गांव ऐसा है, जिसकी आबादी करीब ढाई सौ लोगों की है. गांव में करीब पांच दर्जन परिवार बसे हुए हैं और ये सभी मूलरूप से एक ही परिवार के हैं. दिलचस्प बात तो यह है कि गांव के ये सभी पांच दर्जन परिवार प्रमुख तौर पर मिर्च की खेती ही करते हैं.
मिर्च की खेती से ये सभी परिवार हर साल चार से पांच लाख सालाना कमाई कर लेते हैं. खरीदार खुद मिर्च खरीदने के लिए इन काश्तकारों की दहलीज पर पहुंच जाते हैं. आसपास गांवों के साथ पूरे सिरोही जिले व दूरदराज से भी कई लोग सिलासण की मिर्च खरीद कर ले जाते हैं. गांव में हर घर की छत पर व गांव से सटी पहाड़ी पर लाल मिर्च सूखती आपको दिखाई देगी.
गुजरात और महाराष्ट्र तक विख्यात है सिलासण गांव की मिर्च
आसपास गांवों के साथ पूरे सिरोही जिले व दूरदराज से भी कई लोग सिलासण गांव की मिर्च खरीद कर ले जाते हैं. फरवरी-मार्च में रविवार व अन्य सार्वजनिक अवकाश के दिन तो खरीदारों की भीड़भाड़ से ऐसा लगता है कि मानों वहां मिर्च की मंडी लगी हो. गुजरात व महाराष्ट्र में व्यवसायरत मूल सिरोही जिले के कई लोग सिलासण गांव से मिर्च खरीदकर ले जाते है.
टॉप क्वॉलिटी की है सिलासण गांव की मिर्च
खरीदारों के मुताबिक सिलासण की मिर्च की क्वॉलिटी व तीखापन के बारे में कोई मिलावट नहीं किया जाता. काश्तकार भी मिर्च को बेचने से पहले क्वॉलिटी की अच्छी तरह से छंटाई कर लेते हैं. कोई मिर्च खराब होने या कच्ची रहने के कारण रंग फीका होने पर उन्हें ढेर से हटा लेते हैं. कई सालों से सिलासणी मिर्च खरीदकर ले जाने वालों का कहना है कि यह मिर्च सालभर पड़ी भी रह जाए तो इसका रंग फीका नहीं पड़ता. जैसा आज लाल सुर्ख रंग है, वैसा ही सालभर बाद भी होगा.
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FIRST PUBLISHED : April 5, 2024, 23:01 IST