मेवाड़: सवा महीने तक चलता है गवरी नृत्य महोत्सव, जानिए भील समाज की धार्मिक परंपरा के बारे में
निशा राठौड़ /उदयपुर: मेवाड़ के आदिवासी अंचल में गवरी नृत्य का आयोजन स्थानीय भील समाज के लिए विशेष धार्मिक महत्व रखता है. यह नृत्य सवा महीने तक चलता है, जिसमें प्रतिभागी ब्रह्मचर्य का पालन करते हैं और हरी सब्जियों का त्याग करते हैं. इस दौरान वे अपने घर की दहलीज भी नहीं चढ़ते. अंत के दिनों में ‘गलावन’ और ‘वालावन’ की परंपरा होती है, जिसमें प्रतिभागियों की अग्नि परीक्षा ली जाती है.
गवरी की गलावन और वालावन की परंपरालोक संस्कृतिविद चंदन सिंह देवड़ा ने बताया कि गवरी का नृत्य माता पार्वती और भगवान शिव की कथा पर आधारित होता है. यह नृत्य सवा महीने तक चलता है, जिसमें गलावन और वालावन की परंपरा निभाई जाती है. अंतिम दिन, रात के समय गवरी का मंचन होता है, जिसमें सभी प्रतिभागियों की अग्नि परीक्षा होती है. इस अवसर पर मिट्टी या कपड़े के हाथी की सवारी निकाली जाती है, जिससे ग्रामीणों में उत्साह देखने को मिलता है. अगले दिन सुबह, वालावन की परंपरा होती है, जिसमें गवरी को गांव के सरोवर में विसर्जित किया जाता है.
गवरी का आयोजन और नियमगवरी नृत्य की शुरुआत रक्षाबंधन के दूसरे दिन से होती है और भील समाज के लोग इसे अपने जीवन में एक बार अवश्य करते हैं. इस दौरान उन्हें कड़े नियमों का पालन करना होता है. इसमें महिलाएं पुरुषों के रूप में नृत्य करती हैं और हरी सब्जियों का त्याग करती हैं. साथ ही, ब्रह्मचर्य का पालन करते हुए, वे अपने घर की दहलीज तक नहीं चढ़ते. इस परंपरा के माध्यम से भील समाज अपनी सांस्कृतिक विरासत को जीवित रखता है और धार्मिक आस्था को भी मजबूत करता है.
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FIRST PUBLISHED : September 30, 2024, 18:13 IST