श्रीनाथजी मंदिर में अनोखी परंपरा! भक्तों से पहले बंदरों को मिलता है प्रसाद

Last Updated:April 29, 2025, 12:59 IST
डीग के श्रीनाथजी मंदिर में श्रद्धालु केले और चने खरीदकर गायों व बंदरों को खिलाते हैं. यह परंपरा धार्मिक आस्था, जीव सेवा और स्थानीय लोगों की आजीविका से जुड़ी है, जो पर्यावरण संतुलन में भी योगदान देती है.X
चने केले बेचते हुए
हाइलाइट्स
भक्तों से पहले बंदरों को मिलता है प्रसादश्रद्धालु केले और चने खरीदकर गायों व बंदरों को खिलाते हैंपरंपरा धार्मिक आस्था और जीव सेवा से जुड़ी है
मनीष पुरी/भरतपुर- राजस्थान के डीग स्थित प्रसिद्ध श्रीनाथजी मंदिर के पास वर्षों से एक अनोखी परंपरा चली आ रही है. यहां स्थानीय दुकानदार मंदिर के समीप केले और भुने हुए चने बेचते हैं, जिन्हें श्रद्धालु खरीदकर गायों और बंदरों को अर्पित करते हैं. यह परंपरा न केवल धार्मिक आस्था से जुड़ी है, बल्कि सामाजिक और मानवीय दृष्टिकोण से भी अत्यंत महत्वपूर्ण मानी जाती है.
तीन स्तरों पर मिलता है लाभइस व्यवस्था से तीन तरह का लाभ स्पष्ट रूप से देखने को मिलता है. दुकानदारों को रोजगार मिलता है, श्रद्धालु धार्मिक पुण्य अर्जित करते हैं और मंदिर परिसर में निवास करने वाले जीवों को नियमित रूप से भोजन प्राप्त होता है. यह परंपरा स्थानीय संस्कृति का एक अभिन्न अंग बन चुकी है.
परिक्रमा के दौरान भक्त करते हैं अर्पणश्रीनाथजी मंदिर की भव्यता और आस्था हजारों श्रद्धालुओं को प्रतिदिन आकर्षित करती है. परिक्रमा करने वाले भक्त केले और चने खरीदकर जीवों को अर्पित करते हैं. माना जाता है कि इससे मनुष्य को आध्यात्मिक लाभ प्राप्त होता है और यह भगवान की कृपा पाने का एक सशक्त माध्यम है.
स्थानीय दुकानदारों की आजीविका से जुड़ा है यह कार्यमंदिर के पास लगे छोटे-छोटे ठेले वर्षों से स्थानीय लोगों की रोजी-रोटी का साधन बने हुए हैं. इन दुकानों से श्रद्धालु न केवल पूण्य प्राप्त करते हैं, बल्कि स्थानीय लोगों की आर्थिक स्थिति को भी सहारा देते हैं. यह एक सकारात्मक सामाजिक तंत्र का उदाहरण है.
गायों और बंदरों के लिए भोजन का स्थायी स्रोतमंदिर परिसर और आसपास के क्षेत्र में बड़ी संख्या में बंदर और गाय निवास करते हैं. श्रद्धालुओं द्वारा दिया गया भोजन इनके लिए एक स्थायी और सुरक्षित आहार स्रोत बन गया है. बंदर मंदिर परिसर में चहलकदमी करते रहते हैं और भक्तों से प्राप्त केले-चने को प्रसन्नता से ग्रहण करते हैं. वहीं, आसपास की गलियों में घूमती गायें भी प्रेमपूर्वक भोजन स्वीकार करती हैं.
पर्यावरणीय संतुलन में भी सहायक है यह परंपरायह व्यवस्था केवल धार्मिक कृत्य तक सीमित नहीं है, बल्कि यह मंदिर क्षेत्र के पर्यावरणीय संतुलन को बनाए रखने में भी सहायक सिद्ध हो रही है. जीवों की नियमित भोजन व्यवस्था ने उन्हें इंसानों के साथ सामंजस्यपूर्ण जीवन जीने की आदत डाल दी है.
Location :
Bharatpur,Rajasthan
First Published :
April 29, 2025, 12:59 IST
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श्रीनाथजी मंदिर में अनोखी परंपरा! भक्तों से पहले बंदरों को मिलता है प्रसाद