morale broken, father encouraged him, shopkeeper’s son became a professor, know the success of the struggle – News18 हिंदी
कृष्ण कुमार/नागौर. कहते है कि सफलता का मूलमंत्र मेहनत और लगन. क्योंकि इन दोनों के माध्यम से व्यक्ति उस मुकाम पर पहुंच पाता है जिसका वो सपना देख रहा होता है. इसी मूलमंत्र को अपनाकर नागौर के एक शख्स को अपने लक्ष्य की प्राप्ति हुई है. जी हां हम बात कर रहे है भूपेश बाजिया की. भूपेश बाजिया एक मध्यम परिवार से तालुक रखते है लेकिन इन्होनें कठिन मेहनत व लगन के दम पर असिस्टेंट प्रोफसर का पदल हसिल किया है. चलिए बताते है कि इनके संघर्ष की कहानी
भूपेश बाजिया ने बताया कि उनके पिता एक दुकानदार और माता गृहणी हैं. इनकी सारी शिक्षा सरकारी विद्यालय व सरकारी महविद्यालय व विश्वविद्यालय से हुई है. इनकी शुरुआत शिक्षा कक्षा 1 से 5 तक सरकारी विद्यालय तथा कक्षा 6 से 12 तक भी सरकारी विद्यालय मे हुई है. कक्षा 12 मे नागौर के जिला टॉपर 75% के साथ रहे थे परन्तु जब बीए. कर रहे थे तब द्वितीय श्रेणी से पास होने पर पढ़ाई छोड़ने का मन बना लिया था, तब इनके माता व पिता ने पढ़ने के लिए प्रेरित किया उसके बाद इनका जीवन बदल गया और सरकारी सेवा की तैयारी करने लगे.
सेल्फ स्टेडी से पाया मुकाम
भूपेश का कहना है कि जब बीए करने के बाद M.A. कर रहा था तब साथ मे PTET का एग्जाम दिया तब पूरे राजस्थान मे 242 रैंक आई थी. उसके बाद बीएड किया. वहीं साल 2004 में RPSC ने थर्ड ग्रेड की वैकेसी निकाली तब तृतीय श्रेणी शिक्षक मे नंबर आ गया . सरकारी सेवा मे सलेक्शन होने के बावजूद भी पढ़ाई को छोड़ा नही लगातार मेहनत करता गया. तृतीय श्रेणी शिक्षक नियुक्त होने की वजह से M.A. बीच मे छोड़ दी तो वर्ष 2008 मे प्राइवेट M.A. की तथा वर्ष 2009 में नेट के साथ JRF एग्जाम कम्पलीट किया.
इस दौरान स्कूल लेक्चरार के रुप मे सलेक्शन हो गया. उसके बाद ग्रीष्मकाल अवकाश में जयपुर से कोचिंग की और लगातार मेहनत करता गया. वर्ष 2012 में असिस्टेंट प्रोफेसर के रुप मे सलेक्शन हो गया. वर्तमान समय मे हिन्दी साहित्य के असिस्टेंट प्रोफेसर रुप मे सेवा मे कार्यरत है.
यह भी किए शोध
भूपेश बाजिया बताते है कि असिस्टेंट प्रोफेसर बनने से पहले मास्टर ऑफ फलोशिप लोकसाहित्य मे किया. वही विजयदान देथा की कहानियों मे निरुपित राजस्थानी संस्कृति पर शोध किया. इसके अलावा वर्श 2018 में माइनर रिसर्च प्रोजेक्ट पर शोध किया और UGC से प्रोजेक्ट स्वीकृत होने के बाद राजस्थानी साहित्यकार विजयदान देथा को आधार बनाकर कथाकार बिजी ” संवेदना और शिल्प” पर रिसर्च करके प्रकाशन करवाया.भूपेश का कहना है कि इस दौरान मैनें कभी भी पढ़ाई को नही छोड़ा. जब तक सरकारी सेवा मे चयन नही हुता तब तक 8 से 10 घंटे नियमित पढ़ाई करना उसके अलावा जब सरकारी सेवा मे चयन हो गया तब प्रतिदिन 4 से 5 घंटे तक पढ़ाई करना आरंभ रखा.
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Tags: Local18, Nagaur News
FIRST PUBLISHED : January 25, 2024, 13:20 IST