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चैत्र मास के शुक्ल पक्ष की षष्ठी तिथि को देश के कई भागों में यमुना जयंती या यमुना छठ के पर्व के तौर पर मनाया जाता है। मुख्य रूप से यह पर्व मथुरा और वृंदावन और गुजरात में बहुत ही भव्य तरीके से मनाया जाता है।

दरअसल यह माना जाता है कि यमुना जयंती के दिन ही यमुना देवी धरती पर अवतरित हुईं थी, इसी के चलते इस दिन को उनके अवतरित होने के प्रतीक के रूप में मनाया जाता है।

जानकारों के अनुसार हिन्दू धर्म ( Hindu Dharma ) में साल में दो बार छठ मनाया जाता है। एक बार कार्तिक महीने में दूसरी बार चैत्र शुक्ल पक्ष की षष्ठी को यमुना छठ मनाया जाता है। यमुना छठ को यमुना जयंती के नाम से भी जाना जाता है। यमुना जयंती या यमुना छठ इस साल 18 अप्रैल 2021 को पड़ रही है।

मां यमुना के जन्मदिन पर इस दिन, लोग इस पवित्र नदी के तट पर छठ पूजा करते हैं और खुशी और समृद्धि के लिए प्रार्थना करते हैं। इस दिन भक्त यमुना नदी में स्नान कर विविध प्रकार के व्यंजन चढ़ाते हैं। इसके अलावा इस दिन भक्त भगवान कृष्ण ( Lord Krishna ) की पूजा करते हैं। कुछ भक्त यमुना छठ पर कठिन व्रत भी करते हैं।

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भक्त सुबह-शाम यमुना जी की पूजा करते हैं और व्रत करने के बाद अगले दिन 24 घंटे के बाद उपवास तोड़ा जाता है। साथ ही महिलाएं घर में विविध प्रकार की मिठाइयां तैयार करती हैं और देवी यमुना को चढ़ाती हैं और इसे सभी संबंधियों में बांट देती हैं। वहीं देश के कई भागों में यमुना छठ के दिन धूमधाम से झाकियां भी निकाली जाती हैं।

हिंदू पौराणिक ग्रंथों ( Hindu mythological texts ) में यमुना नदी को यमराज की बहन माना गया है। यमुना नदी का एक नाम यमी भी है। कहा जाता है कि सूर्य, यमराज और यमी के पिता हैं। बताया जाता है कि यमुना नदी को ‘असित’ के नाम से भी जाना जाता है और इसके पीछे की वजह ये है कि यमुना का जल पहले कुछ साफ़, कुछ नीला और कुछ सांवला था।

असित नाम के पीछे ये तर्क बताया जाता है कि असित एक ऋषि थे जिन्होंने सबसे पहले यमुना नदी को खोजा था और तभी से यमुना को ‘असित’ नाम से संबोधित किया जाने लगा।

रविवार को है यमुना जयंती?
इस साल यमुना छठ रविवार, 18 अप्रैल, 2021 को मनाई जाएगी।

षष्ठी तिथि प्रारम्भ : 08 बजकर 32 मिनट : अप्रैल 17, 2021
षष्ठी तिथि समाप्त : 10 बजकर 34 मिनट : अप्रैल 18, 2021

चैत्र छठ 2021 की सभी तिथियां…
नहाय-खाय तिथि: 16 अप्रैल 2021, शुक्रवार
खरना तिथि: 17 अप्रैल 2021, शनिवार
शाम के अर्घ्य की तिथि: 18 अप्रैल 2021, रविवार को
सुबह के अर्घ्य की तिथि: 19 अप्रैल 2021, सोमवार को

यमुना छठ – महत्व (Yamuna Chhath Importance)
पंडित एके मिश्रा के मुताबिक यमुना छठ हिंदुओं का एक प्रमुख त्यौहार है। देवी यमुना, हिंदू पौराणिक कथाओं के अनुसार, भगवान कृष्ण ( Shri krishna ji ) की पत्नी थीं यही कारण है कि यह त्यौहार ब्रज, मथुरा और वृंदावन में लोगों के लिए इस तरह की श्रद्धा रखता है।

बताया जाता है कि पांडवों के लाक्षागृह से कुशलतापूर्वक बच निकलने के बाद एक दिन अर्जुन को साथ लेकर भगवान कृष्ण वन विहार के लिए निकले। जिस वन में वे विहार कर रहे थे वहां पर सूर्य पुत्री कालिंदी (यमुना), श्रीकृष्ण को पति रूप में पाने की कामना से तप कर रही थी।


कालिन्दी की मनोकामना पूर्ण करने के लिए श्रीकृष्ण ने उसके साथ विवाह कर लिया। कालिन्दी खांडव वन में रहती थी। यहीं पर पांडवों का इंद्रप्रस्थ बना था।यह भी कहा जाता है कि कालिंदी ने अर्जुन से कहकर श्रीकृष्ण से विवाह किया था। भागवतपुराण के अनुसार द्रौपदी ने कालिंदी का हस्तिनापुर में स्वागत किया था, उस समय कालिंदी ने अपने विवाह का रहस्य बताया था।

यमुना नदी को गंगा, ब्रह्मपुत्र, सरस्वती और गोदावरी की तरह ही हिंदू संस्कृति में एक पवित्र नदी के रूप में सम्मानित किया गया है। यही कारण है कि इस दिन देवी यमुना के वंश के रूप में और उसकी जयंती के रूप में मनाया जाता है।

यमुना छठ – भगवान श्री कृष्ण की पूजा
यमुना जयंती देश के कई भागों में बहुत उत्साह से मनाई जाती है। इस लोग सुबह जल्दी उठते हैं और सूर्योदय से पहले पवित्र नदी में स्नान करते हैं। इस पवित्र नदी में स्नान, आत्मा को शुद्ध करता है और सभी पापों से मुक्त करता है। इसके बाद, छठ पूजा एक विशिष्ट छठ पूजा मुहूर्त पर देवी यमुना को समर्पित की जाती है। इस दिन भक्त भगवान कृष्ण की पूजा करते हैं।

कुछ लोग यमुना छठ पर सख्त उपवास भी करते हैं। भक्तों को सुबह-शाम पूजा करने और व्रत करने के बाद अगले दिन 24 घंटे के बाद उपवास तोड़ा जाता है। मिठाई तैयार की जाती है और देवी यमुना को समर्पित की जाती है और इसे सभी रिश्तेदारों, पड़ोसियों और दोस्तों के बीच प्रसाद के रूप में बांटा जाता है।

यमुना छठ व्रत-पूजा विधि (Yamuna Chhath puja vidhi)

: इस दिन सुबह सवेरे उठकर लोग यमुना जी में डुबकी लगाते हैं और व्रत का संकल्प लेते हैं।

: देवी यमुना को भगवान श्रीकृष्ण की साथी भी माना गया है इसलिए इस दिन भगवान कृष्ण की भी पूजा की जाती है।

: इस दिन के बारे में ऐसी मान्यता कि भक्तों से प्रसन्न होकर यमुना माता अपने भक्तों को निरोग होने का वरदान भी देती हैं।

: फिर भक्त संध्या के समय पूजा करते हैं और उसके बाद यमुना अष्टक का पाठ करते हैं।

: इस दिन लोग यमुना जी को भोग लगाते हैं और फिर दान-पुण्य करते हैं और उसके बाद ही पारण करते हैं।

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छठ व्रत के दौरान न करें ये काम
: छठ के किसी भी बर्तन या पूजन सामग्री को झूठे हाथ से नहीं छूने पर यह व्रत खंडित माना जाता है।

: इसमें चढ़ाने वाले फल या फूल भी टूटे या पशु पक्षी द्वारा खाए हुए नहीं होने चाहिए।

: छठ के दौरान सात्विक भोजन करना चाहिए।

: छठ व्रती को व्रत करने वाले जातक को अलग से आसन बिछाना सोना चाहिए।

: छठ पूजा के दौरान पूर्व में इस्तेमाल में लाया गया बर्तन चाहे वह पूजा का ही क्यों न हो दोबारा प्रयोग में नहीं लाना चाहिए।

: छठ के नाम पर लाई गई वस्तु को व्रत के दौरान ही इस्तेमाल करना चाहिए।

यमुना छठ की कथा (Yamuna Chhath Story)

पौराणिक कथा के अनुसार यमुना को सूर्य की पुत्री माना जाता है। यमुना शनिदेव और यमदेव की बहन भी हैं। पुराणों के अनुसार सूर्य देव की पत्नी छाया श्याम वर्ण की थी। इसी कारण से उनकी संतान यमुना और यम दोनो ही श्यामवर्ण के पैदा हुए। यमराज ने यमुना को वरदान दिया था कि जो भी लोग स्नान करेंगे उन्हें यमलोक नहीं जाना पड़ेगा। माना जाता है कि कृष्णावतार के समय यमुना वहीं पर स्थित थीं।

जब भगवान श्री कृष्ण ने माता लक्ष्मी को राधा के रूप में जन्म लेने के लिए कहा तो राधा जी ने यमुना को भी साथ चलने के लिए कहा। इसी कारण से द्वापर युग में यमुना जी भी धरती पर अवतरित हुई थीं। इसलिए ब्रज में मां यमुना को माता के रूप में पूजा जाता है और यमुना छठ का पर्व यहां पर विशेष रूप से मनाया जाता है और स्नान और पूजा करके मां यमुना का आशीर्वाद प्राप्त किया जाता है।

 

यमुना जी की आरती : Yamuna ji ki Aarti

ॐ जय यमुना माता, हरि ॐ जय यमुना माता,
नो नहावे फल पावे सुख सुख की दाता |

पावन श्रीयमुना जल शीतल अगम बहै धारा,
जो जन शरण से कर दिया निस्तारा ।

जो जन प्रातः ही उठकर नित्य स्नान करे,
यम के त्रास न पावे जो नित्य ध्यान करे ।

कलिकाल में महिमा तुम्हारी अटल रही,
तुम्हारा बड़ा महातम चारों वेद कही ।

आन तुम्हारे माता प्रभु अवतार लियो,
नित्य निर्मल जल पीकर कंस को मार दियो ।

नमो मात भय हरणी शुभ मंगल करणी,
मन ‘बेचैन’ भय है तुम बिन वैतरणी ।

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