मुनक्का कारीगरी: सिंध की प्रसिद्ध कारीगरी ‘मुनक्का’ को भारत में मिली नई जिंदगी, सरहद पार से आई समजू महिलाओं को सीखा रही हुनर
बाड़मेर. अखंड भारत मे जब मुल्कों की लकीरें नही खिंची थी तब सिंध और हिन्द के बीच रोटी-बेटी का नाता रहा था. और यह नाता हाथों के हुनर के चलते रोजगार का आधार बना हुआ था. साल 1947 में जब एक धरती दो रंगों में तब्दील हुई तब हजारों परिवार सिंध से हिंद आ बसे और वह अपने साथ ले आए हाथो का हुनर.
सैकड़ों महिलाओं को बनाया हुनरमंदसरहद के उस पार से सुई-धागे का हुनर सीखकर भारत-पाकिस्तान सीमा पर बसे बाड़मेर के छोटे से गांव मिठडाउ में पूरे परिवार के साथ आकर समजू बस गई. अपनी दादी और फिर अपनी मां से सीखी धागों की महीन कारीगरी से समजू ने अब तक सैकड़ो महिलाओं को हुनरमंद बना दिया है. पाकिस्तान संगारासियों का तला, नगर पारकर की इस बारीक कारीगरी को भारत में व्यापारियों और हुनर के जानकारों ने हाथों हाथ अपना लिया है. आज निरक्षर समजू देवी मेघवाल ना केवल राजस्थान बल्कि देश के कई बड़े शहरों में अपने सुई धागे के हुनर को लोगो के सामने रख चुकी है.सिंध का सबसे खास परिधान है मुक्काविभिन्न मेलो में लोगों को इनकी स्टॉल के लगने का इंतजार रहता है. रेतीले सिंध में विवाह के वक़्त बेटी को दिए जाने वाला सबसे खास परिधान मुक्का से बनता था. मुक्का सोने और चांदी के धागों से कपड़े पर सजता था. सिंध का यह मुक्का बरसों पहले विभाजन के वक़्त सरहद के उस पार से इस पार आ गया. बेहद मुश्किल और मेहनतकश कारीगरी को लेकर आज भी फनकार इसको बनाने में जुटे नजर आते हैं.
दहेज में सबसे बड़ा उपहार होता था मुक्कासिंध के हुनरमंद हाथ अब हिंदुस्तानी सरजमीं पर बारीकी और मनभावन कला के साथ निपुणता से काम में जुटे नजर आते हैं. सरहदी बाड़मेर के कई गांवों में चमकीले, लाल, नारंगी, हरे, पीले, नीले और गुलाबी धागों से औरतें अपने पारंपरिक अंगिया-चोली पर मुक्के को दहेज में बेटी को सबसे बड़े उपहार के रूप में दी जाती थी.
37 सालों से बदस्तूर जारी है मुनक्का बनाने का काम मिठडाउ गांव की फनकार समजू देवी ने लोकल 18 से खास बातचीत करते हुए कहा कि मुक्के को साड़ी, कुर्ती, बैग, पुशनकवर, वॉल कवर और बेडशीट सहित कई घरेलू उपयोगी वस्त्रों और उत्पादों पर उकेरा है. समजूदेवी ने अपनी दादी और मां से सीखे हुनर को अपनी बेटियों को भी सीखा रही हैं. वह बताती हैं कि 20 साल की उम्र से ही मुक्का बनाना सीखा था और आज 57 साल की उम्र में भी यह काम बदस्तूर जारी है.
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FIRST PUBLISHED : December 7, 2024, 23:36 IST