मुस्तफा कमाल तुर्की को बनाना चाहते थे आधुनिक, लेकिन एर्दोगान ले जा रहे कट्टरपंथ की ओर

Mustafa Kamal vs Erdogan: भारत और पाकिस्तान के बीच चल रहे संघर्ष में हमारे दुश्मन देश का साथ देना तुर्की को भारी पड़ रहा है. भारत में तुर्की के बॉयकॉट की मुहिम चलाई जा रही है. इस बीच राजधानी दिल्ली में प्रधानमंत्री आवास के पास स्थित मुस्तफा कमाल अतातुर्क मार्ग का नाम बदलने की मांग उठने लगी है. इस मांग को लेकर व्यापारियों के शीर्ष संगठन चेंबर ऑफ ट्रेड इंडस्ट्री (CTI) की तरफ से प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को पत्र लिखा गया है. सीटीआई का कहना है कि यह उचित नहीं है कि राजधानी की प्रमुख लोकेशन पर उस देश के संस्थापक का नाम हो, जो लगातार भारत विरोधी रुख अपनाए हुए है.
लेकिन भारत की जनता उस शख्स को सजा देने पर आमादा है, जिसने ये अपराध किया ही नहीं. मौजूदा समय में तुर्की का नेतृत्व रजब तैयब एर्दोगान के हाथों में है और वह पाकिस्तान का साथ दे रहे हैं. क्योंकि वो एक मुस्लिम देश है. लेकिन मुस्तफा कमाल अतातुर्क (1881-1938) ऐसे शख्स नहीं थे. मुस्तफा कमाल को आधुनिक तुर्की का निर्माता कहा जाता है. तुर्की के पहले राष्ट्रपति मुस्तफा कमाल ने मुस्लिम होकर भी अपने देश को आधुनिक बनाने के लिए इस्लाम की कुरीतियों का विरोध किया था. उन्होंने समाज में कट्टरता फैलाने वाले मौलवियों को फांसी की सजा सुनाई. इस्लामी कानूनों को हटाकर उन्होंने नए कानून लागू किए ताकि देश उन्नति के रास्ते पर आगे बढ़ सके.
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तुर्की के संस्थापक हैं मुस्तफा कमालमुस्तफा कमाल तुर्की के इतिहास में एक महत्वपूर्ण स्थान रखते हैं. उन्हें तुर्की गणराज्य के संस्थापक के रूप में जाना जाता है और उन्हें अपने व्यापक सुधारों के लिए जाना जाता है. उन्होंने देश को एक आधुनिक, धर्मनिरपेक्ष और राष्ट्रीय राज्य में बदल दिया. यह पाया गया कि मुस्तफा कमाल की क्रांतियों और सुधारों ने तुर्की को कुछ पहलुओं पर आधुनिकीकरण के एक नए युग में ला खड़ा किया. उन्होंने अपने देश के संविधान में संशोधन किया ताकि पारंपरिक इस्लामी नेतृत्व को खत्म किया जा सके. मुस्तफा कमाल ने जब देश की बागडोर संभाली तो मौलवियों ने उनका विरोध करना शुरू कर दिया. उन्होंने मुस्तफा कमाल के खिलाफ फतवे जारी किए. मुस्तफा कमाल ने मार्च 1924 में खिलाफत प्रथा का ही अंत कर दिया. उन्होंने तुर्की को धर्मनिरपेक्ष राष्ट्र घोषित कर दिया. मुस्तफा कमाल ने इसके लिए एक विधेयक पेश किया, जिसका तुर्की की संसद में विरोध हुआ. लेकिन उन्होंने किसी तरह उसे पास करा लिया.
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एर्दोगान की है इस्लामी सोचवहीं, रजब तैयब एर्दोगान तुर्की को कई दिशाओं में ले जाना चाहते हैं, जो उनकी राजनीतिक विचारधारा और तुर्की के भू-राजनीतिक हितों से प्रेरित है. उनके दृष्टिकोण को ‘एर्दोगानवाद’ (Erdoğanism) के रूप में जाना जाता है. जिसमें तुर्की रूढ़िवाद, पैन-इस्लामवाद, तुर्की राष्ट्रवाद और ओटोमन साम्राज्य के पुनरुत्थान की इच्छा के तत्व शामिल हैं. मुस्तफा कमाल अतातुर्क द्वारा स्थापित तुर्की गणराज्य के धर्मनिरपेक्ष सिद्धांतों से दूर जाकर एर्दोगान तुर्की में इस्लामी सोच को बढ़ावा देना चाहते हैं. वे सामाजिक और आर्थिक नीतियों में धर्म को महत्व देते हैं. हालांकि शरिया कानून लागू करने की संभावना कम है क्योंकि तुर्की की जनता इसके लिए तैयार नहीं है. इसका एक उदाहरण उनकी पाकिस्तान के साथ मजबूत होती दोस्ती है. जिसे वे एक इस्लामी देश के रूप में देखते हैं और कश्मीर मुद्दे पर अक्सर पाकिस्तान का समर्थन करते हैं.
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एर्दोगान चाहते हैं वैश्विक शक्ति बननाएर्दोगान तुर्की को एक प्रमुख क्षेत्रीय और वैश्विक शक्ति के रूप में स्थापित करना चाहते हैं. वे तुर्की की सैन्य शक्ति विशेष रूप से ड्रोन तकनीक में निवेश करके इसे मजबूत कर रहे हैं. वे विभिन्न क्षेत्रीय संघर्षों में मध्यस्थता की भूमिका निभाते हैं, जैसे रूस-यूक्रेन युद्ध में शांति वार्ता आयोजित करना. उनका लक्ष्य एक ‘नया तुर्की’ बनाना है जो पश्चिमी प्रभाव से मुक्त हो और अधिक न्यायसंगत अंतरराष्ट्रीय व्यवस्था की वकालत करता हो. एर्दोगान के तहत तुर्की की विदेश नीति अधिक मुखर और स्वतंत्र हो गई है. वे घरेलू राजनीतिक समीकरण से प्रेरित होकर अपनी विदेश नीति के निर्णय लेते हैं. जैसे सीरिया और लीबिया में सैन्य अभियान चलाकर राष्ट्रवादी भावनाओं को मजबूत करना. उन्होंने राष्ट्रपति पद की शक्तियों का विस्तार किया है और प्रधानमंत्री के पद को समाप्त कर दिया है.
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कौन हैं मुस्तफा कमाल अतातुर्कमुस्तफा कमाल का जन्म 1881 में सलोनिका (वर्तमान में थेसालोनिकी, ग्रीस) में हुआ था. यह उस समय ओटोमन साम्राज्य का हिस्सा था. उनके पिता अली रिज़ा इफेंडी एक कस्टम अधिकारी थे, जबकि उनकी मां ज़ुबेदे हनीम एक गृहिणी थीं. जब वह छोटे थे तब उनके पिता की मृत्यु हो गई थी. जिसके बाद उनकी मां ने उनकी परवरिश में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई और शिक्षा पर जोर दिया. मुस्तफा कमाल ने सीखने के लिए कम उम्र से ही योग्यता दिखाई. उन्होंने सलोनिका में सैन्य स्कूल में दाखिला लिया और ओटोमन मिलिट्री अकादमी चले गए. जहां से उन्होंने 1902 में ग्रेजुएशन किया. मुस्तफा कमाल ने अपने सैन्य करियर की शुरुआत ओटोमन सेना से की थी. अपनी नेतृत्व क्षमता और रणनीतिक कौशल के कारण वे उच्च पदों पर पहुंचे. इस दौरान उन्होंने विभिन्न सैन्य पदों पर काम किया.
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बाल्कन युद्धों में भाग लिया मुस्तफा कमाल ने मुस्तफा कमाल ने बाल्कन युद्धों (1912-1913) में भाग लिया. प्रथम विश्व युद्ध के दौरान एक कमांडर के रूप में उन्हें महत्वपूर्ण पहचान मिली. खासकर गैलीपोली की लड़ाई (1915-1916) में जहां उन्होंने मित्र देशों की सेना के खिलाफ एक महत्वपूर्ण जीत के लिए ओटोमन सेना का नेतृत्व किया. गैलीपोली में उनकी सफलता ने उन्हें राष्ट्रीय ख्याति दिलाई और एक कुशल सैन्य नेता के रूप में उनकी प्रतिष्ठा को मजबूत किया. प्रथम विश्व युद्ध में ओटोमन साम्राज्य की हार के बाद साम्राज्य को मित्र राष्ट्रों द्वारा कब्जा और विभाजन का सामना करना पड़ा. इससे पूरे तुर्की में राष्ट्रवादी भावना की लहर भड़क उठी. मुस्तफा कमाल तुर्की स्वतंत्रता संग्राम (1919-1923) में एक अग्रणी व्यक्ति के रूप में उभरे. उन्होंने विभिन्न गुटों से समर्थन जुटाया और अनातोलिया में एक नई सरकार की स्थापना की.
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मुस्तफा कमाल बने तुर्की के पहले राष्ट्रपतिमुस्तफा कमाल ने अप्रैल 1920 में अंकारा में तुर्की की ग्रैंड नेशनल असेंबली बुलाई, जिसमें राष्ट्रवादी आंदोलन की वैधता पर जोर दिया गया. वह इसके पहले राष्ट्रपति बने और तुर्की की संप्रभुता की लड़ाई का नेतृत्व किया. युद्ध का समापन तुर्की राष्ट्रवादियों की जीत के साथ हुआ. 1923 में लॉजेन की संधि ने आधुनिक तुर्की की सीमाएं स्थापित कीं और इसकी संप्रभुता को मान्यता दी. 29 अक्टूबर 1923 को मुस्तफा कमाल ने तुर्की गणराज्य की घोषणा की और ओटोमन सल्तनत को समाप्त कर दिया. उन्होंने एक नए युग की शुरुआत का संकेत दिया. तुर्की को आधुनिक बनाने और इसे एक धर्मनिरपेक्ष राज्य में बदलने के लिए सुधारों का एक महत्वाकांक्षी कार्यक्रम शुरू किया. उनके सुधारों को अक्सर सामूहिक रूप से कमालवाद के रूप में संदर्भित किया जाता है.
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खिलाफत को खत्म कर धर्म को राज्य से अलग कियामुस्तफा कमाल ने 1924 में खिलाफत को खत्म करके और धार्मिक अदालतों को बंद करके धर्म को राज्य के मामलों से अलग कर दिया. उन्होंने धर्मनिरपेक्ष शिक्षा के महत्व पर जोर दिया. उन्होंने इस्लामी कानून (शरिया) की जगह यूरोपीय कानूनी प्रणालियों पर आधारित धर्मनिरपेक्ष नागरिक संहिता लागू की. इस सुधार ने महिलाओं को समान अधिकार दिए, जिसमें वोट देने और सार्वजनिक पद संभालने का अधिकार भी शामिल है. मुस्तफा कमाल ने साक्षरता बढ़ाने और तुर्की भाषा को आधुनिक बनाने के उद्देश्य से अरबी लिपि की जगह लैटिन वर्णमाला की शुरुआत की.
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शिक्षा को बढ़ावा, महिलाओं की स्थिति में सुधारउन्होंने शिक्षा को बढ़ावा देने के लिए स्कूलों और विश्वविद्यालयों की स्थापना की. मुस्तफा कमाल ने कृषि और उद्योग को आधुनिक बनाने के लिए नीतियां लागू कीं. सुधारों के तहत महिलाओं की सामाजिक स्थिति में उल्लेखनीय सुधार हुआ. 1930 के दशक की शुरुआत में महिलाओं को वोट देने और चुनाव लड़ने का अधिकार मिला. जो मुख्य रूप से पितृसत्तात्मक समाज में एक प्रगतिशील सोच थी. 1930 के दशक के अंत में लीवर की समस्याओं के कारण मुस्तफा कमाल का स्वास्थ्य खराब होने लगा. 10 नवंबर, 1938 को इस्तांबुल के डोलमाबाचे पैलेस में उनका निधन हो गया. उनकी मृत्यु ने तुर्की के लिए एक युग का अंत कर दिया.