Rajasthan

Navratri Special: Aarti of this goddess is performed in a silver vessel, makeup items are offered as prasad

Last Updated:March 31, 2025, 08:58 IST

Navratri Special: ज्वाला माता के इस मंदिर के गर्भगृह में अखंड ज्योत प्रज्वलित है, जो मंदिर की स्थापना से लेकर आज तक लगातार जल रही है. यहां की खास परंपरा यह है कि माता की आरती चांदी के बर्तनों में ही की जाती है…और पढ़ेंX
ज्वाला
ज्वाला माता मंदिर 

ज्वाला माता का प्राचीन मंदिर जयपुर से लगभग 50 किलोमीटर दूर एक पहाड़ी पर स्थित है. यहां माता सती के घुटने की पूजा की जाती है. पौराणिक मान्यता के अनुसार, जब भगवान शिव माता सती के पार्थिव शरीर को लेकर तांडव कर रहे थे. उनके शरीर के विभिन्न हिस्से अलग-अलग स्थानों पर गिरे. ऐसी मान्यता है कि माता सती के घुटने का भाग जोबनेर में गिरा था. इसी स्थान पर ज्वाला माता के रूप में देवी की पूजा की जाती है.

यहां किसी मूर्ति की स्थापना नहीं की गई है. मंदिर के पुजारी बनवारी लाल पाराशर ने बताया कि एक गुफा में माता के घुटने के आकार की प्राकृतिक आकृति प्रकट हुई थी. जिसे ही देवी का स्वरूप मानकर पूजा जाता है. इस मंदिर में माता को सवा मीटर की चुनरी और 5 मीटर के कपड़े से बने लहंगे से श्रृंगारित करते हैं तथा 16 श्रृंगार करते हैं.

चांदी के बर्तनों में ही की जाती आरती ज्वाला माता के इस मंदिर के गर्भगृह में अखंड ज्योत प्रज्वलित है, जो मंदिर की स्थापना से लेकर आज तक लगातार जल रही है. यहां की खास परंपरा यह है कि माता की आरती चांदी के बर्तनों में ही की जाती है. देवी को केवटा, हार, छत्र और मुकुट पहनाए जाते हैं. जिससे उनका भव्य श्रृंगार किया जाता है. नवरात्रि के अवसर पर मंदिर में वार्षिक लक्खी मेले का आयोजन किया जाता है, जिसमें लाखों श्रद्धालु दर्शन के लिए आते हैं.

प्राचीन इतिहास और परंपराएंऐतिहासिक रूप से यह मंदिर चौहान काल में संवत 1296 में निर्मित माना जाता है. 1600 के आसपास जगमाल पुत्र खंगार, जो जोबनेर के प्रतापी शासक थे, उन्होंने इस मंदिर की सेवा में अपना जीवन समर्पित किया. यहां माता को खंगारोत राजपूतों की कुलदेवी माना जाता है और वे विशेष रूप से इस मंदिर में पूजा-अर्चना करते हैं. मंदिर की सबसे अनोखी विशेषता यहां स्थित 200 वर्ष पुरानी नौबत (बड़ा नगाड़ा) है, जिसे सुबह-शाम आरती के समय बजाया जाता है. यह परंपरा मंदिर की प्राचीनता और सांस्कृतिक धरोहर को दर्शाती है.

नवविवाहित जोड़ों और मुंडन संस्कार के लिए विशेष स्थलसाल भर माता के दरबार में नवविवाहित जोड़े माता के दरबार में जात देने आते हैं. जिन परिवारों की कुलदेवी ज्वाला माता हैं, वे अपने छोटे बच्चों का मुंडन संस्कार भी यहीं करवाते हैं. माता के प्रति अपार श्रद्धा के कारण देशभर से भक्तजन यहां अपनी मनोकामनाओं की पूर्ति के लिए पहुंचते हैं. मंदिर में देवी की पूजा ब्रह्म (सात्विक) और रुद्र (तांत्रिक) दोनों स्वरूपों में की जाती है. सात्विक पूजा में खीर, पूरी, चावल, पुए-पकौड़ी और नारियल का भोग लगाया जाता है, जबकि रुद्र स्वरूप में मांस और मदिरा का भोग चढ़ाने की परंपरा है.

Location :

Jaipur,Rajasthan

First Published :

March 31, 2025, 08:58 IST

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ज्वाला माता के इस मंदिर के गर्भगृह में अखंड ज्योत प्रज्वलित है, जो मंदिर की स्थापना से लेकर आज तक लगातार जल रही है

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