ना पानी, ना नहर… फिर भी रेगिस्तान में खिल उठा चंदन, बाड़मेर के किसान के लिए इंटरनेट बना सहारा

बाड़मेर. थार रेगिस्तान की रेतीली धूप और पानी की एक-एक बूंद के लिए आसमान ताकने वाले इलाके में एक किसान ने नामुमकिन को मुमकिन कर दिखाया है. बाड़मेर के भिमड़ा गांव के डॉ. जोगेश चौधरी ने इंटरनेट की मदद से ‘सफेद चंदन’ के पेड़ उगा दिए हैं. जहां रेत के टीलों पर हरियाली एक सपना लगता था, वहां आज 900 से अधिक चंदन के पौधे लहलहा रहे हैं. यह हरियाली न सिर्फ पर्यावरण को समृद्ध कर रही है, बल्कि 15 साल बाद किसानों के लिए ‘सोना’ उगलने वाली साबित होगी.
डॉ. जोगेश, जो एक वरिष्ठ चिकित्सा अधिकारी हैं, ने कभी किसी कृषि संस्थान से औपचारिक प्रशिक्षण नहीं लिया बल्कि, यूट्यूब, गूगल और ऑनलाइन फोरम्स से चंदन की खेती की बारीकियां सीखीं. कर्नाटक की चंदन बागानों की यात्रा ने डॉ. जोगेश को प्रेरित किया. वहां की हरी-भरी वादियां देखकर उन्होंने सोचा, क्यों न राजस्थान के रेगिस्तान को भी हरित बनाया जाए? गुजरात के किसानों से मिली प्रेरणा के बाद 2021 में उन्होंने अपने 18 बीघा पैतृक खेत पर पहला प्रयोग शुरू किया.
पौधे मुरझाने के बाद भी नहीं मानी हार
डॉ. जोगेश के लिए शुरुआत आसान न थी. दो महीने में ही 900 पौधों पर दीमक का हमला हो गया. सभी पौधे मुरझा गए. हार न मानते हुए डॉ. जोगेश ने जोधपुर के विशेषज्ञ डॉ. राठौर से संपर्क किया, जिनके 14 वर्षों के अनुभव ने उन्हें नई दिशा दी. अब वे जैविक तरीकों से कीटों से बचाव करते हैं. चंदन का पौधा परजीवी होता है, जो अपनी जड़ों से होस्ट पौधों का रस चूसता है. इस ज्ञान के आधार पर डॉ. जोगेश ने खेत में ‘होस्ट प्लांट्स’ के रूप में आंवला (500), खेजड़ी (400), अमरूद, नींबू और अंजीर (प्रत्येक 100) लगाए. ये न सिर्फ चंदन को पोषण देते हैं, बल्कि अतिरिक्त आय का स्रोत भी हैं. आज तीन साल बाद पौधे 5-8 फीट ऊंचे हो चुके हैं.
रेगिस्तान की कठोर मिट्टी चंदन के लिएहै उपयुक्त
डॉ. जोगेश बताते हैं कि रेगिस्तान की कठोर मिट्टी सूखी और अच्छी जल निकासी वाली होती है, जो चंदन के लिए आदर्श है. कम पानी और ज्यादा धूप में यह फलता-फूलता है. चंदन की जड़ों से निकलने वाला तेल सोने से भी महंगा है. इसका हृदय काष्ठ (हार्टवुड) इत्र, सौंदर्य प्रसाधनों, धार्मिक अनुष्ठानों और आयुर्वेदिक दवाओं में इस्तेमाल होता है. एक परिपक्व पेड़ की जड़ से 2-3 लीटर तेल निकलता है, जिसकी कीमत 2-3 लाख रुपये तक हो सकती है. प्रति किलो लकड़ी 5,000 से 35,000 रुपये बिकती है.
युवाओं को मुफ्त ट्रेनिंग दे रहे डॉ. योगेश
15 साल बाद डॉ. जोगेश के 900 पेड़ों से करोड़ों की कमाई संभव है. वे कहते हैं एक नई पत्ती देखकर खुशी मिलती है. यह सिर्फ पैसा नहीं, पर्यावरण संरक्षण का मिशन है. यह सफलता राजस्थान के अन्य किसानों के लिए मिसाल है. चंदन की खेती से न सिर्फ मिट्टी का कटाव रुकेगा, बल्कि रेगिस्तान में जैव विविधता बढ़ेगी. डॉ. जोगेश अब स्थानीय युवाओं को मुफ्त ट्रेनिंग दे रहे हैं. उनकी कहानी साबित करती है कि इंटरनेट की मदद और जुनून से रेगिस्तान भी फल-फूल सकता है.



