फिरोजाबाद ही नहीं राजस्थान का यह गांव भी चुड़ियों के लिए है प्रसिद्ध, देशभर में होती है डिमांड, इस वजह से है खास

Last Updated:May 10, 2025, 08:03 IST
Bharatpur Hasela Village Glass Bangles Business: भरतपुर का हसेला गांव कांच की चुड़ियों के लिए प्रसि़द्ध है. यहां की चूड़ियां स्थानीय बाजार के अलावा देश के कई हिस्सों में सप्लाई की जाती है. यहां के ग्रामीणाें का य…और पढ़ेंX
भरतपुर की मशहूर रंग-बिरंगी चूड़ियाँ
हाइलाइट्स
भरतपुर का हसेला गांव कांच की चूड़ियों के लिए प्रसिद्ध है.यहां की चूड़ियां बिना जोड़ वाली होती हैं.करीब 50 परिवार इस व्यवसाय से जुड़े हैं.
भरतपुर. अक्सर कांच की चूड़ियों की बात आते ही तो फिरोजाबाद का नाम सबसे पहले लिया जाता है. लेकिन, राजस्थान और उत्तर प्रदेश की सीमा पर बसा भरतपुर जिला के हसेला गांव की पहचान भी कांच की चूड़ियों से है. हसेला की बिना जोड़ वाली कांच की चूड़ियां भी देशभर में खासी लोकप्रिय है. यह परंपरा यहां वर्षों से चली आ रही हैऔर गांव के अधिकांश लोग इसी व्यवसाय से जुड़े हैं.
हसेला के निवासी चुन्नीलाल बताते हैं कि यह उनका पुश्तैनी पेशा है. जिसे अब उनकी अगली पीढ़ी भी अपना रही है. यहां लगभग 50 परिवार ऐसे हैं, जो कांच की चूड़ियों को आकार देने में जुटे रहते हैं .खास बात यह है कि यह चूड़ियां केवल स्थानीय बाजार तक सीमित नहीं बल्कि उत्तर प्रदेश, हरियाणा, राजस्थान, मध्य प्रदेश, पंजाब और गुजरात सहित देश के कई हिस्सों में सप्लाई की जाती है.
कांच की चूड़ियों के लिए फेमस है हसेला गांव
चुन्नीलाल ने बताया कि हसेला गांव में बनने वाली हरी और लाल रंग की चूड़ियों की खासियत है कि यह पूरी तरह कांच से बनी होती है. इनमें किसी भी प्रकार का जोड़ नहीं होता है और धार्मिक आयोजन, विवाह समारोह और देवी-देवताओं की पूजा में इनका विशेष महत्व है. बाजार में इन चूड़ियों की मांग बनी रहती है. जिससे सालाना अच्छा खासा कारोबार होता है. लेकिन, इस व्यवसाय की चमक के पीछे कारीगरों की तकलीफों भरी जिंदगी छिपी है. इन चूड़ियों को बनाने के लिए सबसे पहले कच्चा माल व्यापारी द्वारा भेजा जाता है और गांव के कारीगर उसे तैयार करते हैं.
कांच की चुड़ियों को बारीकी से दिया जाता है आकार
कच्चे माल को भट्टी में तपाया जाता है और सांचे में डालकर चुड़ी को आकर्षक आकार दिया जाता है. चूड़ी को अलग-अलग आकार देने के लिए यहां के कारीगरों को महारत हासिल है. इन चूड़ियों को बड़ी बारीकी और सावधानी पूर्वक बनाया जाता है. इस पेशे में शामिल लोगों के समक्ष स्वास्थ्य को लेकर भी बड़ी चुनौती रहती है. चूड़ियां बनाने में प्रयोग होने वाली भट्टियों से उठता धुआं फेफड़ों को नुकसान पहुंचाता है और आंखों की रोशनी कमजोर होती है. वहीं गर्मी में काम करना बेहद कठिन हो जाता है. अधिकतर कारीगर 40-45 वर्ष की उम्र के बाद इस काम को छोड़ने पर मजबूर हो जाते हैं.
Location :
Bharatpur,Rajasthan
homerajasthan
कांच की चुड़ियों के लिए फेमस है राजस्थान का यह गांव, देशभर में होती है डिमांड