NRI Special : यूपी, उत्तराखंड व महाराष्ट्र से ताल्लुक रखने वाली अर्चना पैन्यूली ने इस देश में खूब कमाया नाम , जानिए सक्सेस स्टोरी | Archana Panuli of india earned a lot of name in this country, know
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अर्चना पैन्यूली : एक नजर
जन्म 17 मई 1963
कानपुर, उत्तर प्रदेश
व्यवसाय : अध्यापन (नार्थ सेलैंड इंटरनेशनल स्कूल, डेनमार्क।
राष्ट्रीयता : डेनिश
विषय : साहित्य
प्रारंभिक जीवन भारत के उत्तरप्रदेश में बीता
अर्चना पैन्यूली का प्रारंभिक जीवन भारत के उत्तरप्रदेश में बीता। उनके माता-पिता मूलतः हिमालय पर्वतीय प्रदेश, गढ़वाल के निवासी थे, मगर जीविकोपार्जन के सिलसिले में पिता से पहाड़ छूट गया। पिता स्व महीधर देवली राज्य उत्तरप्रदेश एक्साइज डिपार्टमेंट में अधिकारी थे। उन दिनों पिता की पोस्टिंग कानपुर में होने की वजह से अर्चना पैन्यूली का जन्म 17 मई 1963 में कानपुर, उत्तरप्रदेश में हुआ। बाद में परिवार देहरादून में बसने से अर्चना पैन्यूली की शिक्षा-दीक्षा देहरादून में हुई। एम.के.पी. पोस्ट्ग्रेजुएट कालेज, देहरादून से बी.एससी.; डी.ए.वी. पोस्ट ग्रेजुएट कॉलेज, देहरादून से एम.एससी. और गढ़वाल विश्वविद्यालय, परिसर टिहरी, टिहरी गढ़वाल कैम्पस से बी.एड. की पढ़ाई की।
अध्यापन व लेखन प्रक्रिया
अर्चना पैन्यूली सन 1987 में शादी के बाद देहरादून से मुंबई में बस गईं। वहाँ माध्यमिक स्कूलों में अध्यापन आरंभ किया और राष्ट्रीय पत्र-पत्रिकाओं, जनसत्ता, मेरी सहेली, सरिता, गृहशोभा व गृहलक्ष्मी में छपना शुरू हुआ। सन 1997 में साइंटिस्ट पति डॉ ज्योतिप्रसाद पैन्यूली ने डेनमार्क के राष्ट्रीय अनुसन्धान संस्थान में साइंटिस्ट का पद ग्रहण किया और परिवार भारत से डेनमार्क पहुंच गया। डेनमार्क में अर्चना पैन्यूली ने डेनिश भाषा के कोर्स किए और डेनिश भाषा सीखी। अध्यापन के प्रोफेशनल डवलपमेंट सर्टिफिकेट कोर्स कर के उन्होंने विदेश में अपने कौशल को पुख्ता किया।
अध्यापन के साथ लेखन भी परवान चढ़ा
वे सन 2003 से नार्थ-सेलैंड इंटरनेशनल स्कूल, डेनमार्क में अध्यापिका हैं। अध्यापन के साथ-साथ उनका लेखन भी परवान चढ़ा। वे मुख्यतः इंडियन डायस्पोरा व स्कॅन्डिनेवियन देशों में बसे भारतीय समुदाय पर कहानियाँ, उपन्यास और शोध लिखतीहैं। प्रमुख राष्ट्रीय पत्र-पत्रिकाओं (इंडिया टुडे, हंस, वागर्थ, कथादेश, नया ज्ञानोदय, साहित्य अमृत व लमही आदि ) में उनकी कहानियाँ और लेख प्रकाशित होते हैं।
लेखन में झलकते प्रवासी मुद्दे व प्रवास के अनुभव
उनका लेखन वर्तमान जातीय, प्रवासी मुद्दों व प्रवास के अनुभव दर्शाता है। अर्चना पैन्यूली ने यूरोपीय विशेषकर स्कॅन्डिनेवियन देशों के भौगोलिक और सामाजिक परिवेश पर भी उन्होंने खुल कर अपनी लेखनी चलाई है। उनके उपन्यासों और कहानियों में भारतीय पात्रों के साथ-साथ यूरोपीय पात्रों की सहज उपस्थिति नजर आती है।
डेनिश समाज पर हिन्दी में पहला उपन्यास
अर्चना पैन्यूली का उपन्यास ‘वेयर डू आई बिलांग’ डेनिश समाज पर हिन्दी में लिखा गया पहला उपन्यास है। भारतीय ज्ञानपीठ से हिन्दी में छपने के बाद रूपा पब्लिकेशन्स से यह अंग्रेजी में प्रकाशित हुआ है। उन्होंने मशहूर डेनिश लेखिकाओं, कारेन ब्लिक्शन (https://en.wikipedia.org/wiki/Karen_Blixen) और हेल्ले हेल्ले (http://www.hellehelle.net/nyt/) की डेनिश रचनाओं का भी हिन्दी अनुवाद किया है। पुरस्कृत डेनिश उपन्यास ‘Dette burde skrives i nutid’ (… आगे की बात करो) का हिन्दी अनुवाद किसी डेनिश कृति का पहला हिन्दी अनुवाद है।
अर्चना पैन्यूली की प्रकाशित कृतियां
• उपन्यास: परिवर्तन (अभिरुचि प्रकाशन 2003); वेयर डू आई बिलॉंग (भारतीय ज्ञानपीठ 2009); पॉल की तीर्थयात्रा (राजपाल एंड संस 2016); कैराली मसाज पार्लर (भारतीय ज्ञानपीठ 2020); अलकनंदा सुत (प्रकाशनार्थ वाणी प्रकाशन)
• कहानी संग्रह: ‘हाइवे E-47 (प्रभात प्रकाशन समूह – ज्ञान गंगा 2017); कितनी मांएं हैं मेरी (प्रभात प्रकाशन समूह- विद्या विकास एकेडमी 2018); प्रवासी साहित्य श्रृंखला (प्रलेक प्रकाशन 2021); कथा सप्तक (शिवना प्रकाशन 2023), मेरी मदरबोर्ड (प्रकाशनार्थ पुस्तकनामा)
• अनुवाद: मशहूर डेनिश लेखिका, कारेन ब्लिक्शन (दिवंगत) की लंबी कहानी का हिंदी अनुवाद (नया ज्ञानोदय 2009); साहित्यकार हेल्ले हेल्ले के पुरस्कृत उपन्यास Dette burde skrives i nutid – … आगे की बात करें (प्रभात प्रकाशन 2021)
• अनूदित साहित्य : वेयर डू आई बिलॉंग – अंग्रेजी अनुवाद (रूपा पब्लिकेशन्स 2014)
• कैराली मसाज पार्लर – अंग्रेजी अनुवाद (यूकियोतो पब्लिकेशन्स 2023)
• कैराली मसाज पार्लर – कन्नड़ अनुवाद (अंकिता पब्लिकेशन्स 2023)
• कैराली मसाज पार्लर – मराठी अनुवाद (प्रकाशनार्थ)
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अर्चना पैन्यूली को मिले पुरस्कार व सम्मान
• भारत में सम्मान-
– साहित्यिक संस्था धाद महिला सभा, उत्तराखंड की ओर से उपन्यास परिवर्तन के लिए सम्मानित (जून 2004)।
इंडियन कल्चरल एसोशिएशन, डेनमार्क द्वारा प्रेमचंद्र पुरस्कार (अगस्त 2006)।
-राष्ट्रकवि मैथिलीशरण गुप्त मैमोरियल ट्रस्ट की ओेर से उपन्यास ‘वेयर डू आई बिलॉंग’ के लिए राष्ट्रकवि मैथिलीशरण गुप्त पुरस्कार अगस्त (2012)।
-उपन्यास ‘पॉल की तीर्थयात्रा’ फेमिना सर्वे की ओर से सर्वश्रेष्ठ दस उपन्यासों में घोषित (वर्ष 2016)।
-मध्यप्रदेश शासन संस्कृति विभाग की ओर से निर्मल वर्मा पुरस्कार (सितंबर 2019)।
—केन्द्रीय हिन्दी संस्थान की ओर से पद्मभूषण डॉ मोटूरि सत्यनारायण पुरस्कार (अप्रेल 2020) ।
• डेनमार्क में सम्मान-
– इंडियन कल्चरल सोसाइटी, डेनमार्क की ओर से स्वतंत्रता दिवस समारोह पर ‘प्राइड आफ इंडिया’ सम्मान से सम्मानित(अगस्त 2011)।
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उल्लेखनीय सम्मान
– इंडियन कल्चरल एसोशिएशन, डेनमार्क की ओर से द्वारा प्रेमचंद्र पुरस्कार (2006)
– राष्ट्रकवि मैथिलीशरण गुप्त प्रवासी सम्मान (2012)
– निर्मल वर्मा पुरस्कार, मध्यप्रदेश शासन संस्कृति विभाग (सितंबर 2019)
– डॉ मोटूरि सत्यनारायण सम्मान, केन्द्रीय हिन्दी संस्थान, आगरा(अप्रेल 2020)
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उनके लेखन पर शोध
अर्चना पैन्यूली की रचनाओं पर देश-विदेश के शोधार्थी शोध कार्य कर रहे हैं। यूनिवर्सिटी ऑफ़ रिगा, लातविया; उप्पसला यूनीवर्सिटी, स्वीडन, गुरु नानकदेव विश्वविद्यालय, अमृतसर; लोयला कॉलेज, जमशेदपुर, झारखंड; पंजाब यूनिवर्सिटी, चंडीगढ़; गुरु काशी विश्वविद्यालय तलवंडी साबो, भटिंडा, पंजाब; अलीगढ़ यूनीवर्सिटी, कल्याणी विश्वविद्यालय, पश्चिम बंगाल, जयनारायण व्यास विश्वविद्यालय, जोधपुर, राजस्थान, आदि विश्वविद्यालयों के छात्रों ने उनकी रचनाओं को अपने शोध कार्य में प्रमुखता से शामिल किया है।इन विश्वविद्यालयों के शोधार्थियों ने अर्चना पैन्यूली की कहानियों में स्त्री का स्वरूप, माँ के विविध रूप, भारतीय और प्रवासी साहित्य की तुलनात्मक विवेचना, इक्कीसवीं सदी में प्रवासी परिवेश के हिन्दी उपन्यासों में जीवन-मूल्य व मानवीय संवेदना आदि तथ्यों की गहन पड़ताल की है।
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