सिसोदिया की बेल पर…. अपनी ही बातों के फेर में फंसी ED, सुप्रीम कोर्ट ने पूछा ऐसा सवाल- एजेंसी की बोलती बंद!
हाइलाइट्स
मनीष सिसोदिया ने जमानत के लिए सुप्रीम कोर्ट में याचिका लगाई.ईडी की तरफ से पूर्व डिप्टी सीएम की याचिका का विरोध किया गया.सुप्रीम कोर्ट ने ट्रायल में दूरी को लेकर ईडी की कुछ दलीलों में विरोधाभास पाया.
नई दिल्ली. मनीष सिसोदिया बीते करीब डेढ़ साल से दिल्ली शराब नीति से जुड़े मनी लॉन्ड्रिंग केस में तिहाड़ जेल में बंद हैं. मंगलवार को सुप्रीम कोर्ट में दिल्ली के पूर्व उपमुख्यमंत्री की जमानत याचिका पर गुरुवार को सुनवाई की. कोर्ट ने सिसोदिया के वकील अभिषेक मनु सिंघवी और ईडी के एडिशनल सॉलिसिटर जनरल एसवी राजू की दलीलों को सुनने के बाद अपना आदेश सुरक्षित रख लिया है. लाइव लॉ बेससाइट की खबर के मुताबिक बहस के बीच ऐसा वक्त भी आया जब जांच एजेंसी खुद अपनी ही दी पुरानी दलीलों के जाल में फंसती हुई नजर आई.
न्यायमूर्ति बीआर गवई और न्यायमूर्ति केवी विश्वनाथन की बेंच ने सुनवाई के दौरान पीठ ने ईडी की दलीलों में विरोधाभास पाया. पहले ईडी की तरफ से यह दावा किया गया था कि अगर सिसोदिया ने बेवजह आवेदन दायर क देरी नहीं की होती तो मुकदमा अबतक शुरू हो सकता. वहीं एजेंसी ने दूसरी ओर ईडी ने डेटा इकट्ठा करने और अंतिम आरोपपत्र दायर करने के लिए 4 जून, 2024 को 3 जुलाई तक का वक्त मांगा था.
न्यायमूर्ति विश्वनाथन ने मौखिक रूप से कहा, “आखिरी आरोपपत्र 28 जून को आएगा…फिर आप सुप्रीम कोर्ट को बताएंगे कि हम पूरक आरोपपत्र दाखिल करने की प्रक्रिया में हैं. इसका मतलब यह है कि आपको भी लगा कि जब तक सभी आरोपपत्र दाखिल नहीं हो जाते मुकदमा शुरू नहीं हो सकता. अब यह कहना कि आप आगे बढ़ सकते थे और उन्होंने देरी की…इसमें कुछ असंगति है.”
कब शुरू होगा ट्रायल?न्यायमूर्ति विश्वनाथन ने एएसजी से पूछा, “वास्तविक रूप से आप मुझे बताएं, 493 गवाहों को देखते हुए आपको सुरंग का अंत कब दिखाई देता है?” इससे पहले सुनवाई के दौरान एएसजी ने तर्क दिया था कि सिसोदिया की वर्तमान याचिका मुकदमे में देरी के आधार पर केंद्रित थी और सिसोदिया ने खुद ही अनुचित आवेदनों के कारण इसे लंबा खींच दिया. यह दावा किया गया कि सिसोदिया ने अविश्वसनीय दस्तावेजों की मांग करते हुए आवेदन दायर किए, जबकि उनकी आवश्यकता नहीं थी (या डिजिटल रूप से प्रस्तुत किए गए थे); इसके बजाय, उन्हें आरोपमुक्ति के लिए आवेदन करना चाहिए था.
ईडी की कोर्ट में दलील…एएसजी ने तर्क को आगे बढ़ाते हुए कहा कि अगर सिसोदिया डिस्चार्ज आवेदन नहीं देना चाहते थे, तो उन्हें ट्रायल कोर्ट को सूचित करना चाहिए था ताकि आरोप तय किए जा सकें. लेकिन आरोप तय करने से बचने के लिए ऐसा नहीं किया गया. उन्होंने यह भी तर्क दिया कि अगर सिसोदिया को रिहा किया जाता है, तो उनके द्वारा सबूतों के साथ छेड़छाड़ करने और गवाहों को प्रभावित करने की आशंका है.
सिंघवी ने क्या कहा?इन दलीलों पर सीनियर एडवोकेट सिंघवी ने कड़ी आपत्ति जताई, जिन्होंने दावा किया कि सिसोदिया के अधिकांश आवेदनों को ट्रायल कोर्ट ने स्वीकार कर लिया था. वरिष्ठ वकील ने आगे दलील दी कि छेड़छाड़ का आधार (जैसा कि तर्क दिया गया) पहली बार लिया जा रहा था और इसका उद्देश्य सिसोदिया की अंतरिम रिहाई के खिलाफ अदालत को पूर्वाग्रहित करना था.
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FIRST PUBLISHED : August 6, 2024, 16:49 IST