दीपावली की रात को बच्चे और बुजुर्ग करते है आग से हैरतअंगेज करतब, 200 सालों से चली आ रही परंपरा

Last Updated:October 20, 2025, 19:51 IST
परंपरा से जुड़े ईशर दास छंगाणी ने बताया कि यह परंपरा 250 साल से चली आ रही है. सबसे पहले बन्नाटी की विधि विधान से पूजा की जाती है. यह एक साहसिक खेल है. जिसमें लोग आग के साथ अच्छा प्रदर्शन करते है. इसको लेकर लोग 15 दिन पहले से तैयारी शुरू कर देते है. सात बन्नाटियों के माध्यम से इस खेल का साहसिक प्रदर्शन होता है.
बीकानेर. अपनी परंपरा के लिए पूरी दुनिया में प्रसिद्ध है, यहां दीपावली पर कई परंपराएं होती हैं, जिनका शहरवासी पूरी निष्ठा से निर्वहन करते हैं. ऐसी ही एक परंपरा है जो सैकड़ों साल से चली आ रही है और इस परंपरा में अब युवा के साथ बच्चे, बुजुर्ग और युवतियां भी भाग लेती हैं. हम बात कर रहे हैं दीपावली पर बीकानेर के बारह गुवाड़ चौक में होने वाले बन्नाटी खेल की. यह खेल आग से खेला जाता है.
यह दीपावली से एक दिन पहले छोटी दीपावली को खेला जाता है, यह खेल दशकों से कलात्मक प्रदर्शन और खिलाड़ियों के साहसिक दमखम से ख्याति प्राप्त किए हुए है. आग के इस खेल से दर्शक रोमांचित हो जाते हैं. इस आग के खेल से आपसी प्रेम और भाईचारे को भी बढ़ावा मिलता है, दीपावली की रात को होने वाले बन्नाटी खेल को देखने के लिए शहर के विभिन्न स्थानों से बड़ी संख्या में लोग जुटते हैं.
यह परंपरा 250 साल से चली आ रही
परंपरा से जुड़े ईशर दास छंगाणी ने बताया कि यह परंपरा 250 साल से चली आ रही है. सबसे पहले बन्नाटी की विधि-विधान से पूजा की जाती है. यह एक साहसिक खेल है, जिसमें लोग आग के साथ उत्कृष्ट प्रदर्शन करते हैं. इसको लेकर लोग 15 दिन पहले से तैयारियां शुरू कर देते हैं. सात बन्नाटियों के माध्यम से इस खेल का साहसिक प्रदर्शन होता है. बन्नाटी के दोनों ओर जलते हुए आग के गोले, इसे घुमाने के दौरान निकलने वाली सरसराहट की आवाज और हैरतअंगेज प्रदर्शन को देख हर कोई रोमांचित हो उठता है. इस दौरान सामूहिक रूप से गाए जाने वाले “बोलो वाह बन्नाटी वाह” गीत से पूरा प्रांगण गूंज उठता है.
बन्नाटी बनाने में मुख्य रूप से बांस की लकड़ियों, सूती वस्त्र, मूंगफली के तेल का उपयोग होता है। लोहे की चादर, छोटी कील, लोहे का पतला वायर, सफेद मिट्टी भी बन्नाटी तैयार करने के काम में ली जाती है. इसका वजन 8 से 10 किलो होता है। छह फुट की एक बांस की लकड़ी के दोनों सिरों पर करीब एक-एक फुट तक लोहे की चादर को कील की सहायता से गोलाई में लगाया जाता है. वे बताते हैं कि सूती धोती से कोड़े तैयार किए जाते हैं. इन कोड़ों को छह या आठ की संख्या में बांस की लकड़ी के दोनों ओर कील और वायर के माध्यम से बांध दिया जाता है. तैयार बन्नाटी को करीब 36 घंटे तक तेल में भिगोकर रखा जाता है. बाद में इसे तेल से निकालकर छोड़ दिया जाता है और दोनों ओर सफेद मिट्टी का लेप किया जाता है. बन्नाटी के दोनों ओर आग जलाकर प्रदर्शन किया जाता है.
Monali Paul
Hello I am Monali, born and brought up in Jaipur. Working in media industry from last 9 years as an News presenter cum news editor. Came so far worked with media houses like First India News, Etv Bharat and NEW…और पढ़ें
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Location :
Bikaner,Rajasthan
First Published :
October 20, 2025, 19:51 IST
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बीकानेर की बन्नाटी खेल परंपरा, दीपावली पर आग के साहसिक प्रदर्शन के साथ