विलुप्त होने की कगार पर राजा महाराजाओं के समय की ये कला, पहले दरबार की शान हुआ करती, आज कोई नहीं पूछ रहा

Last Updated:March 30, 2025, 11:32 IST
राजाओं और दरबारियों के समय में कठपुतली नाटकों का आयोजन किया जाता था. कठपुतली अनेक प्रकार से बनाई जाती है. ये हाथ में पहनकर, छड़ी के सहारे, परदे के पीछे रोशनी डालकर भी कठपुतली कला का प्रदर्शन किया जाता है.X
कठपुतली कला
प्राचीन समय में मनोरंजन के लिए कठपुतली अच्छा माध्यम थी. आज भी राजस्थान के कई पर्यटन स्थलों पर कठपुतली की कला देखी जा सकती है. यह कला राजस्थानी संस्कृति का प्रतीक है. इसे लकड़ी, कपड़े और धागे से तैयार किया जाता है. कठपुतली गुड़िया की तरह होती है जिसको गायन या नाटक के हिसाब से सजावटी कपड़े पहनाए जाते हैं. उसका श्रृंगार किया जाता है. कठपुतली कला को देखने के लिए विदेशी पर्यटक राजस्थान में आते हैं. कठपुतलियां द्वारा किए जाने वाले नाटक और गानों पर डांस को विदेशी पर्यटक खूब चल से देखते हैं. आपको बता दें कि कठपुतली कला मनोरंजन का साधन है.
राजाओं और दरबारियों के समय में कठपुतली नाटकों का आयोजन किया जाता था. कठपुतली अनेक प्रकार से बनाई जाती है. ये हाथ में पहनकर, छड़ी के सहारे, परदे के पीछे रोशनी डालकर भी कठपुतली कला का प्रदर्शन किया जाता है. राजस्थान में कठपुतली कला बहुत प्रसिद्ध है. राजस्थानी कठपुतलियों में पारंपरिक पोशाक और रंगों का इस्तेमाल होता है. इन कठपुतलियों के जरिए लोक कथाएँ, महाभारत-रामायण की कहानियाँ और समाजिक संदेश दिए जाते हैं. इसलिए कठपुतली कला राजस्थान में बहुत लोकप्रिय कला कहा जाता है.
कम होते जा रहे कलाकार आज कठपुतली कला का उपयोग केवल मनोरंजन तक सीमित नहीं है, बल्कि यह शिक्षा, जागरूकता अभियानों और बच्चों के कार्यक्रमों में भी प्रयोग की जाती है. सरकार द्वारा भी इस कला का प्रसार करने के लिए अनेकों योजनाएं भी बनाई जा रही है. लेकिन धीरे धीरे इस कठपुतली कला को दिखाने वाले कलाकार कम होते जा रहे हैं. कठपुतली कलाकार विकास भाट ने बताया कि राजा महाराजाओं के समय की इस कला से अब परिवार का पेट पालना भी मुश्किल हो रहा है. राजस्थान में हेरिटेज जगहों और लोक आयोजनों में ही इसकी मांग है. स्थानीय स्तर पर मोबाइल और सोशल मीडिया के कारण इस कला अब विलुप्त होती जा रही है.
Location :
Jaipur,Rajasthan
First Published :
March 30, 2025, 11:32 IST
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विलुप्त होने की कगार पर महाराजाओं के समय की ये कला,पहले दरबार की शान हुआ करती