On this festival, men also wear themselves, with ghunghrus on their feet and dance to the beat of chang. – News18 हिंदी

सोनाली भाटी/ जालौर. रंगो का पर्व होली का नाम सुनते ही हर उम्र के व्यक्तियों के चेहरे पर खुशियां दिखने लगती हैं. देश के हर प्रदेश में होली का पर्व अलग-अलग तरीके से मनाया जाता है. मगर राजस्थान के मारवाड़ क्षेत्र में होली मनाने का अलग ही अंदाज दिखता है, होली के अवसर पर राजस्थान के विभिन्न क्षेत्रों में कई तरह के आयोजन किए जाते हैं. होली के विविध रंग देखने में आते हैं.
राजस्थान की लोक परंपराओं और प्रथाओं में फाल्गुन मास के गीत और चंग की थाप अपना एक अलग ही महत्व रखते हैं. जालौर में ग्रामीण आँचल में मनाये जाने वाले होली पर्व पर होने वाला पारंपरिक गैर नृत्य चार चांद लगा देता है, होली पर्व पर दूरदराज बैठे प्रवासी भी इस त्योहार पर होली के इस परंपरागत गैर नृत्य का आनंद उठाने आते हैं।
ऐसे करते हैं गैर नृत्य…
ढोल की थाप पर गैर नृत्य के नजारे फागुन मास में देखने को मिलते है. ग्रामीण अंचलों से आए गैरी एक-दूसरे के साथ फाग गीत गाते है. चंग की थाप बजने से उठते सूरों के साथ कदम से कदम मिलाकर ऐसा नृत्य करते हैं कि, जिसे देखकर शहरवासियों के कदम थम जाते हैं.
गैरीयों की पारंपरिक पोशाक
मारवाड़ क्षेत्र पुरुष गोल घेरे में जो नृत्य करते हैं, वह गैर नृत्य कहलाता है. गैर नृत्य करने वालों को गैरिया कहते हैं. गैर नृत्य करने वाले सफेद धोती, सफेद अंगरखी, सिर पर लाल, गुलाबी, केसरिया रंगबी रंगी की पगड़ी पहनते हैं. पैरों में घुंघरू बांधते हैं जालौर क्षेत्र का यह गैर नृत्य केवल पुरुषों के द्वारा किया जाता हैं.
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गैर नृत्य करवाने वाले वेलाराम माली बताते हैं, कि यह गैर परंपरागत रूप से चलती आई है. गैर नृत्य प्रस्तुत करने वाले गैरिये परंपरागत तरीके से नवजात बच्चों की ढुंढ भी करवाते है, और बहुत ही हंसी-मजाक करते हैं. यह परंपरा राजा महाराजाओं की जमाने से चली आ रही है.
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FIRST PUBLISHED : March 25, 2024, 08:28 IST