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Opinion: ‘जाट मरा तब जानिए, जब तेरहवीं हो जाए…’ जिंदगी की हर दौर में अडिग रहे धर्मेंद्र, सच कर दिखाई कहावत

नई दिल्ली. ‘जाट मरा तब जानिए, जब तेरहवीं हो जाए’… यह पुरानी कहावत आज भी उतनी ही प्रासंगिक है, जितनी दशकों पहले हुआ करती थी. बॉलीवुड के ‘ही-मैन’ धर्मेंद्र ने अपने जीवन के हर पड़ाव पर इसे सच साबित किया है. 89 साल के धर्मेंद्र 1 नवंबर को अस्पताल में भर्ती हुए. रूटीन चैकअप से शुरू हुईं चर्चाओं से सांस लेने में तकलीफ, फिर आईसीयू और फिर वेंटिलेटर पर धर्मेंद्र… इन खबरों ने परिवार से लेकर फैंस तक की चिंता को बढ़ा दिया. लेकिन 89 साल के धर्मेंद्र 12 नवंबर की सुबह-सुबह घर में अपनों के पास पहुंच गए.

धर्मेंद्र का पूरा जीवन ही इस कहावत की जीती-जागती मिसाल है. एक छोटे से पंजाबी गांव से निकलकर मुंबई की चकाचौंध तक का सफर कभी आसान नहीं रहा. फिल्म इंडस्ट्री में पहले-पहल उन्हें ‘धरम सिंह’ नाम से जाना जाता था. उनके अभिनय को शुरू में कोई खास पहचान नहीं मिली, लेकिन उन्होंने हार नहीं मानी. उन्होंने अपनी मेहनत, सादगी और दिलदारी से जगह बनाई और कभी स्टारडम को सिर पर नहीं चढ़ने दिया.

इसी वजह से, चाहे वह ‘शोले’ का वीरू हो, ‘चुपके चुपके’ का प्रोफेसर परिमल हो या ‘रॉकी और रानी’ के दादाजी, दर्शकों ने हमेशा उन्हें ‘अपना’ माना. धर्मेंद्र की शख्सियत विरोधाभासों से भरी रही है. बाहर से कठोर, अंदर से बेहद संवेदनशील. पर्दे पर उन्होंने ‘ही-मैन’ की छवि गढ़ी, लेकिन असल में वो बेहद भावुक इंसान हैं. आज जब सोशल मीडिया पर उनकी पुरानी इंटरव्यू क्लिप्स वायरल होती हैं, तो उनमें एक सच्चाई झलकती है. एक ऐसा इंसान जो सफलता से ज्यादा इंसानियत को अहमियत देता है. शायद यही वजह है कि आज जब वो बीमार पड़े, तो न सिर्फ उनका परिवार बल्कि पूरा देश उनके लिए दुआ मांगने लगा.

धर्मेंद्र अपने दौर में सबसे हैंडसम स्टार्स में एक थे.

धर्मेंद्र ने 60 के दशक में पंजाब छोड़कर मुंबई में आए और फिर यहीं के होकर रह गए. लेकिन अपनी जड़ों को आज तक नहीं भूले. दिन-रात उन्होंने इतनी मेहनत की मुंबई में खुद के लिए वो सब किया, जिसको पंजाब में छोड़ आए थे. फार्म हाउस में देसी खाना-पीना, देसी दूध-छाछ, गाय-गोबर, ऑर्गेनिक सब्जियां और फलों को उन्होंने अपनी जिंदगी का अहम हिस्सा बना लिया. बॉलीवुड की चकाचौंध के बीच भी अपनी पंजाबी भाषा, रीति-रिवाज और सादगी को संजोकर रखा. उनकी इस लाइफस्टाइल के कारण भी ये कहावत उनपर बिलकुल फिट बैठती है.

पंजाब की मिट्टी से निकला ये शेर हमेशा की तरह गिरकर भी उठा. क्योंकि कहते हैं न ‘जाट की जान नहीं जाती, बस थोड़ा ठहरता है’. 11 दिनों तक अस्पताल में रहने के बाद जब धर्मेंद्र एम्बुलेंस से घर लौटे, तो लोगों को धरम पाजी के वो बोल याद आ गए जो वो अकसर कहा करते थे- ‘मैं आज भी जवान हूं, बस तारीखें बदल गई हैं.’

ये 100 एकड़ का विशाल फार्महाउस पहाड़ों और हरियाली से घिरा हुआ है. शहर की भागदौड़ से कोसों दूर धर्मेंद्र यहां ऑर्गेनिक खेती करना पसंद करते हैं. कई फोटोज में भी ऐसा नजर आया है कि वह खुद के लिए फल सब्जियां अनाज उगाते हैं.

सोशल मीडिया पर एक नहीं दो-दो दिन उनकी निधन की खबरें आईं. यकीन करना मुश्किल था, लेकिन सोशल मीडिया तब हावी हो गया जब राजनेताओं से लेकर अभिनेताओं ने पोस्ट शेयर कर उनकी मौत को ‘पुख्ता’ बनने दिया. लेकिन जाट मरा नहीं था… बेटी ईशा और हेमा की एक दहाड़ ने इस अफवाहों पर ब्रेक लगाया और आज वो मौत को मात देकर अपने घर पहुंचे गए.

धर्मेंद्र सिर्फ एक एक्टर नहीं, बल्कि एक भावनात्मक अनुभव हैं. उनकी मुस्कान, उनकी डायलॉग डिलीवरी और सबसे बढ़कर उनका सच्चा दिल. ‘शोले’ में वीरू का जो नशा था, वहीं नशा लोगों के दिलों में आज भी बाकी है. उनकी हर फिल्म में जो ‘देसी ठाठ’ झलकता था. जो सिखाता है कि उम्र सिर्फ एक संख्या है. असली ताकत इंसान के जज्बे में होती है.

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