Pakistan crushing defeat remembering today bites fingers

Last Updated:May 09, 2025, 15:05 IST
राजस्थान के सालोड़ी गांव के रहने वाले 81 वर्षीय जोराराम बिश्नोई आज भी उन बहादुर पलों को याद करते हैं, जब उन्होंने भारत-पाकिस्तान युद्ध के दौरान दुश्मन को धूल चटाई थी. आइए उनसे उस दौर के समय की स्थिति के बारे मे…और पढ़ेंX
जोधपुर के महावीर पार्क में टैंक
हाइलाइट्स
जोराराम बिश्नोई ने 1971 में पाकिस्तानी T59 टैंक जोधपुर लाया था.महावीर उद्यान में रखा टैंक पाकिस्तान पर जीत का प्रतीक है.81 वर्षीय जोराराम आज भी सेवा देने को तैयार हैं.
जोधपुर:- पहलगाम में हुए आतंकी हमले के बाद से भारत और पाकिस्तान के बीच तनाव की स्थिति है. ऐसे में याद करें 1965 और 1971 के उस युद्ध को, जब भारत ने पाकिस्तान को युद्ध में हराने का काम किया था. राजस्थान के सालोड़ी गांव के रहने वाले 81 वर्षीय जोराराम बिश्नोई आज भी उन बहादुर पलों को याद करते हैं, जब उन्होंने भारत-पाकिस्तान युद्ध के दौरान दुश्मन को धूल चटाई थी.
1971 के युद्ध के दौरान पाकिस्तान का एक T59 पैटर्न टैंक पाकिस्तानी सैनिकों से छीनकर जोधपुर ले आए थे. यह टैंक अब शहर के महावीर उद्यान में रखा हुआ है. इसी टैंक पर ऑपरेशन सिंदूर की सफलता का जश्न मनाते नजर आए हैं.
पाकिस्तान पर जीत का प्रतीक यह टैंक आज वही टैंक जब जोधपुर वासी देखते हैं, तो उनको गर्व महसूस होता है. उसी टैंक को देख आज भी यह महसूस होता है कि जब हालात तनाव पूर्ण है, तो एक बार फिर भारत अच्छी तरह से युद्ध के मैदान में पाकिस्तान को सबक सिखाने के लिए तैयार है. जोधपुर के लोग कहते भी हैं कि 1965-71 के युद्ध में कई टैंको पर भारतीय सेना का कब्जा हो गया, जो ये बताने की नजीर है कि भारतीय सेना का जज्बा कितना बुलंद था.
पाकिस्तान पर जीत का प्रतीकयह टैंक पूरे देश के अलग-अलग जगहों पर रखे गए हैं, जिसमें 15 से 20 टैंक जोधपुर में भी रखे गए. उनमें से एक टैंक रखा गया है जोधपुर के महावीर उद्यान में, जो आज भी उन भारतीय सैनिकों के शौर्य की कहानियां बयां करता है.
टैंक-गाड़ियां छोड़कर भागे पाकिस्तानी जोराराम ने लोकल 18 को बताया कि 34 पाकिस्तानी टैंक उन्होंने खुद वहां खड़े होकर गिने थे, जिनमें कई चालू हालत में भी थे. इसके अलावा 300 छोटी-बड़ी गाड़ियां पाकिस्तानी छोड़कर भागे थे. कुछ गाड़ियां तो चालू हालत में छोड़कर भागे थे. इन टैंकों को हम लेकर जैसलमेर आए और उसके बाद ट्रेन से रवाना किया. दो टैंक जोधपुर ले जाने की जिम्मेदारी जोराराम को दी गई थी, जिन्हें वो अपने एक साथी के साथ लेकर रवाना हुए थे. पूरे रास्ते खाने के लिए कुछ नहीं था. विकट परिस्थितियों में दो दिन में जोधपुर लेकर आए.
आज भी सेवा देने को तैयार अब पाकिस्तान दोबारा मुंह उठा रहा है, लेकिन अब हम धोखा नहीं खाएंगे और पाकिस्तान को मात दे देंगे. जोराराम का कहना है कि उन्हें बुलाया जाए, तो वो आज भी सेवा देने के लिए तैयार हैं. उनके भाई मंगाराम Local 18 को बताते हैं कि लड़ाई के दौरान वो जोधपुर में पढ़ते थे. हमने हाथों से खोदकर गड्ढा बनाया था. जब सायरन बजता, रोशनी बंद करनी पड़ती थी और उसके बाद गड्ढे में जाते थे.
Location :
Jodhpur,Rajasthan
homerajasthan
1971 में पाकिस्तान की वह करारी हार, जिसको सुनकर आज भी दुश्मन के छूट जाते पसीने