पाली के किसान विजय चौधरी ने बंजर जमीन पर अंगूर की खेती में सफलता पाई

पाली. किसी ने सच ही कहा है कि किसान अन्नदाता होता है और वह चाहे तो बंजर जमीन को भी उपजाऊ बना सकता है. ऐसी ही बंजर जमीन को उपजाऊ बनाने का काम किया है राजस्थान के पाली जिले के उस किसान ने, जो कभी अलग-अलग शहरों में बिजनेस और नौकरी की तलाश में रहता था, मगर बाद में वापस जब गांव लौटे तो बंजर जमीन पर अंगूर उगाकर सबको चौंकाने का काम किया.
दोस्त ने शर्त भी लगाई थी कि इस जमीन पर अंगूर नहीं हो सकते, मगर किसान विजय कुमार चौधरी ने हार नहीं मानी और दोस्त को गलत साबित कर ही दिया. करीब दो साल की मेहनत के बाद आखिरकार फसल को तैयार करने का काम किया. ऐसे में एक समय ऐसा था कि बूसी गांव में तैयार अंगूर का यह बगीचा लोगों के लिए चर्चा में रहा था.
पिता के निधन के बाद से कर रहे थे नौकरी की तलाश1993 में विजय के पिता मगाराम का निधन हुआ तो वे काम की तलाश में मुंबई पहुंचे. यहां अलग-अलग नौकरी करने और कुछ छोटा बिजनेस करने के बाद वे पुणे शिफ्ट हो गए. यहां उन्होंने मिठाई की दुकान खोली, एक दिन अपने पैतृक गांव बूसी की याद आई, तो दुकान बेटे को सौंपकर विजय अपने गांव लौट आए. गांव में विजय की 100 बीघा जमीन बंजर थी, उन्होंने अंगूर उगाने का विचार किया. लेकिन एक दोस्त ने कहा कि इस जमीन पर अंगूर नहीं हो सकते. दोनों दोस्तों में शर्त लग गई और विजय ने यहां अंगूर उगाने की ठान ली. इसके बाद विजय ने अपने गांव में कैप्सूल अंगूर की 1,000 बेलें लगाई.
इस तरह लगाए कैप्सूल अंगूरकैप्सूल क्वालिटी का अंगूर मीठा, रसदार और कैप्सूल की तरह लंबा होता है. मार्केट में इसकी कीमत और डिमांड भी अच्छी रहती है, अब फसल पककर तैयार है. फरवरी के आखिर से पैकिंग और सप्लाई का काम शुरू हो जाएगा. किसान ने बताया, “मैंने 2019-2020 में महाराष्ट्र के नासिक, पंडलरपुर, जूनण गांव में अंगूर के कई बगीचे देखे. वहां की हवा, मिट्टी, पानी और मौसम का रिसर्च किया. बागवानी करने वाले किसानों से टिप्स लिए, फिर 2022 में नासिक के आडगांव के रहने वाले अपने दोस्त के पास गया. वे नासिक में अंगूर की खेती करते हैं, वहां उन्होंने सोनाका यानी कैप्सूल अंगूर की प्रजाति के 1,000 पौधे दिला दिए. वर्ष 2022 में दोस्त की गाइडेंस और सलाह से बूसी गांव में जमीन को तैयार कराया और ढाई बीघा जमीन पर अंगूर की बेलें लगा दी.
अंगूर की खेती में आया 6 लाख का खर्चचौधरी बताते हैं कि अंगूर की फसल पाने के लिए 5 से 6 लाख रुपए खर्च करने पड़े. नासिक से अंगूर का एक पौधा 150 रुपए में खरीदा गया था. पौधों को नासिक से पाली लाने में 25 से 30 हजार रुपए परिवहन खर्च आया. इसके बाद खेतों में अंगूर के पौधे लगवाने में 50 से 55 हजार रुपए खर्च हो गए. अंगूर की बेलों को चढ़ने के लिए खास स्ट्रक्चर की जरूरत होती है, इसलिए ढाई बीघा में इस तरह का स्ट्रक्चर तैयार करने में 4 लाख 50 हजार रुपए खर्च हुए. इसके अलावा बेलों की सिंचाई के लिए ड्रिप सिस्टम लगवाया गया, उसका खर्च अलग से आया. अंगूर के बगीचे की देखभाल के लिए 2 कर्मचारी भी रखे.
खुद तैयार करते हैं जैविक खादयही नहीं, खेती के दौरान इस्तेमाल होने वाली खाद को भी विजय कुमार खुद ही तैयार करते हैं. विजय कुमार जैविक खाद का उपयोग करते हैं, यह खाद वे खुद तैयार करते हैं. बागों में यूरिया आदि का उपयोग नहीं करते. खाद तैयार करने के लिए 10 लीटर गौ मूत्र, 10 किलो गोबर, 2 किलो सड़ा हुआ गुड़, 1 किलो खेजड़ी की मिट्टी, डेढ़ किलो बेसन आदि का इस्तेमाल करते हैं. इसे 15 दिन के लिए छोड़ देते हैं, फिर उसमें 200 लीटर पानी डालते हैं. यह तैयार खाद बेर के झाड़ की जड़ में डालते हैं.



