Para Art Motivated By A Young Girl – युवा पीढ़ी के हाथों में पैरा आर्ट की पहचान

धान का कटोरा कहे जाने वाले छत्तीसगढ़ की एक खास कला है पैरा आर्ट, जिसमें धान के आवरण यानी खोल से पेंटिंग बनाई जाती है। उस खोल को पैरा (पराली) कहते हैं। मंदिर हसौद की हर्षा वर्मा इस कला को आगे बढ़ाने का काम कर रही हैं। उन्होंने इस धान के पैरा (पराली) से एक माह की मेहनत के बाद भारत माता की 8 गुणा 4 फीट की एक तस्वीर बनाई है, जिसे लोगों ने काफी पसंद किया।

ताबीर हुसैन
रायपुर. धान का कटोरा कहे जाने वाले छत्तीसगढ़ की एक खास कला है पैरा आर्ट, जिसमें धान के आवरण यानी खोल से पेंटिंग बनाई जाती है। उस खोल को पैरा (पराली) कहते हैं। मंदिर हसौद की हर्षा वर्मा इस कला को आगे बढ़ाने का काम कर रही हैं। उन्होंने इस धान के पैरा (पराली) से एक माह की मेहनत के बाद भारत माता की 8 गुणा 4 फीट की एक तस्वीर बनाई है, जिसे लोगों ने काफी पसंद किया। हर्षा अब इस कला को आगे बढ़ाना चाहती हैं। उसके लिए वे यह कला निशुल्क सिखाने पर विचार कर रही हैं। वे कहती हैं कि कोरोनाकाल के बाद इस कला को सिखाने के लिए निशुल्क कार्यशालाएं आयोजित करेंगी और इसकी शुरुआत स्कूलों से ही करेंगी। हर्षा बीएससी (कम्प्यूटर साइंस) अंतिम वर्ष की छात्रा हैं। उन्होंने २०१३ से इस कला पर काम करना शुरू किया था। उनके पिता किराने की दुकान चलाते हैं और मां गृहिणी होने के साथ स्वयं सहायता समूह की अध्यक्ष भी हैं। वे शुरू से ही मेधावी छात्रा रही हैं। उन्होंने यह कला अपनी स्कूली शिक्षा के दौरान गर्मियों की छुट्टियों में सीखी थी। वे बताती हैं कि पैरा आर्ट को बनाने में कार्डबोर्ड, काला कपड़ा, बटर पेपर, ब्लेड की सहायता से सीधा और प्रेस किया हुआ पैरा और ग्लू का उपयोग किया जाता है।
छत्तीसगढ़ महतारी पेंटिंग भी बनाई
हर्षा ने लॉकडाउन के दौरान अपने समय का सदुपयोग करते हुए दस दिन की मेहनत से धान के पैरा और बीज से ‘छत्तीसगढ़ महतारी’ की पेंटिंग बनाई थी। उनकी कला को छत्तीसगढ़ के राज्यपाल ने भी सराहा है। उन्होंने अब तक स्वामी विवेकानंद, शहीद भगत सिंह, सुभाष चन्द्र बोस, पालतू जीवों जैसी कई पेंटिंग्स बनाई हैं।