Rajasthan

Participants Understand The History Of ‘Matheran Art’ – प्रतिभागियों ने समझा’माथेरान कला’ का इतिहास

कलाकार कृष्ण चंद्र शर्मा के ऑनलाइन सेशन का समापन आज

जयपुर, 22 जुलाई।
कलाकार कृष्ण चंद्र शर्मा के ऑनलाइन सेशन में गुरुवार को प्रतिभागियों ने ‘माथेरान कला’ के इतिहास और विभिन्न तत्वों के बारे में समझा। यह आयोजन जवाहर कला केंद्र ने किया था। सेशन कला शैली के इतिहास, इसके सामान्य तत्वों, रंगों के उपयोग और तकनीकों पर केंद्रित था। माथेरान कला का परिचय देते हुए उन्होंने कहा कि इस कला शैली से उनका परिचय एक मित्र ने कराया था। यह कला शैली जैन और वैष्णव समुदायों के बीच उत्पन्न और विकसित हुई है। वर्तमान में इस कला ने बहुत लोकप्रियता हासिल की है और माथेरों की गली भी स्थापित की गई है। बीकानेर की पुरानी हवेलियां माथेरान कला से भरी पड़ी हैं। उन्होंने कहा कि वह जिस इलाके में रहते हैं वह माथेरान कला से घिरा हुआ है। यहीं पर उन्होंने अपने जुनून को पाया और इस कला शैली के साथ अपना काम स्थापित किया।
उन्होंने माथेरान कला से संबंधित कुछ मूल तत्वों के बारे में बताया। इसमें मोर, एक सजावटी पैनल, चंद्रमा और भगवान गणेश शामिल थे। ये पेंटिंग आमतौर पर शादियों के दौरान बनाई जाती हैं। सजावटी पैनल आमतौर पर घरों के द्वार पर लगाया जाता है। यह एक पारिवारिक कला शैली है, जो पीढिय़ों से चली आ रही है। माथेरान कला शैली में पात्रों की आंख की पुतलियां अलग-अलग दिशाओं में होती हैं। ये आमतौर पर जैन और वैष्णव मंदिरों में पाए जाने वाले धार्मिक चित्र हैं।
शुक्रवार को ‘माथेरान कलाÓ के ऑनलाइन सेशन का समापन होगा। सेशन में दर्शकों को ‘माथेरान कलाÓ की तकनीकें सिखाई जाएंगी।

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