इस जनजाति के लोग मन्नत पूरी होने पर भगवान को चढ़ाते हैं मिट्टी का घोड़े, जानें क्या है परंपरा-People of this tribe offer clay horses to God after their vows are fulfilled, the temple is identified in the name of the mountains
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सिरोही : देशभर में आदिवासी जनजाति की कई अनोखी परम्पराएं और रीति-रिवाज है. प्रदेश के सिरोही जिले और आसपास के जिलों में गरासिया जनजाति में कई धार्मिक परम्पराएं अपने आप में अनोखी है. यहां कुछ पहाडों पर आदिवासी भगवानों का वास मानते हैं. जिन्हें बावसी कहकर बुलाया जाता है. जिले के माउंट आबू उपखंड के उपलागढ़ में भाखर बावसी और रणोरा स्थित मांड बावसी का नाम इन पहाडियों पर ही पड़ा है.
भाखर की पहाडियों और मांड पहाड़ी पर बने स्थान पर विराजमान बावसी की सिरोही समेत विभिन्न जिलों और गुजरात से आने वाले जनजाति के लोग पूजा-अर्चना करते हैं. वैसे तो भगवान के आगे कुछ मन्नत रखने पर सोना-चांदी या श्रद्धानुसार कीमती वस्तु अर्पित की जाती है, लेकिन गरासिया जनजाति में यहां मिट्टी के बने विशेष घोड़े चढ़ाए जाते हैं.
इस प्रतिमा को घोड़ा बावसी कहा जाता है. मांड बावसी मंदिर और भाखर बाबा के स्थान पर काफी संख्या में ये घोड़े रखे हुए हैं. इनमें छोटी प्रतिमाएं भक्तों द्वारा और बड़ी प्रतिमाएं पूरे गांव द्वारा चढाई जाती है. ये प्रतिमाएं गुजरात के साबरकांठा जिले के पोसीना में कुम्हार समाज के लोग तैयार करते हैं. इन दोनों जगहों पर घोड़ा बावसी की ही पूजा होती है.
दुर्गम पहाड़ी पर जाते हैं श्रद्धालु मांड बावसी का स्थान रणोरा गांव में एक पहाड़ी के ऊपर बना हुआ है. यहां जाना हर किसी के लिए सम्भव नहीं है. दुर्गम पगडंडी से होकर चढ़ाई करते हुए मंदिर तक पहुंचा जा सकता है. ऐसे में कई लोग यहां नहीं जा पाते हैं. इसलिए रणोरा सड़क के पास ही मांड बावसी का स्थान बना हुआ है. जहां होली के बाद धुलंडी पर विशेष सत्संग होता है.
भाखर बाबा के मेले में उमड़ते हैं हजारों आदिवासी उपलागढ़ गांव में भाखर बाबा के मंदिर में काफी संख्या में घोड़ा बावसी की प्रतिमाएं रखी हुई है. हर वर्ष दीवाली के दो दिन बाद यहां विशाल मेला भरता है. जिसमें सिरोही जिले के अलावा गुजरात और अन्य जिलो से भी आदिवासी जनजाति के लोग यहां आते हैं. जहां भाखर बाबा की आराधना में घोड़ा नृत्य किया जाता है. जो आकर्षण का केंद्र रहता है.
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FIRST PUBLISHED : July 21, 2024, 24:12 IST